Move to Jagran APP

एक्टिंग के साथ बिजनेस भी समझते हैं सितारे, अमिताभ बच्चन से लेकर विद्युत जामवाल तक प्रोडक्शन में भी आजमा रहे हाथ

पिछले दिनों आलिया भट्ट ईशा देओल रिचा चड्ढा अली फजल तापसी पन्नू विद्युत जामवाल ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी के तहत फिल्मों का ऐलान किया है। फिल्म निर्माण में कलाकारों की रुचि दूसरे निर्माताओं के साथ साझेदारी व बिजनेस की अन्य चुनौतियों की पड़ताल की स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह ने।

By Pratiksha RanawatEdited By: Published: Fri, 23 Jul 2021 11:27 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 11:27 PM (IST)
एक्टिंग के साथ बिजनेस भी समझते हैं  सितारे, अमिताभ बच्चन से लेकर विद्युत जामवाल तक प्रोडक्शन में भी आजमा रहे हाथ
विद्युत जामवाल, तापसी पन्नू, अमिताभ बच्चन, फोटो साभार: Instagram

 स्मिता श्रीवास्तव/प्रियंका सिंह, मुंबई। अभिनय के साथ अपनी पसंद के कंटेंट का हिस्सा बनने के लिए कलाकार फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे हैं। बीते दौर में स्वर्गीय गुरु दत्त, राज कपूर से लेकर आजकल अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, अक्षय कुमार, अनुष्का शर्मा, कंगना रनोट, लारा दत्ता, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा इत्यादि कलाकार फिल्म निर्माण में भी सक्रिय हैं। पिछले दिनों आलिया भट्ट, ईशा देओल तख्तानी, रिचा चड्ढा, अली फजल, तापसी पन्नू, विद्युत जामवाल ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी के तहत फिल्मों का ऐलान किया है। फिल्म निर्माण में कलाकारों की रुचि, दूसरे निर्माताओं के साथ साझेदारी व बिजनेस की अन्य चुनौतियों की पड़ताल की स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह ने...

loksabha election banner

पिछली सदी के पांचवें और छठवें दशक में कई अभिनेताओं ने फिल्मों का निर्माण किया। गुरु दत्त ने अपने बैनर गुरु दत्त मूवीज प्राइवेट लिमिटेड के तहत ‘आर पार’ (1954), ‘सीआईडी ’ (1956) और ‘प्यासा’ (1957) जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्माण किया। देव आनंद की कंपनी नवकेतन फिल्म्स ने ‘हरे रामा हरे कृष्णा’, ‘गाइड’, ‘ज्वैलथीफ’ जैसी हिट फिल्में दीं। इन अभिनेताओं ने उन फिल्मों को बनाया जिन पर वे विश्वास करते थे। आज के अभिनेता, अपनी ब्रांड छवि के बारे में जागरूक हैं, वे उन फिल्मों का निर्माण पसंद करते हैं, जिनसे वे जुड़ना चाहते हैं।

नए विषयों को उठाने का जोखिम

जॉन अब्राहम की कंपनी जेए एंटरटेनमेंट के प्रोडक्शन तले पहली फिल्म ‘विक्की डोनर’ बनाई थी। स्पर्म डोनेशन जैसे टैबू विषय पर आधारित फिल्म ‘विक्की डोनर’ को बनाने में करीब नौ करोड़ रुपये खर्च हुए जबकि फिल्म ने 44 करोड़ रुपये की कमाई की। हालांकि उनसे पहले अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे अभिनेता अपने पहले प्रयास में हाथ जला चुके थे, पर उन्होंने हार नहीं मानी और फिल्म निर्माण का क्रम जारी रखा। अजय देवगन ने 30 करोड़ रुपये बजट से फिल्म ‘राजू चाचा’ बनाई थी, पर वह फ्लॉप रही। अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल ने ‘तेरे मेरे सपने’ (1996), मृत्युदाता (1997), अक्स (2001) जैसी फिल्में बनाईं, लेकिन खराब वित्तीय प्रबंधन, मार्केटिंग और ड्रिस्ट्रीब्यूशन के कारण वे विफल रहीं। एबीसीएल को एबी कार्पोरेशन लिमिटेड के रूप में पुनर्जीवित किया गया और रिलायंस बिग पिक्चर्स के साथ फिल्म ‘पा’ का निर्माण किया गया। बिग बी और अभिषेक बच्चन अभिनीत 15 करोड़ रुपये की फिल्म ने लगभग 60 करोड़ की कमाई की। शाहरुख खान और आमिर खान साल 2000 की शुरुआत में निर्माता बने और सफल रहे। आमिर खान की बतौर निर्माता पहली फिल्म ‘लगान’ (2000) को बनाने में करीब 25 करोड़ रुपये की लागत आई थी और इसने करीब 75 करोड़ रुपये कमाए।

