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International Dance Day Special: 'देवदास' से 'पुष्पा: द राइज' तक इतना बदल गया बॉलीवुड का डांस

International Dance Day Special डांस को पूजा मानने वाले प्रख्यात कथक नृत्य गुरु स्वर्गीय पंडित बिरजू महाराज ने दिल तो पागल है देवदास विश्वरूपम और बाजीराव मस्तानी जैसी चुनिंदा फिल्मों में कोरियोग्राफी की। उनका कहना था डांस आपको उम्रदराज महसूस नहीं होने देता है

By Ruchi VajpayeeEdited By: Published: Thu, 28 Apr 2022 04:05 PM (IST)Updated: Fri, 29 Apr 2022 07:00 AM (IST)
International Dance Day Special: 'देवदास' से 'पुष्पा: द राइज' तक इतना बदल गया बॉलीवुड का डांस
Image Source: Madhuri Dixit Fan page on Instagram

प्रियंका सिंह/दीपेश पांडेय, मुंबई। संगीत और डांस भारतीय सिनेमा को अलग पहचान देते हैं। बदलते वक्त और सिनेमा के वैश्वीकरण के साथ भारतीय सिनेमा के डांस में काफी परिवर्तन आया है। वेस्टर्न डांस के बढ़ते प्रभाव के साथ कुछ निर्माता अब विदेशी कोरियोग्राफर्स को भी सेट पर रखने लगे हैं। आज (29 अप्रैल) विश्व डांस दिवस पर हिंदी सिनेमा में डांस की अहमियत, बदलते डांस स्टाइल और कोरियोग्राफर्स की चुनौतियों की पड़ताल की प्रियंका सिंह व दीपेश पांडेय ने कलाकारों के लिए डांस सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम भी होता है। डांस को पूजा मानने वाले प्रख्यात कथक नृत्य गुरु स्वर्गीय पंडित बिरजू महाराज ने 'दिल तो पागल है, 'देवदास', 'विश्वरूपम और 'बाजीराव मस्तानी जैसी चुनिंदा फिल्मों में कोरियोग्राफी की। उनका कहना था, 'डांस आपको उम्रदराज महसूस नहीं होने देता है, क्योंकि यह चचंल है, इसमें गति है।अगर आप डांस करने लगे तो सदा ताजा रहोगे।

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 फिल्म निर्देशक और पंडित बिरजू महाराज के भतीजे हर्ष मिश्रा उनकी बायोपिक बनाने की तैयारी में हैं। हर्ष कहते हैं कि हम पंडित बिरजू महाराज जी को एक कोरियोग्राफर के रूप में जानते हैं, जिन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था, लेकिन हम उनकी यात्रा, संघर्ष और विरासत के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। फिल्म में उनकी प्रेरक जिंदगानी कथक की कला के प्रदर्शन के साथ दर्शाएगी कि कैसे पंडित बिरजू महाराज ने इसे आधुनिक समय के साथ अडैप्ट किया। मैं इस फिल्म को वर्ष 2015 से ही बनाना चाह रहा हूं। मैंने इसकी चर्चा बिरजू महाराज से भी

की थी और अनुमति मांगी थी। महाराज इसमें अपने उम्रदराज किरदार की भूमिका को खुद निभाने के इच्छुक थे, लेकिन दुर्भाग्य से फिल्म शुरू होने से पहले ही उनका निधन हो गया। वहीं डांस को लेकर अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी का कहना है, 'मेरे लिए डांस एक भावना है, एक अहसास है, एक ऐसी भाषा है जो दुनिया का हर व्यक्ति समझता है। आप रूसी हो, बंगाली या दुनिया के किसी भी कोने से हों, लेकिन जब संगीत पर पैर थिरकने लगते हैं तो हर शख्स उसे समझ लेता है। डांस कोई भी, कहीं भी कर सकता है।

अभिन्न अंग

मौजूदा दौर में फिल्मकार अलग-अलग तरह की कहानियों के साथ प्रयोग कर रहे हैं। इन्हीं प्रयोगात्मक कदमों के तहत कुछ फिल्में बिना गाने और डांस केबनाई जा रही हैं, हालांकि ऐसी फिल्मों की संख्या सिर्फ गिनी-चुनी है।

सिनेमा इंडस्ट्री के विशेषज्ञ भी डांस को भारतीय सिनेमा का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। इस बारे में अभिनेता अभिषेक बच्चन करते हैं, 'फिल्मों में मेरी सबसे पसंदीदा चीज नाच-गाना ही है। यह भारतीय सिनेमा को पहचान देता है। सेट

