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शरत चंद्र: 17 की उम्र में ही लिख दिया था ऐसा नॉवल, जिस पर बन चुकी हैं 17 फ़िल्में

नाकाम मोहब्बत की चोट खाया संभ्रांत परिवार का नौजवान शराब को गले लगाकर एक नाचने वाली की चौखट का मुरीद बन जाता है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Tue, 16 Jan 2018 02:52 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jan 2018 11:33 AM (IST)
शरत चंद्र: 17 की उम्र में ही लिख दिया था ऐसा नॉवल, जिस पर बन चुकी हैं 17 फ़िल्में
शरत चंद्र: 17 की उम्र में ही लिख दिया था ऐसा नॉवल, जिस पर बन चुकी हैं 17 फ़िल्में

मुंबई। सिनेमा का ऐसा कौन सा देव या दास होगा, जिसने 'देवदास' ना देखी होगी। पर्दा श्वेत-श्याम से सतरंगी हो गया, मगर देवदास का रंग ना उतरा। नाकाम मोहब्बत की चोट खाया संभ्रांत परिवार का नौजवान शराब को गले लगाकर एक नाचने वाली की चौखट का मुरीद बन जाता है और एक दिन अपनी मोहब्बत की दहलीज़ पर दम तोड़ देता है। 

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ख़ुद को फ़ना करने की ज़िद करते युवक की इस कहानी में फ़िल्मकारों को इतना स्कोप दिखा कि अलग-अलग भाषाओं में एक नहीं पूरे 16 बार इसे पर्दे पर उतारा गया। मूल कहानी की पृष्ठभूमि में बदलाव करके कुछ अलहैदा क़िस्म की फ़िल्में भी बनायी गयीं। मगर, इश्क़ की दुनिया के सबसे नकारात्मक नायक की रचना करने वाले बंगाली साहित्यकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का सिनेमा से परिचय इतनाभर नहीं है। शरत बाबू की विभिन्न रचनाओं पर अंदाज़न 50 फ़िल्में बनायी गयी हैं। 15 सितंबर 1876 को जन्मे शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने 16 जनवरी 1938 को कोलकाता में देह छोड़ी थी। 

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आइए, बानज़र सिनेमा, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के साहित्य के क़रीब होते हैं, लेकिन पहले कुछ देवदासों से मिल लेते हैं, जिन्होंने शरत बाबू के पन्नों से निकलकर सिनेमा के पर्दे पर और फिर दिलों में जगह पायी। यहां ये बता देना ज़रूरी है कि शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने कालजयी नॉवल देवदास की रचना 17 साल की उम्र में ही कर दी थी,  मगर दुनिया के सामने ये 1917 में आया। 

ब्रिटिश हुकूमत के दौर में देवदास पर सबसे पहले 1928 में साइलेंट फ़िल्म बनी थी, जिसे नरेश मित्रा ने डायरेक्ट किया था। उन्होंने फ़िल्म में एक रोल भी प्ले किया था। फणी बर्मा देवदास बने थे, तारकबाला पारो और पारुलबाला चंद्रमुखी के किरदार में थीं। ख़ास बात ये है कि फ़िल्म की शूटिंग कोलकाता में ही हुई थी, जहां की पृष्ठभूमि में देवदास उपन्यास की रचना की गयी है। ये फ़िल्म 11 फरवरी को रिलीज़ हुई थी।

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1935 में पीसी बरुआ ने बंगाली में देवदास बनायी, जिसमें केएल सहगल टाइटल रोल में थे, जबकि जमुना बरुआ और राजकुमारी ने क्रमश: पारो और चंद्रमुखी के किरदार प्ले किये थे। इसे 1936 में हिंदी में रिलीज़ किया गया। 1955 में बिमल रॉय के डायरेक्शन में दिलीप कुमार देवदास बने। ये हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्मों में शामिल है। दिलीप कुमार को इस फ़िल्म के बाद ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। देवदास पर बनी ये सबसे प्रभावी फ़िल्मों में शामिल है। फ़िल्म में सुचित्रा सेन पारो और वैजयंतीमाला चंद्रमुखी के किरदार में थीं।

2002 में संजय लीला भंसाली ने शाह रूख़ ख़ान को देवदास बनाकर अमर कर दिया। फ़िल्म में माधुरी दीक्षित ने चंद्रमुखी और ऐश्वर्या राय ने पारो का रोल निभाया। ये फ़िल्म सिनेमाई उत्कृष्टता के साथ संगीत और नृत्य के लिए मशहूर रही। ऐश्वर्या और माधुरी के संयुक्त नृत्य वाले दृश्यों ने ग़ज़ब की छाप छोड़ी। देवदास का एक वर्ज़न ऐसा भी है, जिसे गुलज़ार बनाना चाहते थे। इस फ़िल्म में देवदास के किरदार के लिए धर्मेंद्र को चुना था, जबकि चंद्रमुखी और पारो के किरदारों के लिए उन्होंने शर्मिला टैगोर और हेमा मालिनी को फाइनल किया था। फ़िल्म का मुहूर्त भी हुआ, लेकिन बदकिस्मती से फ़िल्म इससे आगे नहीं बढ़ सकी।

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धर्मेंद्र भले ही देवदास बनने से चूक गए हों, लेकिन उनके भतीजे अभय देओल के ये मौक़ा मिल गया, जब अनुराग कश्यप ने उन्हें देव.डी में देवदास का किरदार निभाने का अवसर दिया था। देव.डी, बरसों पुराने देवदास का आधुनिक और सामयिक रूप था। फ़िल्म में माही गिल ने पारो तो कल्कि केकलां ने चंद्रमुखी का रोल निभाया था। एक गाने में आज के लोकप्रिय नवाज़उद्दीन सिद्दीक़ी ने भी एपीयरेंस दी थी।

... और अब, देवदास को अब नए कलेवर में पेश कर रहे हैं फ़िल्ममेकर सुधीर मिश्रा, जो 'दासदेव' टाइटल से फ़िल्म बना रहे हैं। 'दासदेव' 16 फरवरी को रिलीज़ हो रही है। फ़िल्म में देवदास के रोल में राहुल भट्ट दिखायी देंगे। सुधीर का ये देवदास थोड़ा अलग होगा, क्योंकि फ़िल्म की पृष्ठभूमि राजनीतिक रखी गयी है। फ़िल्म में रिचा चड्ढा पारो और अदिति राव हैदरी चांदनी बनी हैं। देवदास पर बनी ये 17वीं फ़िल्म होगी। 

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देवदास के अतिरिक्त शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कई कृतियों का फ़िल्मी रूपांतरण हुआ। 'परिणीता' दो बार बनी। ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित 1967 की फ़िल्म 'मझली दीदी' और 1977 में आयी स्वामी शरत बाबू की रचनाओं पर आधारित हैं। 1971 में आयी 'छोटी बहू' उनके उपन्यास, बिंदूर छेले पर आधारित थी। दत्ता पर 1976 में बंगाली फ़िल्म बनी, जिसमें सुचित्रा सेन और सौमित्र चैटर्जी ने मुख्य किरदार निभाये। ऋषिकेश मुखर्जी के अलावा बासु चैटर्जी ने भी शरत बाबू के साहित्य को सिनेमाई रूप दिया। अपने पराये उनके उपन्यास पर आधारित थीं। 1957 में आयी तेलुगु फ़िल्म 'थोडी कोडल्लू' शरत चंद्र के एक नॉवल का स्क्रीन एपडेप्शन थी। 1975 में गुलज़ार ने 'खुशबू' बनायी, जो उनकी कहानी पंडित मोशाय से प्रेरित थी।


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