World Book Day 23 April: सिनेमा के पर्दे पर छाए पुस्तकों के किरदार
World Book Day 23 April निर्देशक राज शांडिल्य 89 साल की उम्र के मैराथन धावक फौजा सिंह की बायोपिक बना रहे हैं। यह फिल्म लेखक खुशवंत सिंह की पुस्तक टर्बन्ड टोरनैडो- द ओल्डेस्ट मैराथन रनर फौजा सिंह पर आधारित है।
प्रियंका सिंहl World Book Day 23 April: उपन्यासकार की कल्पनाओं को जब सिनेमा के विजुअल्स का सहारा मिलता है तो कहानी नया रूप ले लेती है। शरतचंद्र चटोपाध्याय, बिमल मित्र, आर के नारायण से लेकर नाटककार विलियम शेक्सपीयर और आजकल के लेखकों की किताबों को सिनेमा का साथ मिला। विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रैल) के मौके पर पुस्तकों पर बन रही फिल्मों व इस चलन के प्रति फिल्मकारों की रुचि की पड़ताल कर रही हैं प्रियंका सिंह...
साल 1955 में दिलीप कुमार अभिनीत और बिमल राय निर्देशित फिल्म 'देवदास लेखक शरतचंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित थी। संजय लीला भंसाली ने भी इसी उपन्यास पर शाह रुख खान के साथ इसी नाम से फिल्म बनाई थी। साल 1962 में बनी गुरु दत्त अभिनीत फिल्म साहिब, बीबी और गुलाम की कहानी लेखक बिमल मित्र के बंगाली उपन्यास साहेब बीबी और गोलाम पर आधारित थी। साल 1965 में रिलीज हुई देव आनंद और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म 'गाइड आर के नारायण की साल 1958 में आई पुस्तक 'द गाइड पर आधारित थी। खास बात यह थी कि इस फिल्म का 120 मिनट का अमेरिकन वर्जन भी बनाया गया था, जिसका नाम द गाइड रखा गया था। हिंदी में फिल्म का निर्देशन विजय आनंद ने किया था, जबकि अमेरिकन वर्जन को टैड डैनिलवस्की ने किया था। शेखर कपूर निर्देशत फिल्म 'मासूम अमेरिकन लेखक एरिक सेगल की किताब 'मैन, वूमन एंड चाइल्ड पर आधारित थी। बालीवुड ने इस ट्रेंड को रुकने नहीं दिया, विलियम शेक्सपीयर के नाटक 'ओथेलो, 'हैमलेट, 'मैकबेथ से लेकर चेतन भगत की 'हाफ गर्लफ्रेंड, '2 स्टेट्स, 'फाइव प्वाइंट समवन तक कई किताबें क्रमश: 'ओमकारा, 'हैदर, 'मकबूल, 'हाफ गर्लफ्रेंड, '2 स्टेट्स और 'थ्री ईडियट्स के जरिए फिल्मों की शक्ल ले चुकी हैं।
भावनाएं दर्शाना महत्वपूर्ण
साल 1914 में आई शरतचंद्र चटोपाध्याय के बंगाली उपन्यास 'परिणीता पर इसी नाम से साल 2005 में बनी फिल्म का निर्देशन प्रदीप सरकार ने किया था। उपन्यास को फिल्म में तब्दील करने की वजह बताते हुए प्रदीप कहते हैं कि किताब जब पढऩे में अच्छी लगती है, तो उसे फिल्म में तब्दील करने का खयाल आना लाजमी है। 