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‘पुष्पा- द राइज' से लेकर ' RRR' और केजीएफ चैप्टर- 2 तक, बॉवीवुड में छाया है एक्शन फिल्मों की खुमार

बालीवुड में फिल्में भले ही एक्शन जानर के तौर पर प्रमोट की जाएं लेकिन उन फिल्मों में अकेले एक्शन ही नहीं होता है। फिल्मों में एक्शन के साथ जब इमोशन और ड्रामा मिल जाता है तो वह फिल्म लार्जर दैन लाइफ हो जाती है।

By Ruchi VajpayeeEdited By: Published: Sat, 02 Apr 2022 03:24 PM (IST)Updated: Sat, 02 Apr 2022 03:24 PM (IST)
‘पुष्पा- द राइज' से लेकर ' RRR' और केजीएफ चैप्टर- 2 तक, बॉवीवुड में छाया है एक्शन फिल्मों की खुमार
Pushpa The Rise, RRR, KGF Chapter 2, Bollywood is full of These action films

प्रियंका सिंह, मुंबई। कोरोनाकाल में कई फिल्में डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज हुईंं, पर एक्शन फिल्मों के लिए फिल्मकारों की पसंद हैं थिएटर। ‘आरआरआर’, ‘सूर्यवंशी’ और ‘पुष्पा- द राइज पार्ट 1’ की सफलता पुष्ट करती है कि दर्शक भी ऐसी फिल्में थिएटर में ही देखना चाहते हैं। पिछले दो वर्ष में बनकर तैयार फिल्मों के साथ इस साल बन रही कई एक्शन फिल्में रिलीज की कतार में हैं। इनमें ‘अटैक पार्ट 1’, ‘हीरोपंती 2’, ‘धाकड़’, ‘मिशन मजनू’, ‘शमशेरा’, ‘विक्रम वेधा’ और ‘गणपत पार्ट 1’ प्रमुख हैं। एक्शन फिल्मों पर लगे दांव, उनके कलाकारों व फिल्मकारों की चुनौतियों की पड़ताल कर रही हैं प्रियंका सिंह

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बालीवुड में फिल्में भले ही एक्शन जानर के तौर पर प्रमोट की जाएं, लेकिन उन फिल्मों में अकेले एक्शन ही नहीं होता है। फिल्मों में एक्शन के साथ जब इमोशन और ड्रामा मिल जाता है तो वह फिल्म लार्जर दैन लाइफ हो जाती है। चाहे दक्षिण भारतीय फिल्में हों या हिंदी, एक्शन फिल्म में तभी होता है, जब बुराई पर अच्छाई की जीत को दिखाना होता है। स्टंट डायरेक्टर शाम कौशल कहते हैं कि ‘आरआरआर’ जैसी भारतीय फिल्म ने जिस तरह से दुनियाभर में इतनी कमाई की है, वह दर्शाता है कि हमारा भारतीय सिनेमा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच रहा है। हम भारतीय कहानी को इमोशंस के साथ मिलाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की एक्शन फिल्म बना सकते हैं। यह अच्छे सिनेमा की जीत है। दर्शकों की व्यापक रुचि को ध्यान में रखकर बनाई गई एक्शन फिल्म ‘लाइगर’ के निर्देशक पुरी जगन्नाथ कहते हैं कि हम साउथ इंडियन फिल्मकार ज्यादातर कमर्शियल फिल्में बनाते हैं, जिनमें बहुत सारा एक्शन होता है। जब आपकी कहानी के साथ-साथ एक्शन भी बढ़िया हो तो उसे पूरी दुनिया देखना पसंद करती है।

सदाबहार मार्केट:

आने वाले दिनों में कई एक्शन फिल्में रिलीज होने वाली हैं। ‘एक था टाइगर’ का निर्देशन कर चुके कबीर खान कहते हैं कि एक्शन फिल्मों के लिए मार्केट हमेशा रहता है। एक्शन फिल्में बनाना एक सेफ जानर है, क्योंकि इसे देखने वाले दर्शकों की संख्या अच्छी-खासी है। इसकी एक वजह यह है कि एक्शन फिल्मों में एक थ्रिल होता है। जब मैं छोटा था, तब मैं किसी फिल्म को देखने से पहले मम्मी से पूछता था कि इस फिल्म में फाइटिंग है या नहीं। अगर मम्मी कहती थीं कि फिल्म में फाइटिंग नहीं है तो मैं कहता था किअरे फिर तो यह बहुत बोरिंग फिल्म होगी, मुझे तो फाइटिंग देखनी है। यही वजह है कि अमिताभ बच्चन की सारी फिल्में मैंने देखी हैं। उनमें बहुत सारा एक्शन होता था, लेकिन अगर मार्केट में लगातार एक्शन फिल्में आ रही हैं तो जरूरी नहीं कि हर निर्माता-निर्देशक वह ट्रेंड फालो करे। मैं खुद नहीं करता हूं। मुझे लगता है कि एक्शन फिल्म तब बनानी चाहिए, जब उसका मार्केट ज्यादा गर्म न हो, तब लोग उसे देखकर उत्सुक होंगे और अगर वह फिल्म चलेगी तो लोग उत्सुक