स्टूडियो किसी को जज नहीं करता

कई बड़े स्टूडियोज हैं, जो निर्माताओं के साथ मिलकर फिल्में बनाते हैं। इस बाबत रिलायंस एंटरटेनमेंट के सीईओ शिबाशीष सरकार कहते हैं, ‘फिल्म प्रोडक्शन की एक्टिविटी और एक्टर जो किरदार फिल्म में निभाते हैं, वे दो अलग चीजें हैं। अगर कोई निर्माता कोई कंटेंट प्रोड्यूस कर रहा है तो स्टूडियो सबसे पहले यही देखता है कि क्रिएटिव इनपुट्स क्या हैं, निर्देशक कौन है, कहानी कैसी है। एक्टर कौन है या वह फिल्म का निर्माण कर रहा है? इससे ज्यादा जरूरी है यह देखना कि उनकी आर्गेनाइजेशन का कहानी कहने का तरीका और विस्तार क्या है। अगर क्रिएटिव बात होगी, तो फिर चाहे एक्टर की प्रोडक्शन कंपनी हो या निर्देशक की या फिर स्टैंड अलोन निर्माता जैसे साजिद नाडियाडवाला, दिनेश विजन की कंपनी हो, जो सिर्फ निर्माता हैं और निर्देशन या एक्टिंग के क्षेत्र से नहीं आते हैं, उन्हें स्टूडियो अलग तरह से जज नहीं करता है। जब एक्टर प्रोडक्शन का हिस्सा होता है और फिल्म में एक्टिंग भी कर रहा होता है तो कई बार फायदेमंद हो जाता है। एक्टर्स अच्छे क्रिएटिव इनपुट्स देते हैं। हालांकि निर्माता बने एक्टर के लिए निर्देशक और लेखक को ओवरशैडो न करते हुए एक संतुलन बनाए रखना जरूरी है।’

विश्वसनीयता बढ़ाते हैं सितारे

ट्रेड विशेषज्ञ और निर्माता गिरीश जौहर कहते हैं, ‘एक्टर्स निर्माता बनने के बाद अपने कंटेंट और मनपंसद कहानी को खुद कंट्रोल कर सकते हैं। इकोनॉमिक्स के साथ क्रिएटिविटी को कैसे मिक्स किया जाता है, इसकी समझ भी उन्हें होती है। उनके ब्रांड नेम की वजह से प्रोडक्शन हाउस के प्रमोशन पर ज्यादा खर्च भी नहीं करना पड़ता है। एक विश्वसनीयता जुड़ जाती है। हर एक्टर का अपना दायरा होता है। कोई क्रिएटिविटी पर ज्यादा ध्यान देता है, कोई कहानी को लेकर ज्यादा सतर्क होता है। वे जिस उद्देश्य के साथ प्रोडक्शन हाउस शुरू करते हैं, उसकी ओर ही अग्रसर रहते हैं। यही वजह है कि पहले के कलाकारों के मुकाबले प्रोडक्शन में वे नुकसान से बचे रहते हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म ने भी उनके लिए मौके बढ़ा दिए हैं। निर्माता बनने के बाद इकोनोमिक कंट्रोल की समझ बढ़ जाती है कि जितना बजट तय है, उसी में फिल्म को बनाना है। शूटिंग समय पर पूरी करनी है।’