'परिणीता उपन्यास जब मैंने पढ़ा था तो वह जेहन में घूमने लगी थी। उपन्यास साल 1914 में आया था लेकिन आज भी प्रासंगिक है। मेकर्स हमेशा कहानी में प्रासंगिकता ढूंढ़ते हैं। पुस्तक के किरदार हों या सिनेमा के, इंसानी स्वभाव नहीं बदल सकता है। मैंने अपने फिल्म की कहानी को साल 1964 में सेट किया था। इस पीरियड को दिखाने में वक्त लगा, लेकिन पुस्तक पढऩे के बाद हमें अंदाजा था कि क्या करना है। इस पुस्तक को पर्दे पर लाने के लिए उतनी ही सच्चाई से इसे शूट किया गया था। उन दिनों पहली बार कोलकाता की गलियों में खुले दिल से कुछ शूट हुआ था। किरदार क्या महसूस कर रहा है, वह समझाना जरूरी है। फिल्म बनाते वक्त सिर्फ शब्दों के पीछे नहीं भागा जा सकता है। जैसे किताब में पार्टी की बात है। हमने पार्टी दिखाई है कि सैफ पार्टी में नहीं जा रहे हैं। अगला सीन पार्टी का है। दो अलग मूड है, पार्टी में जो गाना चल रहा है वह खुशमिजाज है, लेकिन उस गाने के बोल हीरोइन के तकलीफ को बयां कर रहे हैं।
किताब से स्क्रीनप्ले तक
निर्माता-निर्देशक और अभिनेता सतीश कौशिक ने कई किताबों के राइट्स ले रखे हैं। उन्होंने खुद भी ब्रिटिश लेखिका मोनिका अली की पुस्तक 'ब्रिक लेन पर आधारित फिल्म में अभिनय भी किया है। पुस्तकों पर फिल्म बनाने को लेकर सतीश कहते हैं कि मुझे यह ट्रेंड पसंद है, इससे कंटेंट सुदृढ़ होता है, इसलिए हमारी कंपनी ने भी किताबों के राइट्स ले रखे हैं। पुस्तकों पर फिल्म बनाने से अलग कहानियां मिल जाती हैं, क्योंकि जब लेखक लिखता है, तो वह बहुत डिटेल में लिखता है। हमने कई अंग्रेजी और हिंदी पुस्तकों से स्क्रिप्ट बनाकर तैयार रखी हैं। पुस्तक में डिस्क्रिप्शन ज्यादा होता है, हमें वार्तालाप चाहिए होता है, जिससे डायलाग्स बनें। ऐसे में को अडैप्ट करने के लिए स्क्रीनप्ले तो लिखना ही होता है। किताब लिखना और स्क्रीन के लिए अडैप्ट करना दो अलग चीजें हैं। लेखक को स्क्रीनप्ले लिखने का अगर अनुभव नहीं होता है, तो उसे स्क्रीनप्ले लेखक या निर्देशक पर निर्भर होना पड़ता है, ताकि उनका अपनी किताब को लेकर जो विजन है, वह स्क्रीन पर सही तरीके से पेश हो। लेखक को अगर स्क्रीनप्ले लिखना आता हो, तो बहुत बढिय़ा हो जाता है। यह पूरा गिव एंड टेक वाला मामला होता है। वरना लेखक और निर्देशक दोनों को एक-दूसरे पर निर्भर होना पड़ता है। कई बार वह चीजें भी शामिल करनी पड़ती हैं, जो पुस्तक में नहीं है। मैंने 'ब्रिक लेन पुस्तक पूरी पढ़ी थी। किताब का बेस्ट पार्ट फिल्म में लिया गया था। शब्दों को स्क्रीन का रूप देने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, जो अच्छी बात है, क्योंकि इससे कंटेंट मजबूत बनता है।
किताब की ओर बढ़ता है आकर्षण
लेखक अजिंक्य भस्मे द्वारा लिखित पुस्तक '7 आवर्स एट भाटा रोड पर भी फिल्म बनाने का ऐलान पिछले दिनों हुआ है। अजिंक्य कहते हैं कि पुस्तक पर फिल्म बनना उस किताब के लेखक के लिए यह अच्छी बात होती है, क्योंकि इससे दर्शकों में किताब को पढऩे की भी रुचि बढ़ती है। आज कंटेंट देखने के लिए इतने माध्यम हैं कि दर्शकों को किताबें पढऩे का वक्त नहीं। पढऩे वालों की संख्या कम हो रही है। मैं इसे कमर्शियल दायरे में नहीं देखता हूं, जो कहानी सुनाना चाह रहा हूं, वह दर्शकों तक पहुंचनी जरूरी है, फिर उसका जरिया कुछ भी हो सकता है। दर्शक विजुअल कंटेंट देखते हैं, ऐसे में लेखक का कंटेंट अगर विजुअल