डिजिटल प्लेटफार्म ने पंकज त्रिपाठी को बनाया साइड एक्टर से लीड एक्टर, अपने करियर को लेकर कही ये बात
पंकज त्रिपाठी अपनी शानदार एक्टिंग को लेकर काफी चर्चा में रहते हैं। वो उम्मदा एक्टिंग से किसी भी किरदार में जान फूंक देते हैं। अब उन्होंने खुलासा किया है कि अगर डिजिटल प्लेटफॉर्म नहीं होते तो वो कभी भी साइड एक्टर से लीड एक्टर नहीं बन पाते।
प्रियंका सिंह, मुंबई। फिल्म सिर्फ हीरो-हीरोइन से नहीं बनती है। कई कलाकारों के सहयोग से एक फिल्म मुकम्मल होती है। हीरो-हीरोइन का दोस्त हो या भाई-बहन, माता-पिता, अंकल-आंटी, पुलिस अफसर, हवलदार, नेता, पार्टी के कार्यकर्ता या सब्जी या चाय बेचने वाले का ही किरदार क्यों न हो, हर एक किरदार मिलकर तीन घंटे की फिल्म बनाते हैं। पहले की फिल्मों में ज्यादातर फिल्मों में पुलिस कमिश्नर का किरदार निभाने वाले चरित्र अभिनेता सैयदना इफ्तेखार अहमद शरीफ हों या फिर शोले फिल्म में मौसी का किरदार निभाने वाली लीला मिश्रा हों, दीवार फिल्म के रहीम चाचा युनुस परवेज, बातों बातों में, चुपके चुपके फिल्म के अभिनेता डेविड अब्राहम चेउलकर हों, इन सभी कलाकारों ने छोटे से किरदारों में भी अपनी छाप छोड़ी।
उस वक्त एक ढांचा बना हुआ था कि जिससे निकलकर चरित्र किरदारों का फिल्म का भार अपने कंधों पर उठाना मुश्किल था। आज इंडस्ट्री बदलाव से गुजर रही है। मुन्नाभाई एमबीबीएस में पाकेटमार का किरदार निभाने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी आज फिल्मों में हीरो के किरदार निभाते हैं। चरित्र या सपोर्टिंग किरदारों से अपना सफर शुरू करने वाले कई कलाकार पंकज त्रिपाठी, अभिषेक बनर्जी, राजपाल यादव, संजय मिश्रा, जयदीप अहलावत, अपारशक्ति खुराना, आहना कुमरा जैसे कई कलाकार हैं, जिनकी प्रतिभा को दर्शकों ने सराहा और अब वह पूरी फिल्म का दारोमदार अपने कंधों पर लेने का दम रखते हैं। साइड से सेंटर तक का यह सफर तय करना अब कितना आसान या मुश्किल है, डिजिटल प्लेटफॉर्म से यह तस्वीर कैसे बदली है, निर्माता-निर्देशकों का भरोसा क्यों बढ़ा है, इस पर आधारित स्टोरी।
बीते दिनों यूएई स्थित अबूधाबी के यास आइलैंड पर आयोजित आइफा अवार्ड शो का आयोजन किया गया था। जहां कई बड़े सितारों ने शिरकत की थी। इस अवार्ड फंक्शन में बॉलीवुड कलाकारों को अपने प्रदर्शन के लिए पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया था। वहीं, अवार्ड समारोह में बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता पकंज त्रिपाठी जब मंच पर फिल्म मिमी के लिए सपोर्टिंग कलाकार का अवॉर्ड लेने पहुंचे, तो लगभग तीन मिनट तक उनके लिए तालियां बजती रहीं।
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कई फिल्मों में साइड रोल करने के बाद कागज, शेरदिल : द पीलीभीत सागा जैसी फिल्मों, मिर्जापुर, क्रिमिनल जस्टिस वेब सीरीज में मुख्य किरदार निभाने वाले पंकज कहते हैं कि, इसका श्रेय मैं डिजिटल प्लेटफॉर्म को देना चाहूंगा, जिसने हमारे काम को हिंदुस्तान में हीरो के तौर पर लोगों तक पहुंचाया। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सभी किरदार उभकर दिखाई देते हैं, क्योंकि आठ-दस घंटे का एपिसोड होता है।