टेबल की दूसरी तरफ की दिक्कतों का एहसास

अजय देवगन के साथ फिल्म ‘द बिग बुल’ का सह निर्माण कर चुके निर्माता आनंद पंडित ने अमिताभ बच्चन के साथ अपनी आगामी फिल्म ‘चेहरे’ का सह निर्माण किया है। वह कहते हैं, ‘उनका जो तजुर्बा था वह हमारे काम आया। जब एक अनुभवी अभिनेता आपके साथ बतौर निर्माता जुड़ता है तो एक और एक ग्यारह हो जाते हैं। एक कंफर्ट लेवल आ जाता है कि एक स्टार आपके साथ बतौर निर्माता जुड़े हैं। उनके कनेक्शन, उनकी फिल्म को लेकर समझ फिल्म को बेहतर बनाने में योगदान देती है। मैं पसंद करता हूं कि कोई स्टार बतौर निर्माता मेरे साथ काम करे। कलाकारों का फिल्म निर्माण में उतरना सकारात्मक कदम है, क्योंकि इसकी वजह से उन्हें टेबल की दूसरी तरफ यानी निर्माताओं की दिक्कतों का एहसास होगा।’

मुनाफे में हिस्से की कहानी

अक्षय कुमार, शाहरुख खान या आमिर खान एक फिल्म में अभिनय करने के लिए लगभग 20-25 करोड़ रुपये लेते हैं, वहीं सह-निर्माता के रूप में वे लाभ का बड़ा हिस्सा लेने के लिए सहमत होते हैं। अगर कोई फिल्म अच्छा प्रदर्शन करती है तो अभिनेता और स्टूडियो दोनों को फायदा होता है। अगर फिल्म खराब प्रदर्शन करती है तो स्टूडियो को अभिनय के लिए मोटी फीस नहीं देनी पड़ती। फिल्म जानकारों के मुताबिक भारत में मुख्य अभिनेता की कुल फीस फिल्म लागत का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा होती है। जब लागत का एक घटक इतना अधिक होता है तो जोखिम को कम करना आवश्यक होता है। ऐसा करने का एक अच्छा तरीका यह है कि परियोजना के लिए अग्रिम वित्तीय प्रतिबद्धता को कम किया जाए। अभिनेता को जोड़ा जाए ताकि रिस्क को कम किया जा सके।

अहम है चुनौतियों के लिए तैयार होना

पिछली सदी के विपरीत आज बड़ी संख्या में अभिनेत्रियां जैसे लारा दत्ता, दीया मिर्जा, दीपिका पादुकोण, अनुष्का शर्मा, कंगना रनोट, रिचा चड्ढा फिल्म निर्माण में कदम रख चुकी हैं। इंडस्ट्री में महिला प्रोड्यूसर की बढ़ती तादाद के बाबत निर्देशक से निर्माता बनीं अश्विनी अय्यर तिवारी कहती हैं, ‘महिलाएं बड़े पदों पर जिम्मेदारियां निभा रही हैं। यहां पर सवाल महिला या पुरुष का नहीं है। सवाल यह है कि क्या आप बडे़ चैलेंज लेने के लिए तैयार हैं। मेरे लिए प्रोड्यूसर होने का अर्थ है कि मैं युवा लेखकों, प्रतिभाशाली लोगों को प्रोत्साहित कर सकूं हूं जो निर्देशक बन सकते हैं और अपनी कहानी कहना चाहते हैं। मुझे भी यह मौका मिला था जब आनंद एल राय ने मेरी ‘निल बटे सन्नाटा’ की कहानी सुनी तो उन्होंने कहा कि तुम्हें निर्देशन करना चाहिए। एडवरटाइजिंग से मैं निर्देशन में आई। निल बट्टे सन्नाटा के बाद एकता कपूर ने मुझसे कहा था कि तुम निर्देशक से कहीं ज्यादा हो तुम्हें प्रोड्यूसर बनना चाहिए क्योंकि प्रोड्यूसर में टैलेंट, अच्छी कहानी को पहचानने की क्षमता होती है। यह सिर्फ प्रोडक्शन की बात नहीं है।’