फार्म में आ रहा है, तो लेखक को भी फायदा पहुंचता है। अब हैरी पाटर किताब को ही ले लीजिए, जब तक उस पर फिल्म नहीं थी, तब तक उस किताब के पाठक कम थे। फिल्म आते ही उसकी रीडरशिप 50 गुना बढ़ गई। किताब की लेखिका जे के रोलिंग की मेनूस्क्रिप्ट (पब्लिशर को दी गई पुस्तक की कापी जो प्रकाशित नहीं हुई है) को उससे पहले कई पब्लिशिंग हाउस ने रिजेक्ट किया था। एक बार एक पब्लिशर के बच्चे के हाथों में वह मेनूस्क्रिप्ट लगी, उसने एक-दो चैप्टर पढऩे के बाद कहा मुझे और पढऩा है। बच्चे की दिलचस्पी को देखकर पब्लिशर ने सोचा बच्चों के लिए किताब है, इसे प्रकाशित करना चाहिए। जब उस पर फिल्म बनी, तो पता चला कि यह तो हर उम्र के लिए है। प्रसिद्धि हमेशा अच्छी होती है, इससे पब्लिशर और लेखक दोनों को फायदा होता है। अपनी किताब को दूसरे के हाथों में देना मुश्किल होता है। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि लिखने की कला मुझमें है, लेकिन फिल्ममेकिंग की कला उनके हाथों में है, जो फिल्में बनाते हैं।
जरूरी नहीं हूबहू अडैप्टेशन
कई बार सिनेमा के मुताबिक क्रिएटिव लिबर्टी लेनी पड़ती है। कई बार पुस्तक को फिल्म में ढालते समय कुछ नए किरदार जोड़े भी जाते हैं। हाल ही में रिलीज हुई संजय लीला भंसाली की फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी लेखक एस. हुसैन जैदी की किताब 'माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई के एक अध्याय पर आधारित है। संजय इससे पहले भी किताब पर आधारित फिल्में 'देवदास और 'सांवरिया बना चुके हैं। 'सांवरिया फिल्म फ्योडोर डोस्तोयेव्स्की की किताब 'व्हाइट नाइट पर बनी थी। संजय का मानना है कि कई बार पुस्तकोंं के किरदारों को मेकर्स को लेखक से इतर अपने व्यक्तिगत विचारों के मुताबिक बदलना पड़ता है। जैसा 'माफिया क्वीन्स आफ मुंबई में गंगा उर्फ गंगूबाई के प्रेमी रमणीक साथ शादी करके मुंबई आने का जिक्र है, जबकि फिल्म में दोनों की शादी का जिक्र नहीं है। संजय कहते हैं कि मुझे रमणीक पर समय बर्बाद नहीं करना था। रमणीक सबसे घृणास्पद किरदार था। उसके बारे में पढ़ते या लिखते हुए बहुत गुस्सा आता था। स्क्रिप्ट लिखने के दौरान बात हुई कि रमणीक को लाना चाहिए। मैंने कहा यह आदमी वापस कैसे आ सकता है। ऐसे लोग जो मासूम जिंदगी को बर्बाद कर देते हैं, मुझे नहीं लगता कि धरती पर उनके लिए जगह है। प्रदीप सरकार भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि किताब में किरदारों के भाव को एक्सप्रेशन के जरिए बयां करने के लिए नई चीजें जोडऩी पड़ती हैं। प्रदीप कहते हैं कि किताब में लिखे शब्दों को मैच नहीं किया जा सकता है। किताब में सिचुवेशन समझाई जाती है, फिल्मों में हमें उसे दिखाना पड़ता है। 'परिणीता' उपन्यास में लिखा गया है कि बेटा पिता के सामने विरोध करता है। लेकिन वह विरोध माता-पिता को मारकर तो नहीं करेंगे ना। तो हमने सैफ के किरदार को दीवार तोडऩे वाला सीन दिया। वह उसका विरोध है। दीवार तोड़कर वह अपनी प्रेमिका को घर के अंदर लाता है। हमने सैफ को असली फावड़ा दिया था, ताकि दीवार तोड़ते वक्त उसका भारीपन महसूस हो।
