Move to Jagran APP

फ़िल्म का स्टार्टअप है शार्ट फ़िल्म: टिस्का चोपड़ा

टिस्का- हमारे देश में बच्चों लायक सेंसबिल कंटेंट नहीं है। हम अपने बच्चों को मासूम और भोला समझते हैं। जरूरत बच्चों के हिसाब से कटेंट देने की है।

By Hirendra JEdited By: Published: Tue, 04 Jul 2017 12:16 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jul 2017 12:16 PM (IST)
फ़िल्म का स्टार्टअप है शार्ट फ़िल्म: टिस्का चोपड़ा
फ़िल्म का स्टार्टअप है शार्ट फ़िल्म: टिस्का चोपड़ा

स्मिता श्रीवास्तव ,नई दिल्ली। ‘शार्ट फ़िल्म 'चटनी' को लेकर कुछ लोगों के मन में संशय था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उसमें अभिनय के साथ मैं निर्माण में क्यों जुड़ी हूं। उसकी सफलता ने सभी के सवालों का जवाब दे दिया। साथ ही यकीन दिलाया कि हमारा अगला प्रोजेक्ट उम्दा होगा।‘ ये बातें अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा ने सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में जारी जागरण फ़िल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) के तीसरे दिन कही।

prime article banner

उनका मानना है कि सिनेमा में करियर बनाने वालों के लिए शार्ट फ़िल्म स्टार्टअप की तरह है। फीचर फ़िल्म की ओर कदम बढ़ाने के लिए शार्ट फ़िल्म बेहतरीन प्लेटफार्म है। वो अपने निर्माता बनने के राज खोलती हैं- ‘मैं निर्माता इसलिए बनी ताकि अलहदा किरदार निभा सकूं। निर्माता बनने के बाद पर्दे के पीछे की मुश्किलें समझ आई हैं। ‘चटनी’ में मैंने कई गलतियां कीं। मसलन ज्यादा पैसा खर्च नहीं किया। मुझे लगता है कि मैं उसे ज्यादा बेहतर बना सकती थी।‘

यह भी पढ़ें: जागरण फ़िल्म फेस्टिवल: खुली धूप से खिले दर्शक

बंद हो लैंगिक भेदभाव

हिंदी सिनेमा में निर्देशन या फ़िल्म निर्माण में चुनिंदा महिलाएं ही सक्रिय हैं। यह हालात कमोबेश दुनिया के सभी हिस्से में हैं। लैंगिक समानता के मामले में पश्चिमी देश अग्रणी हैं। बावजूद इसके जेनिफर लारेंस समेत कई हॉलीवुड अभिनेत्रियों ने फीस में असमानता को लेकर अपनी आवाज बुलंद की है। लिहाजा यह समस्या विश्वव्यापी है। टिस्का अपने देश की हालत पर तल्ख सवाल खड़े करती हैं और पूछती हैं कि काम में लैंगिक आधार पर विभाजन क्यों? निर्देशन में महिला निर्देशक संबोधित होता है। यह भेदभाव क्यों? काम तो वह भी वही कर रही है जो पुरुष निर्देशक कर रहा है। यही नहीं कहानियों को भी महिला-पुरुष के खांचे में डाल दिया जाता है ।

बाल सिनेमा की कमी खलती हैं

हिंदी सिनेमा में काफी बदलाव आया है। हालांकि बच्चों की फ़िल्मों में फिल्ममेकर ज्यादा रुचि नहीं लेते। लेते भी हैं तो फ़िल्में प्रभाव छोडऩे में नाकामयाब रहती हैं। टिस्का को भी बाल फ़िल्मों की कमी अखरती हैं। वह कहती हैं, मेरी साढ़े चार साल की बेटी है। वह सिर्फ हॉलीवुड की फ़िल्में देखती है। दरअसल, हमारे देश में बच्चों लायक सेंसबिल कंटेंट नहीं है। हम अपने बच्चों को मासूम और भोला समझते हैं। जरूरत बच्चों के हिसाब से कटेंट देने की है।

यह भी पढ़ें: जागरण फ़िल्म फेस्टिवल में तीसरे दिन भी रही युवाओं की भीड़, ये स्टार्स भी पहुंचे

जेएफएफ से टिस्का का पुराना नाता है। टिस्का के मुताबिक 'जागरण समूह की खासियत है कि ये देश की जड़ों से जुड़ा है और इसकी पहुंच व्यापक है। इस फेस्टिवल के माध्यम से सिनेमा और शार्ट फ़िल्म्स दूरदराज तक पहुंच रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.