एक्टर अनिल धवन ने बताया, शूटिंग के दौरान कैसे काम करते थे बासु चटर्जी
बासु दा मेरी फिल्म चेतनादेख चुके थे। फिल्म हिट रही थी। वहां से उन्हें लगा कि मैं उनकी फिल्म में फिट रहूंगा। उन्हें सिंपल लड़का चाहिए था।
मुंबई, (स्मिता श्रीवास्तव)। फिल्म 'पिया का घर' मेरे लिए हमेशा खास रहेगी। इस फिल्म के निर्माता ताराचंद बडज़ात्या ने मुझे अपने मुंबई के प्रभादेवी स्थित ऑफिस बुलाया था। उन्होंने वहां पर मेरी मुलाकात बासु चटर्जी से करवाई थी, जिन्हें हम प्यार से बासु दा संबोधित करते थे। बासु दा मेरी फिल्म 'चेतना'देख चुके थे। फिल्म हिट रही थी। वहां से उन्हें लगा कि मैं उनकी फिल्म में फिट रहूंगा। उन्हें सिंपल लड़का चाहिए था। छोटे घर का माहौल रहेगा। उस समय जया भादुड़ी और मैं इंडस्ट्री में नए थे। फिल्म की अधिकतम शूटिंग मुंबई के चौल में हुई थी। उसके अलावा रॉक्सी सिनेमा और जुहू में की थी। हम सुबह नौ बजे चौल पहुंच जाते थे। शाम साढ़े पांच तक वहीं पर शूटिंग करते थे।
बासु दा बहुत साधारण इंसान थे। वह सेट पर अपना पूरा होमवर्क करके आते थे। उनके साथ हमेशा एक कॉपी रहती थी। उसमें सीन को कैसे शूट करना है उसका पूरा ब्योरा लिखा होता था। मसलन लाइट को कहां लगाना है, कलाकार को किधर खड़े होना है। कैमरे का एंगल क्या होगा यह सब कॉपी में दर्ज होता था। वह कहते थे कि जितनी जल्दी काम खत्म कर लोगे उतनी जल्दी घर भेज देंगे।
उनके साथ काम करते हुए लगता नहीं था कि काम कर रहे हैं। पारिवारिक माहौल रहता था। फिल्म में एक गाना है, यह जुल्फ कैसी है। इसे मुंबई की सड़कों पर फिल्माया
गया था। फिल्म में एक सीन में मैं और जया भादुडी ट्रेन में हैं। उसकी शूटिंग के दौरान हमें बताया गया कि कैमरा कार में रहेगा। जैसे ही ट्रेन चलेगी कैमरे वाली गाड़ी भी चलेगी और वे शूट करते जाएंगे। बासु दा ने कहा कि आप दोनों बस बातें करना और हंसते रहना। हम दोनों ट्रेन के दरवाजे पास खड़े हो गए। जैसे ही ट्रेन चली कैमरा भी चल पड़ा हमारा शॉट हो गया। फिर थोड़ी बाद मैंने जया से पूछा कि हमें उतरना कहां हैं? जया ने कहा मुझे नहीं मालूम। हम दोनों को शहर के बारे में कुछ पता नहीं था। उस समय मैं बांद्रा में ही रह रहा था। हम बांद्रा स्टेशन पर उतर गए। वहां से टैक्सी पकड़कर कर हम राजश्री के ऑफिस गए। बासु दा आए तो उन्होंने कहा कि अरे तुम लोगों को अगले स्टेशन पर उतर जाना चाहिए था। हमने पूछा कौन सा अगला स्टेशन। दरअसल, मैं लोकल ट्रेन में कभी नहीं चढ़ा था।
बहरहाल, बासु दा जितनी सरल फिल्में बनाते थे उतने ही सरल इंसान थे। उनके कोई नखरे नहीं होते थे। उस समय उनकी हिंदी ठीकठाक थी। तब हिंदी के असिस्टेंट सेट पर रहते थे। बाद में वह हिंदी में माहिर हो गए थे। जया और बासु दा सेट पर बांग्ला में ही बात करते थे। फिल्म में घरों की समस्या और पानी की कमी का मसला दिखाया गया था। यह समस्या आज भी जस की तस है। बहरहाल, उस फिल्म का पूरा एलबम मेरे पास है। उसे मैंने संभालकर अपने पास रख रखा है।