पर पूरी एनर्जी के साथ डांस करना काम के लिहाज से मेरा पसंदीदा हिस्सा है। आजकल ऐसी कई कहानियां बन रही हैं, जिनमें नाच-गाने के लिए जगह नहीं होती है। वह भी ठीक है, लेकिन डांस भारतीय सिनेमा का खूबसूरत हिस्सा है और वह फिल्मों से कभी खत्म नहीं होगा।

नए कलेवर में क्लासिकल डांस

चूंकि डांस पुरातन काल से भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है, इसलिए फिल्मकार कहानी, परिस्थिति और स्थान के मुताबिक अपनी फिल्मों में अलग-अलग शास्त्रीय नृत्य और लोकनृत्य शामिल करते रहे हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर क्षेत्र के अपने लोक नृत्य हैं। इनमें स्टेप के साथ-साथ श्रृंगार, परिधान और आभूषण जैसी चीजें बदलती रहती हैं। मौजूदा दौर के सिनेमा में भारतीय क्लासिकल डांस पर कोरियोग्राफर और फिल्मकार अहमद खान का कहना है, 'इंडियन क्लासिकल डांस के साथ हमने वेस्टर्न डांस में भी हिप हाप, ब्रेक डांस, जैज, बेली और फंकी समेत कई डांस स्टाइल सीखे। इंडियन क्लासिकल और बालीवुड स्टाइल तो हमारे खून में है। यह हमें अपनी पारंपरिक और सांस्कृतिक कला से जोड़कर रखती है।

हर हरकत में डांस

हाल ही फिल्म 'पुष्पा- द राइज पार्ट 1 के गाने श्रीवल्ली में अल्लू अर्जुन के पैर घसीटकर चलने वाला डांस स्टेप हो या फिल्म 'रेडी में सलमान खान को जेब में हाथ डालकर डांस करने का स्टेप, लोगों आकर्षित करने वाले इस तरह के अनोखे स्टेप का आइडिया कोरियोग्राफर्स को आसपास की चीजों से ही आता है। उनकी नजर लगातार नए स्टेप्स की तलाश में रहती है। इस बारे में 'पद्मावत और 'गंगूबाई काठियावाड़ी फिल्मों की कोरियोग्राफर कृति महेश कहती हैं, 'डांस मूवमेंट तो हमारे कण-कण में है, जैसे रिक्शावाले का रिक्शा चलाना, किसी का सिर खुजाना, बच्चे का स्कूल बैग लेकर जाना हर चीज में एक डांस मूवमेंट बन जाता है। फिल्म इंदू की जवानी के गाने सावन में लग गई आग.. में घाघरे को मुंह में पकडऩे वाले स्टेप को मैंने ऐसे ही डिजाइन किया था। मैंने गांवों में कई बार देखा है कि सिर पर पानी की मटकी लेकर जाते समय घाघरे को पैर में फंसने और गंदा होने से बचाने के लिए उसे अक्सर औरतें मुंह में पकड़ लेती हैं। एक पार्टी में मेरी सहेली ने भी घाघरे को गंदा होने से बचाने के लिए

ऐसा ही किया था, यही चीजें देखकर मैंने इस गाने का स्टेप डिजाइन किया था।

डर के आगे जीत

बदलते वक्त के साथ कोरियोग्राफर्स गानों में डांस स्टाइल और स्टेप्स के साथ प्रयोग करते रहते हैं। ऐसा करना कई बार जोखिम भरा भी होता है। शामक डावर के साथ काम कर चुके व डांस रियलिटी शो डांस दीवाने जूनियर के जज कोरियोग्राफर मर्जी पेस्तोंजी कहते हैं, 'जब दिल तो पागल है और ताल फिल्मों में हम नए तरीका का डांस लेकर आए, तो रिस्क तो था ही। हर कोरियोग्राफर जब कुछ नया करता है, तो रिस्क होता ही है। दिल तो पागल है और ताल में जो डांस था, वह एक रिवोल्यूशन था। उन गानों में एक्टर्स को ही नहीं, बल्कि पीछे के डांसर्स

को भी देखा गया। शामक हमेशा कहते हैं कि जब उन्हें दिल तो पागल है फिल्म का आफर मिला था, तो वह नर्वस थे, क्योंकि उनका डांस स्टाइल जैज रहा है, जो कि आधुनिक शैली का है। ऐसे में उन्हें डर था कि भारतीय दर्शक उनके स्टाइल का डांस अपनाएंगे या नहीं। फिल्मकार यश चोपड़ा जी, शाह रुख खान और उनकी पत्नी गौरी खान ने शामक को प्रोत्साहित किया कि टेंशन मत लो, यह बहुत अनोखा लगेगा। वह वाकई यूनीक था, जिसने बालीवुड में डांस को चेंज किया था। रेवोल्यूशन लाना हमेशा अच्छा होता है।