होकर एक्शन फिल्में बनाएंगे।

हालीवुड और साउथ से बढ़ी चुनौतियां:

एक्शन के मामले में हालीवुड और साउथ इंडियन सिनेमा दोनों बेहतर माने जाते हैं। सिनेमा के वैश्वीकरण के साथ

हिंदी सिनेमा के फिल्मकारों को एक्शन के मामले में दोनों इंडस्ट्रीज से बड़ी चुनौतियां मिल रही हैं। इनसे निपटने के लिए कुछ फिल्मकार विदेशी एक्शन डायरेक्टर या कोरियोग्राफर के साथ काम कर रहे हैं तो कुछ दक्षिण भारतीय कलाकारों को हिंदी फिल्मों में शामिल कर रहे हैं। ‘वार’, ‘एक था टाइगर’, ‘बैंग बैंग’, ‘बागी 3’ जैसी फिल्मों में विदेशी एक्शन डायरेक्टर्स का सहारा लिया गया। जान अब्राहम की आगामी फिल्म ‘अटैक पार्ट 1’ में भी दक्षिण

अफ्रीकी एक्शन कोरियोग्राफर फ्रेंकोइस ग्रोबेलार ने एक्शन सीन कोरियोग्राफ किया है। इस बारे में फिल्म के निर्देशक लक्ष्य राज आनंद का कहना है कि निश्चित तौर पर हालीवुड और दक्षिण भारतीय फिल्में एक्शन के मामले में हमारे लिए एक बड़ी चुनौती हैं और हम इनका डटकर सामना कर रहे हैं। हमें बस अपनी पूरी क्षमता के अनुसार बेहतरीन कहानियां लोगों के सामने लानी हैं। ‘अटैक’ में हमने विदेशी एक्शन कोरियोग्राफर के साथ काम किया है, लेकिन एक्शन हमने अपनी शैली में ही किया है। मुझे एक्शन के मामले में बालीवुड के साथ-साथ दक्षिण भारतीय, हालीवुड और कोरियन फिल्में पसंद हैं, ऐसे में मैंने फिल्म में इन सबका एक मिला-जुला और नया एक्शन दिखाने की कोशिश की है।

कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलते वीएफएक्स:

पहले की फिल्मों में हाथों से या केबल से कूदने वाले दृश्यों को देखकर ही दर्शक उत्साहित हो जाते थे, लेकिन अब तो बाकायदा एक साल से डेढ़ साल सिर्फ फिल्म के एक्शन पर लगाया जाता है। ‘तान्हाजी- द अनसंग वारियर’ जैसी एक्शन और विजुअल इफेक्ट्स से भरपूर फिल्म का निर्देशन कर चुके निर्देशक ओम राउत की आगामी फिल्म ‘आदिपुरुष’ होगी। यह फिल्म रामायण से प्रेरित है, जिसकी शूटिंग पूरी हो चुकी है। इसके पोस्ट प्रोडक्शन पर काम चल रहा है। रामायण के कौन से अध्याय को ओम फिल्म में लेकर आएंगे, इसको लेकर उन्होंने कुछ नहीं बताया, लेकिन फिल्म में श्रीराम द्वारा रावण का वध करने वाले आइकानिक सीन को लेकर क्या तैयारी होगी और एक्शन सीन के साथ विजुअल इफेक्ट्स का तालमेल कैसा होगा, इसे लेकर वह कहते हैं कि जब हमने रामानंद सागर के धारावाहिक ‘रामायण’ को टेलीविजन पर देखा था, तब जो उन्होंने उसमें दिखाया था, वह हमने उससे पहले नहीं देखा था। उन दृश्यों में जो भावनाएं थीं, वे आज भी कायम ह। प्रेजेंटेशंस तो वक्त के साथ बदलती रहेंगी। तकनीक बदलती रहती है। रामायण फिर से कोई बनाएगा। विजुअल इफेक्ट्स फिल्ममेकर के पास टूल की तरह होते हैं, जिसका इस्तेमाल वह कहानी और दृश्यों को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए करते हैं। इस फिल्म

