धाकड़, टाइगर 3 और ब्रह्मास्त्र में एक्शन का दम दिखाएंगी ये एक्ट्रेस, फ्लावर नहीं फायर हैं ये अभिनेत्रियां
प्रियंका चोपड़ा दीपिका पादुकोण और कंगना रनोट जैसी अभिनेत्रियां जिस तरह का स्टंट करती हैं वह अभिनेताओं वाले स्टंट से कहीं ज्यादा मुश्किल होते हैं। अभिनेत्रियां पूरे ध्यान के साथ स्टंट परफार्म करती हैं जबकि कई अभिनेताओं का स्टंट परफॉर्म करते वक्त ध्यान अलग-अलग जगहों पर बंटा रहता है।
दीपेश पांडेय,मुंबई। हिंदी सिनेमा की शुरुआत से ही एक्शन जानर में पुरुषों का दबदबा रहा है, पर अब इसमें भी अभिनेत्रियां अपना जलवा दिखा रही हैं। प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, कंगना रनोट, कट्रीना कैफ समेत कई अभिनेत्रियां एक्शन सीन कर रही हैं। एक्शन की दुनिया में महिलाओं की बढ़ती धमक, निर्माताओं और दर्शकों के बदलते रवैये और महिलाओं चुनौतियों की पड़ताल कर रहे हैं दीपेश पांडेय।
महिलाओं के मुद्दों को लेकर हालीवुड बॉलीवुड से ज्यादा प्रायोगिक रहा है और यह बात एक्शन के मामले में भी लागू होती है। हालीवुड में अब तक 'एलियन' (1979), 'द लांग किस गुडनाइट' (1996), 'किल बिल' (2003), 'मैड मैक्स- फ्यूरी रोड' (2015), 'वंडर वुमन' (2017), 'कैप्टन मार्वेल' (2019), 'एक्स मेन- डार्क फोनिक्स' (2019) और 'ब्लैक विडो' (2021) समेत कई महिला प्रधान एक्शन फिल्में आ चुकी हैं। जिनमें अभिनेत्रियों ने दांतों तले उंगली दबा लेने वाले एक्शन सीन किए हैं। हिंदी सिनेमा में पिछली सदी के सातवें, आठवें और नौवें दशक में हेमा मालिनी, रेखा और श्रीदेवी जैसी अभिनेत्रियों ने 'रजिया सुल्तान' (1983), अंधा कानून (1983), खून भरी मांग (1988) और 'शेषनागÓ (1990) जैसी फिल्मों में कुछ एक्शन किया था। उसके बाद अभिनेत्रियों को ज्यादातर एक्शन से दूर ही रखा गया। कुछ अभिनेत्रियों ने एक्शन किया भी तो लोगों ने उन्हें नकार दिया। 'धूम 2Ó (2006) में ऐश्वर्या राय बच्चन और बिपाशा बसु के एक्शन की कुछ झलकियां दिखी। फिल्म 'द्रोणा' (2008) और 'चांदनी चौक टू चाइनाÓ (2009) में प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण के कुछ शानदार एक्शन सीन थे। टाइगर (2012), कृष 3 (2013), बेबी (2015) फिल्मों में क्रमश: कट्रीना कैफ, कंगना रनोट और तापसी पन्नू के भी एक्शन सीन शानदार रहे और उनके एक्शन की चर्चा भी हुई।
इसी बीच मैरी काम (2014), मर्दानी (2014), अकीरा (2016), जय गंगाजल (2016) और मणिकर्णिका- द क्वीन आफ झांसी (2019) जैसी कुछ महिला प्रधान फिल्में आईं। जिनमें सिर्फ महिलाओं का एक्शन केंद्र में रहा। आगामी दिनों में कंगना रनोट, दीपिका पादुकोण, कट्रीना कैफ और कृति सैनन भी क्रमश: 'धाकड़', 'पठान', 'टाइगर 3' और 'गणपत' फिल्मों में जबरदस्त एक्शन करती नजर आएंगी। हिंदी सिनेमा में महिलाओं के एक्शन करने को लेकर कंगना कहती हैं, 'रेखा जी और हेमा जी अपने समय में कमाल की अदाकारा रही हैं। उन्होंने ही इंडस्ट्री में लड़कियों को उनके मौजूदा स्तर तक पहुंचाया है। आज हमें जो सुविधाएं मिल रही हैं, वह उन्होंने ही हमें दी है। अब हमारा कर्तव्य उनके द्वारा किए कामों को आगे बढ़ाना है, और शीर्ष तक पहुंचाना है। जहां पर हमें मुख्य अभिनेत्री के तौर पर नहीं, बल्कि मुख्य कलाकार के तौर देखा जाए।
लड़कियां किसी से कम नहीं
