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डिजिटल मीडियम पर सेंसरशिप होनी ही नहीं चाहिए : विक्रांत मेसी

विक्रांत की आने वाली फिल्मों में यार जिगरी, कार्गो, अलंकृता की फिल्म और सीमा पाहवा की फिल्म पिंड दान शामिल हैं.

By Rahul soniEdited By: Published: Fri, 23 Nov 2018 02:47 PM (IST)Updated: Fri, 23 Nov 2018 02:47 PM (IST)
डिजिटल मीडियम पर सेंसरशिप होनी ही नहीं चाहिए : विक्रांत मेसी
डिजिटल मीडियम पर सेंसरशिप होनी ही नहीं चाहिए : विक्रांत मेसी

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। विक्रांत मेसी इन दिनों अपने दो वेब शो ब्रोकेन और मिर्जापुर को लेकर चर्चे में हैं. मिर्जापुर जहां अमज़ॉन प्राइम पर स्ट्रीम हो रहा है, वही दूसरी तरफ ऑल्ट बालाजी के शो ब्रोकेन की शुरुआत जल्द ही होगी. ऐसे में जागरण डॉट कॉम ने विक्रांत से बातचीत की.

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विक्रांत ने बताया कि उन्हें ख़ुशी है कि उन्हें लगातार अच्छे ऑफ़र मिल रहे हैं और उनके लिए यह मायने नहीं रखता कि प्लेटफार्म क्या है. वह कहते हैं मैंने टीवी से शुरुआत की थी और मुझे अच्छे प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बनने का मौक़ा भी मिला. वेब में नयी चुनौतियाँ हैं तो नए मौके भी हैं. मैं एक्सप्लोर कर रहा हूं. अपने शो मिर्जापुर के बारे में विक्रांत कहते हैं कि उस शो से जुड़ने की सबसे बड़ी वजह यह रही कि शो में मुझे ऐसा किरदार निभाने का मौक़ा मिला, जो अबतक मैंने कभी नहीं निभाया था. ब्रोकन दो लोगों की लवस्टोरी है. आमतौर पर जो चीज टूट जाती है तो हम उसको उठा कर फेंक देते हैं, फिर चाहे वह चाय का कप हो या कुछ और. लेकिन जापान में यह बात बहुत आम है, कि जो चीज भी वहां टूटती है उसे दोबारा जोड़ लिया जाता है और उसे रखा जाता है, यादगार के रूप में. शो में मैं एक बैंकर की भूमिका में हूं. विक्रांत कहते हैं कि मैं ओल्ड स्कूल वाले लव में विश्वास करता हूं.

यह पूछे जाने पर कि पिछले लंबे दिनों से ये बातें हो रही है कि जो चीजें हम टीवी पर नहीं दिखा सकते, उसके लिए वेब मीडियम है. आप क्या सोचते हैं. इस पर विक्रांत कहते हैं कि उनका मानना है कि अगर कहानी की जरूरत है तो इसे रखने में कोई दिक्कत नहीं है. हालांकि ब्रोकन में ऐसा कुछ भी नहीं है. टेलीविजन में आप नहीं कर पाते हैं. फिल्मों में आपको सेंसरशिप मिल जाती है. यह सच है कि जहां पर आपको खुला मैदान मिलता है, वह वेब की दुनिया है. हमने पहले भी यह चीज देखी है कि जब वेब का बूम आया था तो जबरदस्ती की सारी गालियाँ और बेवजह की चीजें दिखाते थे. उस वक़्त लगता था कि भड़ास और किसी को सबक सिखाने के लिए यह सब किया जा रहा था. मैं भी इसका कभी हिस्सा था. अक्सर लोग कहते हैं कि फिल्मों में सेक्स नहीं दिखाना चाहिए. फिल्मों में गालिया नहीं होनी चाहिए. लेकिन क्या वह हमारे समाज में मौजूद नहीं है, कामसूत्र हमारे देश से निकला है और फिर हम दोहरे मापदंड वाली बातें क्यों करते हैं.

वेब को लेकर होने वाली सेंसरशिप के बारे में विक्रांत कहते हैं कि सेंसरशिप होनी ही नहीं चाहिए. हम सब समझदार हैं. हम सब कहीं न कहीं इतने योग्य हैं कि हमें यह निर्णय लेने का अधिकार हो कि हमें क्या देखना है और क्या नहीं. मैं यह बात कहना चाहूंगा कि सेंसरशिप कहीं न कहीं आपको बाधित करती हैं. टेलीविजन के जितने शो हैं. वो हमारे देश के लिए बनते हैं. हमारे समाज के लिए बनते हैं. लेकिन डिजिटल कंटेंट के साथ तो ऐसा नहीं है. चूंकि अगर आपको आप सीधे तौर पर इंटरनेशनल मार्केट में पहुंचना है तो, ऐसे में आपको इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बरकरार रखने होंगे. ये हमारे लिए एक प्लेटफॉर्म की तरह है. जहां हम इंटरनेशनल कंटेंट के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं. अपना स्किल दिखा सकते हैं. अगर पाबंदिया लग गयी तो घूम फिर कर वही बात हो जाएगी कि अपने ही देश में लोगों तक सीमित रह जाएंगे.

बता दें कि विक्रांत की आने वाली फिल्मों में यार जिगरी, कार्गो, अलंकृता की फिल्म और सीमा पाहवा की फिल्म पिंड दान शामिल हैं.

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