'वीराना' और 'पुराना मंदिर' जैसी हॉरर फ़िल्मों के निर्माता-निर्देशक तुलसी रामसे का निधन
सपनों की इस ख़ूबसूरत सी दुनिया में अचानक रामसे ब्रदर्स की एंट्री होती है और हिंदी सिनेमा को ऐसी फ़िल्में मिलती हैं, जहां भूत, प्रेत, आत्माएं और शैतान हैं।
मुंबई। हिंदी सिनेमा में हॉरर फ़िल्मों के एक नये जॉनर की शुरुआत करने वाले निर्माता तुलसी रामसे का आज सुबह निधन हो गया है। वो 75 साल के थे। रामसे ने 70 और 80 के दशक में रामसे ब्रदर्स के नाम से एक के बाद एक हॉरर फ़िल्मों का निर्माण किया था।
सत्तर का दशक हिंदी सिनेमा में ख़ास स्थान रखता है। यह वो दौर था, जब एंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन का सिनेमा में उदय हो रहा था। एक्शन और रोमांटिक फ़िल्में दर्शकों को सपनीली दुनिया में ले जा रही थीं। सिस्टम का सताया युवा अमिताभ बनने का सपना देखता था तो इश्क़ में गिरफ़्तार आशिक़ धर्मेंद्र-हेमा मालिनी जैसी मोहब्बत का तसव्वुर कर रहा था। सपनों की इस ख़ूबसूरत सी दुनिया में अचानक रामसे ब्रदर्स की एंट्री होती है और हिंदी सिनेमा को ऐसी फ़िल्में मिलती हैं, जहां भूत, प्रेत, आत्माएं और शैतान हैं। भावनाओं को निचोड़ने वाला रोमांस है, मगर मोहब्बत नहीं। हीरोइन दिन में गाने गाती है और रात के वीराने में चिल्लाती है। हीरो एक ऐसी ताक़त से लड़ने के लिए अभिशप्त है जो परलोक से आयी है।
रामसे ब्रदर्स की इन फ़िल्मों को भले ही सिनेमाई गुणवत्ता के लिहाज़ से बी-ग्रेड माना गया हो, मगर बिकिनी और नाइटी पहनने वाली हीरोइन के भड़काऊ अंग प्रदर्शन के चलते फ़िल्मों को दर्शकों की कमी नहीं होती थी। हॉरर तो था ही। हॉरर जॉनर के लिए समर्पित रहने की वजह से रामसे ब्रदर्स को हॉरर मास्टर कहा जाने लगा था।
रामसे ब्रदर्स की बायोग्राफी Don't Disturb The Dead- The Story Of the Ramsay Brothers के अनुसार, उनका परिवार 1947 में पार्टिशन के बाद मुंबई आ गया था। इलेक्ट्रॉनिक्स का कारोबार था। सत्तर के दशक में हॉरर फ़िल्मों का निर्माण करने से कई साल पहले 1954 में रामसे परिवार फ़िल्म निर्माण में उतर चुका था, मगर तब हॉरर फ़िल्में उनका स्पेशलाइज़ेशन नहीं था।
इसकी शुरुआत उनके निर्देशन में 1972 की फ़िल्म 'दो गज ज़मीन के नीचे' से हुई और इसके बाद रामसे ब्रदर्स ने एक के बाद एक हॉरर फ़िल्मों का निर्माण करके दहशत की एक अलग दुनिया रच दी। बतौर निर्माता-निर्देशक तुलसी रामसे ने आत्मा, बंद दरवाज़ा, तहखाना और 3 डी सामरी जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया था। छोटे नगरों और क़स्बों के कई सिनेमाघर एक निश्चित अंतराल के बाद रामसे ब्रदर्स की फ़िल्मों का प्रदर्शन करते रहते थे, क्योंकि एडल्ट सर्टिफिकेट के साथ आने वाली उनकी फ़िल्में सिनेमाघर मालिकों के लिए आय का भरोसेमेंद ज़रिया हुआ करती थीं।
तुलसी रामसे की फ़िल्मों में कुछ कलाकार नियमित रूप से काम करते रहे। इनमें सबसे ख़ास नाम अजय अग्रवाल है जो उनकी फ़िल्मों में मान्स्टर यानि दरिंदे का किरदार निभाते थे। लगभग साढ़े छह फुट के अजय रामसे को इस तरह शूट किया जाता था कि उनकी लम्बाई दर्शकों को दहशत में डाल दे। अजय ख़ुद यह कहते थे कि उन्हें मेकअप की ज़रूरत नहीं है। उनका हॉरर फेस किसी को भी डरा सकता है।
1993 में तुलसी रामसे ने छोटे पर्दे का रुख किया और ज़ी हॉरर शो का निर्माण-निर्देशन किया, जो काफ़ी सफल रहा था। 1998 में टीवी सीरीज़ नागिन भी उन्होंने बनायी। इनमें से कई फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफ़िस पर भी कामयाबी हासिल की। दहशत का यह दौर नब्बे की शुरुआत तक चला। इसके बाद राम गोपाल वर्मा और विक्रम भट्ट जैसे फ़िल्मकारों ने हॉरर फ़िल्मों की एक नई विधा शुरू कर दी और रामसे ब्रदर्स का दहशत फैलान का तरीक़ा दर्शकों को पुराना और हास्यास्पद लगने लगा था।