किरदार के लिए रेफरेंस
कलाकार अपने किरदार की तैयारियों के लिए पहले उस किरदार को समझने का प्रयास करते हैं। सतीश कौशिक का मानना है, जब आप किसी पुस्तक पर आधारित किरदार निभाते हैं, तो कलाकार को किरदार के लिए कई रेफरेंसेस मिल जाते हैं। पुस्तक में किरदार को लेकर सारी डिटेल्स लेखक लिखते हैं कि वह किरदार किस माहौल में रहा है, उसके हावभाव क्या हैं। उसकी सोच क्या है, उस वक्त का सामाजिक, राजनीतिक माहौल कैसा है, काम क्या करता है, आदतें कैसी हैं। जब मैंने ब्रिक लेन में चानू अहमद का किरदार किया था, तो ब्रिक लेन पुस्तक में कई ऐसी चीजें थी, जिसने उसे निभाने में मेरी मदद की। एक सीन में मुझे अपनी बेटी को गुस्से में मारना था। मैंने निर्देशक से कहा कि कोई पिता अपनी बेटी को ऐसे नहीं मारता है। मैंने किताब में पढ़ा है कि वह अपना गुस्सा अखबार को रोल करके उससे मारकर निकालता है और केले के छिलके से मारता है, जो शारीरिक हिंसा का हिस्सा नहीं है, उससे चोट नहीं लगती है। निर्देशक हैरान थे कि मैंने डिटेलिंग पढ़ी है। पुस्तक हमेशा कलाकार को परफार्म करने में मदद करती है।
पुस्तक के साथ छेड़छाड़ नहीं
पिछले दिनों सुजाय घोष ने नेटफ्लिक्स के लिए बनाई जा रही फिल्म की घोषणा की है, जो वर्ष 2005 में आई कीगो हिगाशिनो द्वारा लिखित जापानी पुस्तक 'द डिवोशन आफ सस्पेक्ट एक्स पर आधारित होगी। फिल्म में करीना कपूर खान के साथ जयदीप अहलावत और विजय वर्मा भी नजर आएंगे। इसमें नए किरदार को जोडऩे को लेकर सुजाय कहते हैं कि यह उपन्यास बहुत खूबसूरती के साथ लिखा गया है। मैंने जितनी भी प्रेम कहानी पढ़ी हैं, उनमें से यह किताब सबसे बेहतरीन है। ऐसे में किताब के साथ छेड़छाड़ क्यों करना। इसे जैसे लिखा गया है उसी तरह बनाने की कोशिश होगी।
इन किताबों पर बनेगी फिल्में और वेब सीरीज
पिप्पा - फिल्म की कहानी ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता की किताब द बर्निंग चाफीस पर आधारित है। साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ब्रिगेडियर बलराम मेहता 45वें कैवेलरी टैंक स्क्वाड्रन का हिस्सा थे। खेल पत्रकार बोरिया मजूमदार की किताब मैवरिक कमिश्नर- द आइपीएल ललित मोदी सागा पर बनेगी फिल्म। फिल्म का निर्माण विष्णुवर्धन इंदुरी कर रहे हैं। जापानी पुस्तक 'द डिवोशन आफ सस्पेक्ट एक्स पर बनने वाली फिल्म में करीना कपूर खान होंगी। '7 आवर्स एट भाटा रोड पर बन रही फिल्म में वत्सल सेठ और इशिता दत्ता मुख्य किरदार में होंगे। वहीं शेखर कपूर भी उनकी शिव ट्रायलाजी किताब के पहले पार्ट 'द इम्मोर्टल्स आफ मेलुहा पर वेब सीरीज बनाने वाले हैं। राजेश खन्ना की बायोपिक का निर्माण निखिल द्विवेदी करने वाले हैं। यह फिल्म लेखक गौतम चिंतामणि की किताब 'डार्क स्टार : द लोनलीनेस आफ बीइंग राजेश खन्ना पर आधारित होगी।