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Ajit Khan Death Anniversary: एक ऐसा विलेन, जिसके सामने फीकी पड़ जाती थी हीरो की चमक और तेवर

वो शर्ट के आगे के दो बटन खोलकर नहीं घूमते। मोटरसाइकिल पर बैठ हीरोइन और उनकी सहेलियों को नहीं छेड़ते। अजीत क्लिशे विलेन से अलहदा स्टाइल रखते हैं।

By Rajat SinghEdited By: Published: Mon, 21 Oct 2019 08:25 PM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 09:43 AM (IST)
Ajit Khan Death Anniversary: एक ऐसा विलेन, जिसके सामने फीकी पड़ जाती थी हीरो की चमक और तेवर
Ajit Khan Death Anniversary: एक ऐसा विलेन, जिसके सामने फीकी पड़ जाती थी हीरो की चमक और तेवर

नई दिल्ली, जेएनएन। किसी भी फ़िल्म में विलेन का मुख्यतः काम होता है, हीरो से हार जाना। विलेन सिर्फ़ काम से ही बुरा नहीं होता, उसे खतरानाक बनाने के लिए उस हिसाब रचा भी जाता है। हिंदी फ़िल्मों में ऐसे विलेन की भरमार है। लेकिन जब अजीत पर्दे पर विलेन के रूप में उतरते हैं, तो उनका क्लास बिल्कुल अलग हो जाता है। वो कोई सड़क छाप या डरावनी शक्ल वाले विलेन नहीं लगते।

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वो शर्ट के आगे के दो बटन खोलकर नहीं घूमते। मोटरसाइकिल पर बैठ हीरोइन और उनकी सहेलियों को नहीं छेड़ते। अजीत क्लिशे विलेन से अलहदा स्टाइल रखते हैं। वह शानदार कपड़ों में बैठे हुए व्हिस्की पीने वाले विलेन हैं। उनका क्लास ऐसा है कि हीरो भी पानी भरता नज़र आता है। अजीत की पुण्यतिथि के मौके पर हम उनके इसी किरदार को याद कर रहे हैं...

प्राण के क्लास का वाला विलेन

भारतीय सिनेमा में विलेन कई आए, लेकिन प्राण जैसा कोई नहीं हुआ। 60 के दशक में प्राण का खौफ दर्शकों में भी था। 70 और 80 के दशक में अजीत ने इस क्लास को आगे बढ़ाया। वह एक रईस विलेन की भूमिका में नज़र आए। कलीचरण का ‘दीन दयाल’ एक ऐसा किरदार था, जिसे बाद में भी अलग-अलग रूपों में पर्दे पर उतारा जाता रहा। उसे पूरा शहर 'लॉयन' के नाम से जानता है। इस विलेन के पास पर्सनल असिस्टेंट भी है। इसका नाम मोना डार्लिंग है। अजीत ने इस किरदार में इतनी जान डाली कि लोग लॉयन के साथ मोना को भी याद करते हैं।

हीरो को व्हिस्की ऑफ़र करने वाला

विलेन के जीवन का मकसद हमेशा हीरो का मारना ही तो है, लेकिन अजीत उसे पहले व्हिस्की ऑफ़र करते हैं। जंजीर का डायलॉग्स है, 'आओ विजय, बैठो और हमारे साथ एक स्कॉच पियो... हम तुम्हें खा थोड़े ही जाएंगे... वैसे भी हम वेजिटेरियन हैं।'  इस फ़िल्म उनके सामने उस वक्त का 'एंग्री यंग मैन' अमिताभ बच्चन थे। अगर अमिताभ इंस्पेक्टर विजय थे, तो अजीत 'सेठ धर्म दयाल तेजा'। इस फ़िल्म और इसके किरदारों दोनों को कॉपी करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई सफ़ल नहीं हुआ।

पागल कुत्तों को गोली मारवाने वाला

इसे टक्कर देने के लिए 'सरकार 'या 'गॉडफादर' जैसे ही किरदार की याद आती है। अजीत ऐसे विलेन हैं, जो किसी को मारने के लिए खुद गोली नहीं चलाते, लेकिन पागल कुत्ते भी नहीं पालते। वो कहते हैं कि 'जब कुत्ते पागल हो जाते हैं, तो उसे गोली मार देते हैं।' इस विलेन को खेल मौत नहीं है। यह क्लासिकल रमी खेलता है। यह इस खेल का बेताज बादशाह है और कहता है, 'शाकाल जब बाज़ी खेलता है... तो जितने पत्ते उसके हाथ में होते हैं... उतने ही उसकी आस्तीन में।'

गीता का ज्ञान देने वाला

विलेन को नैतिकता का पाठ  हमेशा हीरो पढ़ाता है। अजीत इस मामले में उलटे हैं। वो खुद हीरो को ज्ञान देते हैं। हीरो से कहते हैं, 'अपनी उम्र से बढ़कर बातें नहीं करते।' 'आशीर्वाद तो बड़े देते हैं... हम तो सिर्फ राय देते हैं।' 'अच्छा खरीदार हमेशा सौदा करने से पहले... दूसरों की कीमत का अंदाजा लगाता है।'

इस विलेन को यह भी पता है कि गीत की रचना कैसे हुई। 'तारीख़ इस बात की गवाही देती है कि भागवत की कहानियां... कभी गुलाब जल से नहीं लिखी गईं...ये हमेशा गरम खून से लिखी जाती हैं।'

अजीत की अपनी एक ख़ास किस्म की डायलॉग बोलने की अदा थी। यह अदा भी उनके अवाज़ को सूट करती थी। शुरुआती करियर में जब वह सकारात्मक किरदार को निभा रहे थे, तब इनमें भी उनकी अपनी छाप थी। 'मुगले -ए-आज़म' के अजीत को भूलना शायद सिने-जगत के सबसे मुश्किल कामों में से एक है। अजीत ने साल 1945 से अपने करियर की शुरुआत की और साल 1995 तक काम किया। लेकिन उनकी आवाज़ में वह वजन हमेशा बना रहा, जो उन्हें सबसे रईस विलेन बनाता है।


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