इमोशन हो एक्शन अब महिलाएं पुरुष कलाकारों को बराबरी की टक्कर देती दिख रही हैं। तेलुगु फिल्म 'वलिमै' में एक्शन करने वाली अभिनेत्री हुमा कुरैशी एक्शन को लेकर कहती हैं, 'बाईक चेज (पीछा करना), लड़ाई, कार चेज या स्टंट कोई भी एक्शन सीक्वेंस हो, हमें भी एक्शन करने में उतना ही मजा आता है, जितना लड़कों को आता है। 'वलिमै' में मैंने पहली बार पुलिस अधिकारी का किरदार निभाया। इस फिल्म में निर्देशक ने मुझे बहुत कमाल के एक्शन सीक्वेंस दिए थे। इस फिल्म के लिए एक्शन और चेज सीक्वेंस की शूटिंग करने के बाद मैंने अपने निर्देशक के चेहरे पर जो खुशी देखी, वो मेरे लिए सबसे बड़ा अवार्ड है। इसके लिए मैंने दस दिनों की किक और पंचिंग जैसी बेसिक एक्शन ट्रेनिंग की थी। लड़कियों को तो वैसे भी एक्शन करना चाहिए।
पसीना बहाने में पीछे नहीं
अपने चेहरे, त्वचा और खूबसूरती का ध्यान रखने के साथ अभिनेत्रियां एक्शन को सही तरीके से फिल्माने के लिए जिम में पसीना बहाने और अलग-अलग तरीके की ट्रेनिंग करने में भी पीछे नहीं रहती हैं। फिल्म 'गणपत' में अपने एक्शन और तैयारियों को लेकर कृति कहती हैं, 'इस फिल्म में एक योद्धा की तरह दिखना है। इसके लिए मैंने फ्रेंच कंट्रास्ट ट्रेनिंग शुरू की है। इस ट्रेनिंग से मांसपेशियां बनाने में मदद मिलती है। इसके लिए मुझे कई तरह के कठिन व्यायाम करने पड़ रहे हैं। इस फिल्म के लिए हथियार चलाने, किक बाक्सिंग, कई आदमियों को पीटने की ट्रेनिंग लेना मेरे लिए मजेदार रहा। फिल्म 'मिमी' में 15 किलो वजन बढ़ाने के बाद मेरे लिए वजन कम करना और एक्शन करना आसान नहीं था। वहीं अपनी ट्रेनिंग को लेकर कंगना कहती हैं, 'फिल्म 'धाकड़' में बहुत सारी गन
हैं। रेजी (निर्देशक रजनीश रेजी घई) को उनके बारे में काफी जानकारी है। वह आर्मी बैकग्राउंड से हैं, तो सारे हथियारों के नाम भी जानते हैं। एक-एक गन 25-25 किलो की थी। मैंने कहा कि यह असली गन है, मैं तो उन्हें उठा भी नहीं पाऊंगी, फिर उससे निशाना भी लगाना है। फिर रेजी ने कहा कि आपको असली गन ही उठानी होगी। उस समय फिजिकली मुझमें इतनी स्ट्रेंथ नहीं थीं, क्योंकि मैं कुछ दिनों पहले ही कोरोना संक्रमण से उबरी थी। फिर भी मैंने वो स्ट्रेंथ बनाया। फिर असली गन के साथ काम किया।
दर्शक तैयार
मौजूदा दौर में फिल्मकारों के साथ दर्शक भी महिलाओं को बड़े पर्दे पर अलग-अलग रूपों में देखने के लिए तैयार हैं। भारत में 'वंडर वुमन', 'ब्लैक विडो' और 'एक्स मेन-डार्क फोनिक्स' जैसी फिल्मों की सफलता इसका प्रमाण है।
दर्शकों के बदलते रवैये को लेकर फिल्म निर्देशक नूपुर अस्थाना कहती हैं, 'पहले घरों में आमदनी का मुख्य जरिया पुरुष होते थे। वहीं परिवार को फिल्में दिखाने सिनेमाघर ले जाते थे और निर्णय लेते थे कि कौन सी फिल्म देखी जाए। इसलिए पहले हमारे यहां अधिकतर फिल्में पुरुष प्रधान बनी हैं। महिलाओं को तो हमेशा से अपनी कहानियां देखने का शौक रहा है, लेकिन उन्हें प्लेटफाम्र्स नहीं मिल रहे थे। जब हमारे यहां टीवी आया तो वहां पर महिलाओं
को अपनी पसंद की कहानियां देखने की स्वतंत्रता मिली। उसके बाद देखा जा सकता है कि ज्यादातर धारावाहिक महिला प्रधान ही रहे हैं। इसका प्रभाव अब सिनेमा पर भी देखा जा सकता है।
शक्ति का अहसास
एक्शन फिल्में महिलाओं के इमोशनल और ग्लैमरस पहलू से अलग उनकी मजबूती, शक्ति और दृढ़ता को प्रदर्शित करती हैं। ऐसी फिल्में दर्शकों में भी संदेश देती हैं कि महिलाओं से पंगा लेना आसान नहीं है। फिल्म मर्दानी के निर्देशक प्रदीप सरकार कहते हैं, 'हमने मर्दानी में नायिका को ज्यादा ग्लैमराइज या स्टाइलिश नहीं बनाया था। हमारी पूरी कोशिश चीजों को वास्तविक और स्वाभाविक दिखाने की रही थी। हमारे सेट पर एक बहुत लंबा-चौड़ा आदमी काम करता था। एक दिन सेट पर बातों-बातों में रानी (रानी मुखर्जी) ने मुझसे पूछा कि यह बंदा मुझसे कैसे डरेगा? क्योंकि इसका शरीर ऐसा है कि इसके डरने का सवाल ही नहीं उठता। उसके बाद हमने काफी सोच-विचार किया और उनके कुर्सी पर खड़े होकर लंबे-चौड़े शख्स को थप्पड़ पर थप्पड़ मारने वाला सीन डिजाइन किया। किसी लड़की से थप्पड़ खाने बाद किसी भी आदमी का डरना स्वाभाविक है। ऊपर से जब कोई महिला आंखों में आंखें डालकर थप्पड़ पर थप्पड़ मारे तो कोई भी आदमी नहीं टिक सकता। यह सीन शिवानी शिवाजी राय (रानी मुखर्जी के किरदार का नाम) के निडर व्यक्तित्व को दर्शाता है। फिल्म के क्लाइमेक्स में या देवी