विदेशी स्टाइल, नए प्रयोग

पिछली सदी के सातवें और आठवें दशक से ही हिंदी फिल्मों के डांस में वेस्टर्न स्टाइल का गहरा असर दिखना शुरू हो गया था। वर्तमान में वेस्टर्न डांस के प्रति बढ़ते युवाओं के आकर्षण को देखते हुए फिल्मकार अपनी फिल्मों में न सिर्फ ऐसे गाने और डांस शामिल कर रहे हैं, बल्कि कुछ फिल्मकार अपनी फिल्मों के सेट पर विदेशी कोरियोग्राफर्स भी रखते हैं। इस पर फिल्मकार अहमद खान कहते हैं, 'अगर पहले की फिल्मों में देखे, तो ओ हसीना जुल्फों वाली.. मोनिका ओ माय डार्लिंग.. जैसे कई सुपरहिट गाने वेस्टर्न डांसिंग स्टाइल में फिल्माए गए थे। पिछली सदी के आठवें दशक में एक ही फिल्म में तीन-तीन वेस्टर्न डांस वाले गाने होते थे। नासिर हुसैन साहब की तो हर फिल्म में स्टेज शो और वेस्टर्न डांस होते थे। उस दौर के अधिकतम फिल्मों में हीरो पार्टी में पियानो बजाता था और लोग बाल रूम में वेस्टर्न डांस करते थे। आज की फिल्मों में वेस्टर्न के साथ भारतीय डांसिंग स्टाइल को मिला दिया जाता है। अभिनेता आदित्य सील की फिल्म राकेट गैंग डांस की पृष्ठभूमि पर आधारित है। अपनी फिल्म को लेकर आदित्य बताते हैं, 'इस फिल्म मे मैंने हिप हाप और कुछ अन्य डांस स्टाइल को मिलाकर डांस किया है। इसमें मुझे बहुत फास्ट डांसिंग करनी पड़ी, ऐसे में तालमेल बना पाना थोड़ा मुश्किल था। इस फिल्म में हमने वेस्टर्न स्टाइल का डांस किया है, लेकिन उसमें भी भारतीय क्लासिकल डांस का फ्लेवर दिया है। कुछ अलग डांस दिखाने की कोशिश की है।

विदेश में भी जलवा

अपनी खास शैली के कारण भारतीय क्लासिकल और बालीवुड स्टाइल डांस सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी काफी लोकप्रिय हैं। जिस तरह से वेस्टर्न डांस शैली भारतीय युवाओं को आकर्षित कर रही हैं, वैसे ही भारतीय डांस भी विदेशों में अपने पैर पसार रहे हैं। साल 1991 में विश्व प्रसिद्ध पाप स्टार माइकल जैक्सन ने अपने सिंगल ब्लैक आर व्हाइट में ओडिसी (भारतीय क्लासिकल डांस का एक प्रारुप) डांस रखा था। जिसमें एक श्रीलंकाई डांसर ने ओडिसी डांस किया था, जो सभी भारतीयों के लिए गर्व का पल था। इस बारे में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता कोरियोग्राफर कृति महेश कहती हैं, 'जब भी विदेशों में डांस वर्कशाप के लिए जाती हूं तो मैंने देखा है कि वहां के लोगों को हमारा डांस स्टाइल काफी अच्छा लगता है। ए आर रहमान सर कई हालीवुड

फिल्मों में म्यूजिक दे चुके हैं, 'अलादीन और 'एटर्नल्स समेत कई हालीवुड फिल्मों में बालीवुड डांस सीक्वेंस रखे गए हैं। धीरे-धीरे ही सही लेकिन हालीवुड फिल्मों और विदेशी संस्कृति में हमारे भारतीय डांस भी अपनी जगह बना रहे हैं।

मजा आना चाहिए

डांस में बदलाव को लेकर अभिनेत्री नीतू कपूर कहती हैं, 'हमारे वक्त में तो सिर्फ एक ठुमका, शास्त्रीय नृत्य या फिर अभिनेता भगवान दादा जैसे डांस करते थे, वह वाला डांस होता था। आज तो इतने सारे डांस फॉर्मे्स हैं। हालांकि मेरा मानना है कि भले ही एक ठुमका हो, लेकिन उसे देखकर मजा आना चाहिए। जैसे भगवान दादा के डांस को देखकर आता था। 


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