क्षेत्रीय कहानियों को प्रमोट करने की ख्वाहिश

प्रियंका चोपड़ा ने अपने प्रोडक्शन हाउस पर्पल पेबल्स पिक्चर्स के तले फिल्म ‘द स्काई इर्ज पिंक’ और ‘द व्हाइट टाइगर’ बनाईं। दोनों ही फिल्मों से प्रियंका बतौर कलाकार भी जुड़ीं। उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्में बनाने की भी इच्छा जाहिर की है। वह कहती हैं कि मेरे पिता सेना में थे। उनकी पोस्टिंग देश के कई हिस्सों में हुई थी। जिससे मैं देश के कई स्थानों और संस्कृतियों में पली-बढ़ी हूं। बतौर निर्माता मैं लोकल कहानियों को सपोर्ट करने की इच्छा पूरी कर पा रही हूं। मैं ऐसा कंटेंट बनाना चाहती हूं जिसमें नए फिल्ममेकर्स और नई प्रतिभाओं को मौका मिले।

नई प्रतिभाओं को देना है मौका

विद्युत जामवाल ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी एक्शन हीरो फिल्म्स की पहली फिल्म ‘आईबी 71’ का ऐलान किया है। इस फिल्म का निर्माण वह रिलायंस एंटरटेनमेंट के साथ मिलकर करेंगे। निर्माता बनने की वजह बताते हुए विद्युत कहते हैं कि जितना मुझे फिल्म इंडस्ट्री से मिला है, उतना ही अच्छा देने की कोशिश करूंगा। मैं अपनी निर्माण कंपनी को प्रतिभाशाली लोगों को आगे बढ़ाने के अवसर के तौर पर देख रहा हूं। विद्युत की तरह ही सोच रखती हैं हाल ही में निर्माता बनी तापसी पन्नू। वह कहती हैं कि अपने प्रोडक्शन हाउस आउटसाइडर्स फिल्म्स की फिल्मों में आउटसाइडर्स को मौका देकर इंडस्ट्री का कर्ज उतारना चाहती हूं।

कोविड के बाद बदलेगा सीन

कोरोना के बाद प्रोडक्शन हाउस का रोल अहम होगा। शिबाशीष कहते हैं कि भले ही प्रोडक्शन हाउस एक्टर का हो ना हो, प्रोडक्शन को क्रिएटिव यूनिट्स, ट्रेलर, प्रोमो, गाने का प्रोमो यह सब क्रिएट करने के लिए अहम रोल निभाना होगा। डायरेक्टर्स और प्रोडक्शन हाउस बहुत ही नजदीकी से स्टूडियो के साथ काम करते हैं। अगर एक्टर निर्माता है, तो उन्हें भी वक्त निकालना होगा, क्रिएटिव इनपुट देना होगा। जिम्मेदारी बढ़ जाएगी क्योंकि वह न सिर्फ बतौर एक्टर काम करेंगे, बल्कि क्रिएटिव प्रोड्यूसर के तौर पर भी जुड़ेंगे। भारत में स्टूडियो फिल्म के साथ पहले दिन से ही जुड़ा होता है, ऐसे में रिस्क स्टूडियो के पास ज्यादा होता है। लेकिन अगर रिवॉर्ड मिलता है तो वह प्रोडक्शन हाउस के साथ शेयर होता है। कई बार सिर्फ मार्जिन ही प्रोडक्शन हाउस को दे दिया जाता है। स्टूडियो अगर सिर्फ डिस्ट्रीब्यूटर के तौर पर जुड़ता है तो फिर कई मॉडल्स होते हैं। जब स्टूडियो नाम खरीद लेता है, तो मिनिमम गारंटी होती है, रिस्क बढ़ जाता है। एडवांस डील अगर होती है, तो स्टूडियो पर कोई फाइनेंशियल जिम्मेदारी नहीं होती है, अगर कुछ कमी होती है तो निर्माता को वह भरपाई करनी होती है। अगर स्टूडियो सिर्फ कमीशन डील पर है तो कोई रिस्क नहीं होता है। अगर स्टूडियो शुरुआत से जुड़ा होता है तो रिस्क और रिवार्ड दोनों ही स्टूडियो के पास ज्यादा होता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.