डिजिटल में बनाया लीड अभिनेता
डिजिटल प्लेटफॉर्म नहीं होता तो कागज और शेरदिल जैसी फिल्में नहीं बनती, जिसने मुझे साइड से केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया। पहली बार मैं पोस्टर में वेब सीरीज में काम करने की वजह से नजर आया था। इससे पहले मेरे पोस्टर्स नहीं लगते थे।
वहीं, साल 2007 में टेलीविजन से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता विक्रांत मेस्सी छपाक, हसीन दिलरुबा, 14 फेरे, लव हॉस्टल जैसी फिल्मों में बतौर हीरो नजर आए हैं। आने वाले दिनों में फॉरेंसिक, सेक्टर 36 जैसी कई फिल्में रिलीज होने वाली है, जिसमें वह केंद्र में होंगे।
वह कहते हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म ने मेरे लिए रास्ते आसान किए हैं। मैं इसी के माध्यम से दर्शकों तक लाकडाउन के मुश्किल समय में पहुंच पाया हूं। उन फिल्मों का फायदा यह हुआ की अब मुझे समझौते कम करने पड़ते हैं। हालांकि अब भी मुझे किसी फिल्म में चार सीन करने में दिक्कत नहीं है, लेकिन फिर वह रोल दमदार होना चाहिए।
स्टार नहीं ढूंढते हैं दर्शक
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का, द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और खुदा हाफिज जैसी फिल्मों में सपोर्टिंग किरदार कर चुकीं आहना ने फिल्म बावरी छोरी में लीड किरदार निभाया है। डिजिटल प्लेटफॉर्म और बड़े पर्दे दोनों जगहों पर आहना को सशक्त किरदार में फिल्ममेकर्स देख रहे हैं। आहना कहती हैं कि मुझे लीड तक पहुंचने में वक्त इसलिए लगा, क्योंकि मेरी शुरुआत कमर्शियल फिल्मों से नहीं हुई है। मैंने ज्यादा काम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम किया है। अब लोग कहानियां देखते हैं, वह अब उसमें स्टार नहीं ढूंढ रहे हैं। अगर स्टार पावर चलती, तो कई बड़े स्टार की फिल्में फ्लॉप नहीं होती। मेरे नाम के पीछे कपूर और खान नहीं लगा है कि लोग मेरे बारे में जानेंगे और मुझे कोई लांच करेगा। हमारे पास कैलेंडर में बहुत समय होता है, बहुत सोच समझकर किरदार चुनने पड़ते हैं। मैंने तो ज्यादातर किरदारों के लिए हां ही कहा है, फिर चाहे कम पैसे मिले हो। जब पहले काम मांगने जाती थी, तो लोग शो रील मांगते थे। मैं नाटक किया करती थी, तो उस वक्त कुछ रील जैसा था ही नहीं दिखाने के
लए। हम यही कहते थे कि नाटक देख लीजिए, लेकिन अब कितने निर्माता-निर्देशक आपका काम देखने के लिए नाटक आएंगे। अब ओटीटी पर एक शो चल जाता है, तो वर्ड ऑफ माउथ से काम लोगों तक पहुंच जाता है। अब अच्छे काम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आपको अच्छे कलाकार को काम देना ही पड़ेगा। अब सेट पर भी माहौल पेशेवर है। हम सेट पर वक्त पर आकर अपना काम करते हैं और निकल जाते हैं। जब मैंने बावरी छोरी की थी तो 80 प्रतिशत कैमरा मेरी तरफ था। वह अहसास अलग होता है। साथ ही जिम्मेदारी होती है कि जब छोटे से सीन में दर्शकों का ध्यान खींचा है, तो 80 प्रतिशत हिस्से में क्या आप उनका अटेंशन अपनी ओर रख
