Move to Jagran APP

बॉलीवुड में एंथोलॉजी फ़िल्मों का चलन ज़ोरों पर, जानें- क्यों लोगों के बीच लोकप्रिय बन रहा ये खास सिनेमा

Anthology Films In Bollywood बीते दिनों जी5 पर फारबिडन लव आई। अब अनुराग बासु निर्देशित फिल्म लूडो दर्शकों के बीच आ रही है। अनुभव सिन्हा ने कोरोना महामारी की कहानियों और अनुभवों पर आधारित एक एंथोलॉजी फिल्म बनाने की घोषणा की है।

By Mohit PareekEdited By: Published: Fri, 06 Nov 2020 11:01 AM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 07:49 AM (IST)
बॉलीवुड में एंथोलॉजी फ़िल्मों का चलन ज़ोरों पर, जानें- क्यों लोगों के बीच लोकप्रिय बन रहा ये खास सिनेमा
Anthology Films In Bollywood: फिल्म लूडो के पोस्टर्स

स्मिता श्रीवास्तव, जेएनएन। हिन्दी सिनेमा अपनी कहानियों के साथ लगातार प्रयोग कर रहा है। कहानियों को कहने का तरीका भी बदला है। अब दो घंटे की फिल्म में कई लघु कहानियों को पिरोकर बनाया जा रहा है। इन्हें एंथोलॉजी फिल्म कहते हैं। इसमें अलग-अलग शॉर्ट फिल्मों का संकलन होता है। 'डरना मना है', 'दस कहानियां', 'बांबे टॉकीज', 'आई एम', 'मुंबई कटिंग' जैसी कई एंथोलॉजी फिल्में बन चुकी हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म आने के बाद नेटफ्लिक्स पर 'लस्ट स्टोरीज', 'घोस्ट स्टोरीज' आईं। इन दिनों फिल्ममेकर्स भी ऐसी फिल्मों में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं।

loksabha election banner

बीते दिनों जी-5 पर 'फारबिडन लव' आई। अब अनुराग बासु निर्देशित फिल्म 'लूडो' दर्शकों के बीच आ रही है। मणिरत्नम भी नौ कहानियों का संग्रह लेकर आ रहे हैं। अनुभव सिन्हा ने कोरोना महामारी की कहानियों और अनुभवों पर आधारित एक एंथोलॉजी फिल्म बनाने की घोषणा की है। इसके लिए उन्होंने चार फिल्ममेकर्स हंसल मेहता, सुधीर मिश्र, केतन मेहता और सुभाष कपूर से हाथ मिलाया है। अनुराग बासु निर्देशित 'लूडो' 12 नवंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी।

पहले से लोकप्रिय रही है यह विधा

प्रख्यात फिल्ममेकर मणिरत्नम नेटफ्लिक्स के लिए नौ रसों पर आधारित एंथोलॉजी फिल्म बना रहे हैं। इसे नौ अलग-अलग निर्देशक निर्देशित कर रहे हैं। 'सोलो' और 'फ्लिप' जैसी एंथोलॉजी फिल्म बनाने वाले बिजॉय नांबियार ने इनमें से एक कहानी को निर्देशित किया है। एंथोलॉजी फिल्मों के संदर्भ में बिजॉय कहते हैं, ''पहले दूरदर्शन पर 'विक्रम और बेताल' समेत कई धारावाहिक आते थे। उनमें हर एपिसोड एक नई कहानी का ही होता था। हम ऐसी कहानियों को पहले से देखते आ रहे हैं। बस फॉर्मेट बदल रहा है। नए निर्देशक और कलाकार उनमें काम कर रहे हैं। मुझे शॉर्ट कहानियां आकर्षित करती हैं। मेरे कॅरियर की शुरुआत ही शॉर्ट कहानियों से हुई। 20-30 मिनट की समयावधि में एक कहानी को प्रभावकारी तरीके से बोल पाना चुनौती होती है। मुझे लगता है कि एंथोलॉजी एकमात्र जरिया है जिसमें अलग-अलग कहानियों को एक थीम के तहत बता सकते हैं।''

