खास मुलाकात : परिवार के प्यार व भोलेनाथ के आशीर्वाद ने हर मुश्किल से निकाला- संजय दत्त
मान्यता कभी मेरे काम में दखल नहीं देती हैं लेकिन यह फिल्म करने के लिए उन्होंने मुझे सुझाव दिया। हालांकि मेरी फिल्मों को देखकर मेरी बहनों समेत पूरा परिवार प्रतिक्रियाएं देता है। उनकी समीक्षा पेशेवर समीक्षकों से भी कड़क होती है- संजय दत्त
दीपेश पांडेय। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लडऩे के बीच संजय दत्त ने फिल्म 'केजीएफ चैप्टर 2' की शूटिंग की। फिल्म में वह खलनायक अधीरा बने हैं। अब वह कैंसर मुक्त हो चुके हैं। सिनेमाघरों में रिलीज अपनी फिल्म और जीवन के संघर्षों पर संजय दत्त की दीपेश पांडेय से बातचीत...
साल 1981 में फिल्म राकी से अपने करियर की शुरुआत की थी, अब इस फिल्म में राकी के खिलाफ हैं, इस सफर को कैसे देखते हैं?
(हंसते हुए) बहुत अच्छा सफर रहा है, वो राकी से लेकर अब तक इंडस्ट्री में बहुत साल हो गए। वो राकी करने में भी मजा आया था और इस राकी के खिलाफ भी काम करने में बहुत मजा आया। प्रशांत नील बेहतरीन निर्देशक हैं। जब मैंने इस किरदार के बारे में सुना तो लगा कि अधीरा बहुत बड़ा किरदार है। प्रशांत को पता था कि उन्हें क्या चाहिए।
'अग्निपथ' और 'पानीपत' फिल्मों में भी आपने खलचरित्र निभाए। फिल्मों में खलनायकों का महत्व कैसे देखते हैं?
हालीवुड की बड़ी एक्शन फिल्मों में खलनायक का किरदार, बहुत ही बड़ा होता है। खलनायक जितना बड़ा होगा, हीरो भी उभरकर उतना बड़ा निकलेगा। हमारी पुरानी हिंदी फिल्मों में भी अमरीश पुरी और अमजद भाई (अमजद खान) शक्तिशाली विलेन बनते थे, फिर वह चाहे मोगैंबो हो या गब्बर सिंह। बिना शक्तिशाली विलेन के आप हीरो को शक्तिशाली नहीं दिखा सकते हैं। अंत में तो हीरो ही विलेन को मारता है।
फिल्म की शूटिंग के बीच आप कैंसर की बीमारी से भी लड़ रहे थे, जीवन में और भी कई मुश्किल दौर आए, कभी हार न मानने वाले इस जुनून का स्रोत क्या है?
माता-पिता का आशीर्वाद और उनका प्यार। मैं भगवान शिवजी का बहुत बड़ा भक्त हूं। उनका आशीर्वाद मुझ पर है। जय भोलेनाथ..। कुछ व्यक्ति मुश्किलों से भागकर ड्रग्स लेना शुरू कर देते हैं, उससे कुछ नहीं होता है। मुश्किलों का सामना करो। जिंदगी, परिवार, काम और माता-पिता से बड़ा कोई नशा नहीं होता है। युवाओं से मेरी अपील है कि ड्रग्स का रास्ता छोड़ दें।
बीमारी के दौरान कमजोरी आई होगी। अधीरा के किरदार में निरंतरता बनाए रखना कैसे संभव हुआ?
इस बीमारी के दौरान मजबूत रहना पड़ता है। दिमाग में यह डालना पड़ता है कि यह बीमारी मुझसे बढ़कर नहीं। फिल्म के निर्माता और निर्देशक चाहते थे कि ग्रीन स्क्रीन (क्रोमा) पर शूट करूं, पर मैंने कहा कि जिस तरह से आपने मुझे कहानी को बताया था, अगर उसी तरह से शूट नहीं करेंगे तो मैं फिल्म नहीं करूंगा। मैं अपने स्टंट और फाइटिंग वाले सीन खुद करूंगा। हमने करीब 10 दिन में पूरा क्लाइमेक्स शूट किया।
इस फिल्म का सुझाव पत्नी मान्यता की तरफ से भी था...
ऐसा कई बार हुआ है कि मेरी फिल्मों के लिए उनकी प्रतिक्रिया बहुत खराब रही है। जैसे फिल्म 'साहब, बीवी और गैंगस्टर 3' के लिए उन्होंने कहा था ऐसी फिल्में करते ही क्यों हो?
'प्रस्थानम' के बाद बतौर प्रोड्यूसर कौन सी फिल्में बना रहे हैं?
सिनेमा में हम पहले से जिस तरह की मास ओरिएंटेड मसाला फिल्में करते आए हैं, हमें फिर वैसी फिल्में बनाने की जरूरत है। हमारी हिंदी फिल्मों के मुख्य दर्शक उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश के लोग हैं। यहां हीरो और एक्शन की बहुत कद्र होती है। अपनी प्रोडक्शन कंपनी के अंतर्गत मैं पांच फिल्में बना रहा हूं। यही कोशिश रहेगी कि ऐसी मसाला फिल्में फिर से बनें। उनमें एक-दो फिल्मों में एक्टिंग करूंगा।