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Interview:'मैं किरदार को व्यक्त करने के लिए मेकअप करता हूं न कि हीरो बनने के लिए'- केके मेनन

मैं किरदार को व्यक्त करने के लिए मेकअप करता हूं न कि हीरो बनने के लिए। हां प्रास्थेटिक में कुछ चीजें हैं जो आपको सहन करनी पड़ती है कि जैसे आपको मेकअप लगाकर घंटों बैठना पड़ता है लेकिन जब चीजें रोमांचक होती हैं तो वहां दिक्कतें नजरअंदाज हो जाती हैं।

By Anand KashyapEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 10:46 AM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 10:46 AM (IST)
Interview:'मैं किरदार को व्यक्त करने के लिए मेकअप करता हूं न कि हीरो बनने के लिए'- केके मेनन
बॉलीवुड अभिनेता केके मेनन , Instagram: kaykaymenon02

मुंबई, जेएनएन। नेटफ्लिक्स पर 25 जून को रिलीज होने वाली एंथोलाजी सीरीज ‘रे’ में नजर आएंगे अभिनेता के. के. मेनन। उनसे बातचीत के अंश...

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सत्यजित रे अपने पीछे शानदार विरासत छोड़ गए हैं। उनके सिनेमा की प्रासंगिकता को आज कहां पर पाते हैं?

जहां तक सत्यजित साहब का सवाल है वह उतने ही प्रासंगिक हैं। उनकी कहानियां आज भी सटीक बैठती हैं। मेरे ख्याल से उनकी कहानियां मेरी पीढ़ी के बाद भी ऐसे ही चलती रहेंगी। जहां तक इस सीरीज का सवाल है तो इसमें उनकी कहानी बहरूपिया का इंटरप्रिटेशन श्रीजित मुखर्जी ने किया है। सत्यजित साहब अगर आज जिंदा होते तो ‘रे’ सीरीज देखकर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट जरूर आती।

इस सीरीज का प्रस्ताव मिलने पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?

जब श्रीजित मुखर्जी ने मुझे फोन कर इसके बारे में बताया मैंने तभी हांमी भर दी थी। बहुत सारी चीजें इसमें ऐसी हैं जो कलाकार को लालच देती हैं। निर्देशक पसंदीदा हैं तो वो एक बात हो गई। सत्यजित साहब की कहानी को जिस तरह से उन्होंने इंटरप्रेट किया, वह तरीका भी बहुत रास आया।

 

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इसमें आपका किरदार मेकअप आर्टिस्ट का है। मेकअप के क्या अनुभव हैं आपके?

मेकअप मेरे अभिनय का हिस्सा है। (हंसते हुए) मैं किरदार को व्यक्त करने के लिए मेकअप करता हूं न कि हीरो बनने के लिए। हां, प्रास्थेटिक में कुछ चीजें हैं जो आपको सहन करनी पड़ती है कि जैसे आपको मेकअप लगाकर घंटों बैठना पड़ता है, लेकिन जब चीजें रोमांचक होती हैं तो वहां दिक्कतें नजरअंदाज हो जाती हैं।

गंभीर किरदारों में आप काफी सहज नजर आते हैं...

सहज दिखने के लिए काफी काम करना पड़ता है। मसलन बातचीत कर रहे हैं तो कोशिश यही रहती है कि उसे देखकर लगे कि किरदार ने वो लाइन तुरंत ईजाद की। ऐसा न लगे कि जो डायलॉग दिया गया, उसे एकदम शायराना तरीके से बोल दिया। दरअसल हर एक्टर का अपना तरीका होता है। मैं तो अपने निर्देशक और लेखक से किरदार के बारे में काफी चर्चा करता हूं।

बहरूपिया से क्या टेकओवर रहा?

बहुत ही यादगार। एक तो कोलकाता और बाकी टीम भी, सब शानदार रहे। यह मेरे लिए अविस्मरणीय रहा।


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