कहानियों के तार जोड़ना बड़ी चुनौती

ओनीर निर्मित 'आई एम' रियल लाइफ कहानियों पर आधारित थी। एंथोलॉजी फिल्मों को बनाना वह चुनौती मानते हैं। वह कहते हैं, 'इनके लिए सही कहानी मिलना चुनौती होती है, क्योंकि उसमें कनेक्शन भी चाहिए होता है। ऐसा भी नहीं कि कोई भी चार कहानी डाल दो। यह थोड़ा कठिन होता है। शॉर्ट स्टोरी में एक इमोशन और एक ट्रैक पर फोकस रखना पड़ता है। उसमें अगर कई ट्रैक होंगे तो कहानी काम नहीं करेगी। मैंने अपनी फिल्म 'आई एम' 2011 में बनाई थी। उसकी सभी कहानियों को मैंने ही निर्देशित किया था।'

(फिल्म पोस्टर, साभार- विकिपीडिया)

उन्होंने आगे कहा, 'अब चार अलग-अलग निर्देशक मिलकर एक ही थीम पर फिल्म बना रहे हैं, जैसे 'लस्ट स्टोरीज'। उसे बतौर फिल्म प्रेजेंट भी कर सकते हैं। अभी मैं दो एंथोलॉजी फिल्मों पर काम कर रहा हूं। इनमें एक 'आई एम' की सीक्वल होगी। उसका नाम 'वी आर' होगा। उसकी शूटिंग अगले साल शुरू होगी। उसमें भी चार कहानियां होंगी। सब रियल कहानियों पर आधारित होंगी। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2018 में धारा 377 पर दिए गए फैसले को टिब्यूट होगी। उसके अलावा रोमांटिक कहानियों पर भी फिल्म बनाने की योजना है।'

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इन कहानियों को प्रमुखता से पेश किया जा रहा है। उस संबंध में ओनीर कहते हैं, 'भारत में इनकी थिएटर रिलीज छोटी होती है, लेकिन फेस्टिवल्स के जरिए उन्हें विदेश में दिखाया जाता है। धीरे-धीरे हमारे देश में भी इसके प्रति दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ रही है। 'आई एम' अमेजॉन प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स और हॉट स्टार पर उपलब्ध है। कोरोना काल में दर्शकों का झुकाव डिजिटल कंटेंट की ओर हुआ है। उनका एक्सपोजर इंटरनेशनल कंटेंट को लेकर बढ़ा है। यह उनका टेस्ट बदल रहा है।'

एक्साइटिंग होती हैं लघु कहानियां

एंथोलॉजी फिल्मों में नामी गिरामी से लेकर नए कलाकार भी काम कर रहे हैं। इस संबंध में 'घोस्ट स्टोरीज' के अभिनेता अविनाश तिवारी कहते हैं, '' मैंने 'घोस्ट स्टोरीज' को एंथोलॉजी के तौर पर नहीं देखा था। जब प्रस्ताव आता है तो आप कहानी और उसके निर्देशक के बारे में सोचते हैं। मैंने अनेक शॉर्ट फिल्मों में काम करने के साथ ही उन्हें प्रोड्यूस भी किया है। शॉर्ट फिल्में एक्साइटिंग होती हैं। उनमें कई बार प्रतीकात्मक तौर पर अपनी बात कह दी जाती है। मगर, एंथोलॉजी फिल्म जब आप देख रहे होते हैं तो पहली खत्म होते ही दूसरी शुरू हो जाती है। 'घोस्ट स्टोरीज' की चर्चा इसलिए हुई थी कि चार बड़े निर्देशक जोया अख्तर, अनुराग कश्यप, दिबाकर बनर्जी और करण जौहर एक ही थीम पर अलग-अलग कहानियां बना रहे थे। सबसे महत्वपूर्ण है कि वे दर्शकों को पसंद आनी चाहिए।'