सर्वभूतेषु.. मंत्र भी चलता है। इसके पीछे हमारा उद्देश्य यह बताना था कि लड़कियों को अपनी ताकत का अहसास हो गया है, उनसे पंगा मत लो। रानी ने इस फिल्म में अपने सारे एक्शन खुद किया था। उन्होंने किसी डुप्लीकेट या बाडी डबल का इस्तेमाल नहीं किया था।
बराबरी का हक
हिंदी सिनेमा में हमेशा से अभिनेत्रियों को बराबर काम करने के बावजूद अभिनेताओं से कम पैसे मिलने की शिकायत रही है। हालांकि अब धीरे-धीरे ही सही, लेकिन यह शिकायत दूर होती दिख रही है। काम के हिसाब से अब कंगना रनोट, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा और आलिया भट्ट जैसी कई अभिनेत्रियों को संतोषपरक राशि भुगतान की जा रही है। इसे बारे में कंगना कहती हैं, 'आज यह मैं गर्व से कह सकती हूं कि मुझे किसी से कम पैसे नहीं मिल रहे हैं। इसके लिए मैं लोगों की शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मुझे और मेरे काम को इसके योग्य समझा। मेरी जिंदगी में एक वो भी वक्त था, जब मैं सोचती थी कि मैं भी हीरो के बराबर काम कर रही हूं, लेकिन मुझे कम पैसे क्यों मिल रहे हैं। हालांकि आज मेरे साथ ऐसा नहीं है। वहीं इस बदलाव को लेकर प्रदीप सरकार कहते हैं, 'यह बदलाव तो आ गया है कि अब हम लड़की या लड़के को देखकर फिल्म या टिकट का बजट नहीं तय करते हैं। अब लड़कियां भी लड़कों के साथ बराबरी से आगे बढ़ रही हैं। लोग न सिर्फ बड़ी संख्या में महिला प्रधान एक्शन फिल्में देख रहे हैं, बल्कि यकीन भी कर रहे हैं कि ऐसे भी हो सकता है।
हमेशा ताकतवर रही हैं महिलाएं
हमें इसका लेट अहसास हुआ कि किसी काम का महिला या पुरुष से कोई लेना-देना नहीं है। मैंने यह देखा है कि जब कोई आदमी दिन भर अपने आफिस का काम करके आता है, तो वह और कोई काम करने के लायक नहीं रहता है। वहीं महिलाएं आफिस से आने के बाद खाना बनाती हैं, बच्चों की देखभाल करती हैं और सारा काम करती हैं। सामान्यत: पुरुष बहुत कम समय के लिए ही शारीरिक तौर पर महिलाओं से मजबूत होते हैं, जब वो जवान होते हैं। उसके पहले और बाद में महिलाएं उनसे कहीं ज्यादा मजबूत होती हैं। इसलिए महिलाएं हर मामले में पुरुषों की तुलना में ज्यादा मजबूत होती हैं। उनमें किसी दर्द या पीड़ा सहने की क्षमता भी पुरुषों से कहीं ज्यादा है। पुरुषों में अहंकार बहुत ज्यादा है, इसलिए हमें यह अहसास करने और स्वीकार करने में ज्यादा समय लगा।-अरशद वारसी, अभिनेता
लड़कियां बेस्ट है
महिलाओं के एक्शन को लेकर धाकड़, टाइगर 3 और ब्रह्मास्त्र फिल्मों के एक्शन डायरेक्टर परवेज शेख कहते हैं, 'प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और कंगना रनोट जैसी अभिनेत्रियां जिस तरह का स्टंट करती हैं, वह अभिनेताओं वाले स्टंट से कहीं ज्यादा मुश्किल होते हैं। अभिनेत्रियां पूरे ध्यान के साथ स्टंट परफार्म करती हैं, जबकि कई अभिनेताओं को देखा गया है कि स्टंट परफॉर्म करते वक्त उनका ध्यान अलग-अलग जगहों पर बंटा रहता है। इस वजह से कई बार रीटेक लेने पड़ते हैं या कई बार हमें ही जुगाड़ करके सीन पूरे करने
पड़ते हैं। इस मामले में लड़कियां बेस्ट हैं।