पाएंगे। जब लोग आपका काम देखेंगे, तो ही और काम मिलता है। इन छोटे-छोटे सपोर्टिंग किरदारों के निर्देशकों ने हमें खुलकर काम करने का मौका दिया, इसलिए हम नजर में आए। लिपस्टिक अंडर माय बुर्का में चार अभिनेत्रियां थीं, उन चारों की अलग कहानियां थी। कई अभिनेत्रियों ने खुदा हाफिज के रोल के लिए मना किया था, क्योंकि उन्हें लगा था कि सेकेंड हाफ के बाद किरदार की एंट्री हो रही है। मैंने वह किरदार किया, क्योंकि मुझे अरबी बोलने और एक्शन बोलने का मौका मिला।
काम की भूख आगे तक ले जाती है
सपोर्टिंग किरदारों को मुख्य किरदार तब मिलेगा, जब उन पर निर्माता-निर्देशक अपना भरोसा जताएंगे। पारंपरिक हीरो-हीरोइन के लिए बने ढांचे को तोड़कर उससे आगे देखेंगे। कई निर्देशक हैं, जो दायरे से बाहर निकलकर सोच रहे हैं। हाल ही में अभिनेता राजपाल यादव फिल्म अर्ध में फिल्म के हीरो के तौर पर नजर
आए। राजपाल इससे पहले भी मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं, मैं मेरी पत्नी और वो में बतौर हीरो काम कर चुके हैं। इस दौर में भी कई सपोर्टिंग किरदारों के बीच हीरो के किरदार मिलते रहने को लेकर फिल्म अर्ध के निर्देशक पलाश मुच्छल कहते हैं कि मैंने जब इस फिल्म की कहानी लिखी थी, तो मेरे जेहन में राजपाल यादव के अलावा कोई नाम था ही नहीं। खास बात यह है कि उन्होंने यह फिल्म एक रुपये 25 पैसे की फीस पर साइन कर ली थी। उन्होंने स्क्रिप्ट पर साइन किया और कहा मेहनत से फिल्म बनाओ। वह 25 सालों से इंडस्ट्री में काम
कर रहे हैं। एक रुपये 25 पैसे में फिल्म को साइन करना, उनके अभिनय करने को लेकर जो भूख है, उसको दर्शाती है। इस फिल्म का शेड्यूल 25 दिनों का था, लेकिन हमने फिल्म 13-14 दिनों में ही पूरी कर लिया। एक दिन में 10-11 सीन कर लेते थे। दूसरे कलाकार चार से पांच सीन से ज्यादा नहीं करते हैं। जब इस तरह के अनुभवी कलाकारों को मुख्य किरदार मिलते हैं, तो वह निर्देशक और निर्माता के भरोसे पर खरे उतरते हैं।
रिस्क नहीं, किरदार सूट होना चाहिए
फिल्म कागज का लेखन और निर्देशन करने वाले निर्माता-निर्देशक और अभिनेता सतीश कौशिक कहते हैं कि जब हम फिल्म बनाते हैं, तो रिस्क का ख्याल नहीं आता है। कागज की कहानी मेरे पास 18 साल से थी। मेरा जुनून था कि मैं इस विषय पर फिल्म बनाऊंगा। जब पंकज त्रिपाठी को फिल्म के मुख्य किरदार के तौर पर लेने
का ख्याल आया, तो मैंने दोबारा इसके बारे में नहीं सोचा। फिल्म के निर्माता सलमान खान और उनकी टीम ने मेरे इस भरोसे पर भरोसा दिखाया। पंकज को लेकर मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया, क्योंकि इस किरदार में वह सूट हो रहे थे। वह खुद भी लीड रोल करने के लिए उत्सुक थे। अब उन कलाकारों को मुख्य किरदार फिल्म में मिल रहे हैं, जो हीरो जैसे नहीं दिखते हैं, यह एक बड़ा बदलाव है। इस बदलाव का स्वागत अब खुले दिल से फिल्ममेकर्स कर रहे हैं। इसका नतीजा सामने है कि चरित्र किरदार निभाने वाले कलाकार जब फिल्म के केंद्र में आकर काम कर रहे हैं, तो उन्हें कितना पसंद किया जा रहा है। इस बदलाव को लाने में डिजिटल प्लेटफॉर्म का सबसे अहम रोल है। अब कहानी में सही कलाकार को कास्ट करना जरूरी हो गया है। फिर चाहे वह कोई नया कलाकार हो या चरित्र किरदार निभाने वाला कलाकार। अच्छा कलाकार कोई भी किरदार निभा सकता है। पंकज