बदल जाते हैं प्रमोशन के आयाम

'डरना मना है' और 'डरना जरूरी है' जैसी फिल्मों के निर्देशक प्रवाल रमन कहते हैं, ''मैं कभी पारंपरिक चीजों पर काम नहीं करता, इसलिए इन फिल्मों को बनाया। उनमें स्वतंत्र कहानियां थीं। प्रयोग या तो सफल होता है या विफल। 'डरना मना है' प्रयोग सफल रहा था।'' एंथोलॉजी में हॉरर फिल्में ज्यादा बनने के संबंध में वह कहते हैं, 'डरना मना है के बाद संजय गुप्ता की 'दस कहानियां' जैसी फिल्में भी बनीं, वे हॉरर जॉनर की नहीं थीं। हॉरर जॉनर खुद में बिकाऊ है। हॉरर में शॉक वैल्यू, थ्रिल जैसे तत्वों का समावेश होता है। इसमें प्रमोशन के डायनामिक्स बदल जाते हैं। इसमें मेकर्स, कलाकारों, मार्केटिंग टीम की फ्रेश अप्रोच होती है।

उन्होंने बताया, 'हमारी फिल्म का कैंपेन बड़ी विज्ञापन कंपनी ने डिजाइन किया था। पिछले एक दशक से डिजिटल कैंपेन ज्यादा चल रहा है। बहुत सारे प्लेटफॉर्म हैं, जहां पर नई कहानियों को मंच मिल सकता है। अब स्मार्ट फोन से कोई भी फिल्म बना सकता है। सिस्टम बदल गया है। डिस्ट्रीब्यूशन की समस्या नहीं रह गई है। बस अपलोड करना होता है। पहले के दौर में सबको फिल्म बनाने का मौका नहीं मिलता था। हम तीन घंटे की फिल्म देखने के आदी हैं। मगर दो घंटे में चार दिलचस्प कहानियां भी देखी जा सकती है।'

'कम समय में बड़ी बात कह जाती हैं ऐसी फिल्में'

करीब 17 साल से अमेरिका में रह रही गुंजन कुथियाला ने एंथोलॉजी फिल्म 'ग्रे स्टोरीज' का निर्माण किया है। वह कहती हैं, 'मेरे पास चार अलग-अलग कहानियां थीं, इन्हें सूत्रधार ने बांधा है। हम अलग-अलग कहानियां दिखाना चाहते थे। 'ग्रे स्टोरीज' में बोल्ड और रिश्तों की कई परत वाली कहानियां हैं। ऐसी कहानियां कम समय में बड़ी बात कह जाती हैं। इस वजह से निर्माताओं की इनमें दिलचस्पी बढ़ रही है।'

निडर हुआ है सिनेमा

वहीं, फिल्ममेकर सतीश कौशिक कहते हैं, 'एंथोलॉजी का जॉनर नए निर्देशकों को उत्साहित करता है। 'लाइफ इन ए मेट्रो' फिल्म दर्शकों को पसंद आई थी। मुझे भी वह फिल्म काफी पसंद आई थी। एक ही जगह चार कहानियां बनाना और उन्हें फिर जोड़ना मुश्किल काम भी है। आज का सिनेमा बहुत फियरलेस और ओपन हो गया है। आप कुछ भी नया ट्राई कर सकते हैं। आप जो सोचते हैं, उसके मुताबिक फिल्में बना सकते हैं। अब पहले की तरह नहीं है कि उन्हीं चार-पांच कहानियों को घुमा-फिरा कर बना रहे हैं। आज विषय चाहे किसी किताब, घटना या किसी की जिंदगी पर आधारित हो, उसमें ड्रामैटिक वैल्यू का ख्याल रखते हुए फिल्में बनती हैं। एंथोलॉजी जैसे जॉनर लोगों के सामने लाए जा रहे हैं और वे सफल हो रहे हैं।' 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.