में हमने विजुअल इफेक्ट्स का खूब इस्तेमाल किया है।

कहानी की तरह होता है एक्शन सीन:

पवन कल्याण के साथ एक्शन एडवेंचर तेलुगु फिल्म ‘हरी हर वीरा मल्लू’ कर रहे शाम कौशल इस संबंध में कहते हैं कि एक सीन बड़ा तब बनता है, जब उस सीन को लेकर जो सोचा गया है वह पर्दे पर आ जाए। अगर तकनीक का ज्ञान है तो क्यों उसका इस्तेमाल न किया जाए। पूरा एक्शन सीक्वेंस एक कहानी की तरह होता है, जिसका पहले स्क्रीनप्ले बनता है, जैसे ‘आरआरआर’ में एक बच्चे को बचाने वाला सीन था तो पहले उसको बचाने के तरीकों के बारे में सोचा गया होगा। फिर उस सीन को बड़ा बनाने के लिए उसमें ट्रेन वाला सीन डाला गया। दो हीरो थे तो उनके हीरोइज्म का खयाल भी रखा गया। जितना ज्यादा वह बच्चा खतरे में होगा, उतना ज्यादा हीरोइज्म होगा, उसके लिए उतना भव्य एक्शन सीन बनाया जाएगा। किसी भी एक्शन सीन के लिए पहले स्टोरीबोर्ड बनता है, फिर उसे प्रीविजुअलाइज करने के लिए उसका एनीमेशन बनाया जाता है, ताकि वीएफएक्स वालों को पता रहे कि कौन से सीन लाइव होंगे, किस पर विजुअल इफेक्ट्स का इस्तेमाल होगा। साल-डेढ़ साल पहले इस पर काम शुरू हो जाता है।

एक्टर्स के साथ हमारे पास भी स्क्रिप्ट होती है। पहले का जमाना नहीं है कि सेट पर जाकर एक्शन डिजाइन कर लेंगे। अब पहले से निर्माता को बताना होता है कि खास एक्शन सीन के लिए हमारी जरूरतें क्या होंगी। समर्पित होना पड़ता है एक्शन दृश्य मुश्किल होते हैं, लेकिन वे पर्दे पर दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर भी करते हैं। ऐसे में कलाकार उनमें अपना सौ प्रतिशत देते हैं। ‘केजीएफ- चैप्टर 2’ की शूटिंग के दौरान संजय दत्त कैंसर से जूझ रहे थे। इसके बावजूद उन्होंने एक्शन दृश्यों को क्रोमा (हरे रंग के पर्दे के सामने शूटिंग करके, उसे विजुअल इफेक्ट के जरिए वास्तविक जैसा बनाया जाता है) पर शूट नहीं किया। वह कहते हैं कि मैं जिद्दी हूं। कैंसर है तो क्या हुआ। मैंने ठान लिया था कि मैं अपने एक्शन खुद करूंगा। मुझे फिल्म के निर्देशक प्रशांत नील और अभिनेता यश ने कहा था कि हम क्लाइमेक्स का सीन हरे पर्दे पर करेंगे। मैंने उन्हें कह दिया था कि अगर हरे पर्दे पर शूटिंग करेंगे तो मैं उसमें काम नहीं करूंगा। आग और धुंए वाले भी दृश्य होंगे तो हों, मैं सब खुद करूंगा।

एक्शन पर्दे पर बनाता है हीरो

एक्शन चाहे कोई अभिनेत्री करे या फिर अभिनेता, उसमें एक हीरोइज्म होता है। जेंडर से फिर फर्क नहीं पड़ता है। कलाकार आगे बढ़कर एक्शन फिल्में करने की डिमांड कर रहे हैं। आगामी दिनों में ‘गणपत पार्ट 1’ में कृति सैनन, ‘धाकड़’ में कंगना रनोट, ‘टाइगर 3’ में कट्रीना कैफ, ‘पठान’ में दीपिका पादुकोण एक्शन अवतार में दिखेंगी। स्टंट डायरेक्टर्स कहते हैं कि आज हर कलाकार वह करने के लिए तैयार है, जो हम उससे कराना चाहते हैं। बाउंड स्क्रिप्ट का जमाना है। जब कोई भी कलाकार किसी फिल्म के लिए हां करता है तो उन्हें पता होता है कि एक्शन दृश्य में क्या करना है, घुड़सवारी है, तलवारबाजी है, हाथों से लड़ना है। दर्शकों को चीट नहीं किया जा सकता है, इसलिए हीरो या हीरोइन स्टंट खुद करना चाहते हैं। उन्हें पता होता है कि क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए, क्योंकि उन पर बड़ा बजट लगा है।


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