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में मेरे जूनियर रहे हैं। उनका काम मैं रन से लेकर स्त्री फिल्म तक देखता आया हूं। जब भी मैं उन्हें स्क्रीन पर देखता था, अभिनय को लेकर उनकी समझ को देखकर प्रभावित हो जाता था। हर फिल्म में वह प्रभावशाली लगे हैं। मुझे इस बात का अहसास हमेशा से था कि वह ऐसे कलाकार हैं, जो फिल्म के नायक का किरदार निभाकर पूरी फिल्म की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले सकते हैं। जो कागज फिल्म में हुआ भी।
अब किरदार को लंबाई के लेंस से नहीं देखा जाता
द फैमिली मैन वेब सीरीज से दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने वाले अभिनेता शारिब हाशमी को लोग अब उनके नाम से जानते हैं। जब तक है जान में फिल्म शाह रुख खान के दोस्त के किरदार में जब वह काम कर रहे थे, उसी वक्त सपोर्टिंग से लीडिंग मैन बनने का सफर वह शुरू कर चुके थे फिल्मीस्तान फिल्म से। उसके बाद शारिब ने फुल्लू, माय क्लाइंट्स वाइफ, दरबान फिल्म में बतौर हीरो काम किया। साथ ही उन्होंने राम सिंह चार्ली फिल्म का लेखन और निर्देशन किया, जिसमें प्रमुख कलाकार के तौर पर अभिनेता कुमुद मिश्रा को मौका दिया। शारिब
कहते हैं कि हर एक छोटे-छोटे किरदारों की वजह से आज मैंने दर्शकों का भरोसा जीता है। मैं इंडिपेंडेंट छोटी फिल्मों में मुख्य किरदार भी करता रहा, साथ ही बड़ी फिल्मों में सपोर्टिंग किरदार भी करता गया। मैंने अपने किरदारों को कभी किसी दायरे में नहीं बांधा। अब का दौर कलाकारों के लिए बेहतरीन हैं, क्योंकि उन्हें काम किरदार की लंबाई के लेंस से देखकर नहीं दिया जाता है। मैंने कभी प्लान नहीं किया था कि एक सपोर्टिंग रोल करूंगा, फिर एक लीड किरदार करूंगा। हमें जो फिल्में मिलती हैं, उन्हीं में से चुनना पड़ता है। मेरी आने वाली फिल्मों में बड़ी फिल्म विक्रम वेधा शामिल है, जिसमें मेरा किरदार बहुत कमाल का है। तरला फिल्म में हुमा कुरैशी के साथ काम कर रहा हूं। वह भी दिल को छूने वाली कहानी है। वह कमर्शियल फिल्म नहीं है, जिसमें
कोई नाच-गाना हो। लेकिन फिर भी कमर्शियल लगती है, जिसकी भावनाएं कनेक्ट करेंगी। अब रचनात्मक लोगों की कद्र हो रही है। अब लोग आम दिखने वाले किरदारों की कहानियां सुनने और उन्हें देखने के लिए तैयार हैं। जो अलग कहानियां कहना चताहते हैं, उनका बात सुनी जा रही है, लोग सुनने और देखने के लिये तैयार हैं। राम सिंह चार्ली फिल्म मैंने और नितिन कक्कड़ ने मिलकर लिखी थी। कुमुद मिश्रा को लेने का निर्णय नितिन का था। मैं यह नहीं कह सकता हूं कि हमने किसी को मौका दिया। रोल जिस तरीके से लिखा गया था, जिस किस्म की छवि किरदार को लेकर बन रही थी, उसमें कुमुद जी ही फिट बैठ रहे थे। हमने यह नहीं सोचा कि कमर्शियल आउटकम क्या होगा। उनका हां, कहना ही बड़ी बात थी। फिल्म देखने के बाद लगता भी है कि उनसे बेहतर यह किरदार कोई नहीं कर सकता था।