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गीत नहीं गाएंगी..

हमने पिछली बातचीत के अंत में यह बताया था कि गुरुदत्त को यह फील हो रहा था कि 'चौदहवीं का चांद' मेरी फिल्म है और इसमें गीता का गाया कोई गाना नहीं है? अब आगे की बात.., तो उनके मन में यह बात जरूर थी कि इस फिल्म में गीता के गाये गीत नहीं हैं, लेकिन गुरुदत्त स

By Edited By: Published: Tue, 23 Apr 2013 05:28 PM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2013 06:23 PM (IST)
गीत नहीं गाएंगी..

नई दिल्ली। हमने पिछली बातचीत के अंत में यह बताया था कि गुरुदत्त को यह फील हो रहा था कि 'चौदहवीं का चांद' मेरी फिल्म है और इसमें गीता का गाया कोई गाना नहीं है? अब आगे की बात.., तो उनके मन में यह बात जरूर थी कि इस फिल्म में गीता के गाये गीत नहीं हैं, लेकिन गुरुदत्त साहब मुझे भी जानते थे कि मैं संगीत को लेकर कभी समझौता नहीं कर सकता, सो काफी संकोच के साथ गुरुदत्त ने एक दिन बांग्ला में मुझसे कहा, 'येई गान टा गीता गेये नेबे..', यानी यह गाना गीता गा लेंगी। वे अक्सर मुझसे बांग्ला में भी बात कर लेते थे। मैंने कहा, 'कोशिश कर के देख लेते हैं।' तो उन्होंने कहा कि ठीक है। फिर उन्होंने कहा, मैं गीता को फोन कर देता हूं। घर जाकर आप उससे रिहर्सल करवाएं।

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इस गीत की धुन बन गई थी। मैं गुरुदत्त के घर जाकर गीता दत्त को रिहर्सल कराने लगा। वैसे मैं उन्हें पहले भी कई बार गीत गवा चुका था, लेकिन यह गीत चूंकि अलग था, तो उन्हें गीत सिखाने का काम कुछ दिनों तक चलता रहा। एक दिन उन्हें रिहर्सल कराने के बाद मैं वापस गुरुदत्त के ऑफिस में आ गया। इससे पहले मैं कुछ बोलता, गुरुदत्त हंसने लगे। उन्हें हंसता देख मैंने कहा, 'इतनी हंसी क्यों आ रही है?' वे बोले, 'गीता का फोन आया था। उसने कहा है कि गाना आशा से गवा लें।'

मैं उनकी इस बात को सुनकर परेशान हो गया। मेरे परेशान होने की वजह थी कि अभी तो मैं उन्हें सिखा ही रहा हूं, तो वे क्यों हार गई? मैंने गुरुदत्त से पूछा, 'अभी तो वे अच्छा गा रही थीं? ऐसा क्यों हुआ और क्या बात हुई?' उन्होंने मुझे बताया, 'रवि साहब, उनका कहना है कि इस गीत में तान और आलाप बहुत हैं।' फिर मैंने गीता दत्त से बाद में बात की, तो उन्होंने भी कहा, 'यह मुजरेवालियों का और नखरे-वखरे वाला गाना मैं नहीं गा सकती। अगर फिल्म में कोई और गीत जो सीधा-सीधा गाना हो, तो मुझसे गवाइए..।' फिर मैंने इसी फिल्म में उनसे बड़ा प्यारा गाना गवाया, जिसके बोल थे, 'बालम से मिलन होगा, शरमाने के दिन आए..'। इस गीत को गीता दत्त ने गाया।

इस गीत की भी एक कहानी बनी। दरअसल गीत 'बालम से मिलन होगा..' जब गीता दत्त की आवाज में रिकार्ड हुआ, तो टै्रक को मैं साथ ले आया था। मैं स्टूडियो से सीधे गुरुदत्त के ऑफिस आया। मैंने उनसे कहा, गीता जी वाला गीत रिकार्ड हो गया है। तो उन्होंने कहा, जरा सुनाइए। फिर मैंने वह गीत रिकॉर्ड प्लेयर पर लगाकर उन्हें सुना दिया। जब गीत खत्म हुआ, तब उन्होंने कहा, एक बार फिर सुनाइए। वैसा ही हुआ। गुरुदत्त जब गीत सुन रहे थे, तब मुझे ऐसा लगा कि उनका मन गीत सुनकर हल्का होने के बजाय भारी हो रहा है। खैर, गीत खत्म होने के बाद मैं यह सोच रहा था कि वे अच्छा कहेंगे, लेकिन हुआ उल्टा। उन्होंने मुझे यही पूछा, 'क्या आप इस गीत में गीता की आवाज से संतुष्ट हैं?' मैं उनकी बात सुनकर चुप रहा गया। मैंने गीता दत्त की आवाज के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा, लेकिन मेरी खामोशी स्पष्ट थी। गुरुदत्त को भी संकेत मिल गया था। उन्होंने मुझसे कहा, 'फिल्म 'चौदहवीं का चांद' के बाकी गीत आप आशा से गवाएंगे। गीता नहीं गाएंगी। दूसरी फिल्म में वे भले ही गा लेंगी।' तब मैंने जोर देकर गुरुदत्त से कहा, 'चूंकि यह गीत मैंने गीता जी से गवा लिया है और उन्होंने जितना हो सका, मेहनत से गाया है तो आप इसे फिल्म में उसी रूप में रखेंगे। प्लीज..'

यह गुरुदत्त की खासियत थी और मेरी भी। मैंने जिसके साथ भी काम किया, कभी किसी की भावनाओं को नहीं छेड़ा। कोशिश कि किसी का दिल न दुखे और काम भी हो जाए। फिल्म 'चौदहवीं का चांद' के सभी गीत कमाल के थे, लेकिन अगर गौर किया जाए और आंका जाए, तो सबसे कमजोर गीत फिल्म का गीता दत्त का गाया 'बालम से मिलन होगा..' था। खैर, समय के साथ एक-एक कर फिल्म के सभी गीत तैयार होते रहे।

बाद में ऐसा हुआ कि हम लोग अपने-अपने कामों में बिजी रहे और एक बार फिर रफी साहब अपने शो के लिए कहीं चले गए। गुरुदत्त शूटिंग तो रोक नहीं सकते थे। अब सभी गीत तैयार हो गए थे। उनसे रफी साहब वाले गीत को ठीक करने को लेकर बात हुई तो बोले, शूटिंग कर लेता हूं, बाद में थोड़े से लिप मूवमेंट ठीक करने होंगे, जिसे बाद में कर लेंगे। उसके बाद एक दिन एचएमवी वाले गुरुदत्त साहब के पास पहुंचे। गुरुदत्त ने उनसे कहा कि रफी साहब इस गाने को फिर से रिकार्ड करेंगे, कुछ बदलाव होना है। रवि जी यह काम करवा लेंगे, लेकिन एचएमवी वालों ने कहा कि अभी गाना आप दे दीजिए। हम बाकी काम कर लेते हैं, फाइनल रिकार्ड हम बाद में तैयार करेंगे, तो गुरुदत्त ने वह ट्रैक उन्हें दे दिया।

यहां गलती यह हुई कि एचएमवी वाले उस व्यक्ति ने गुरुदत्त से हुई बातचीत को अपने ऑफिस के किसी सीनियर को नहीं बताया और ट्रैक उन्हें दे दिया। अपने काम के हिसाब से उन लोगों ने रिकार्ड तैयार किया और एक एक कर सभी गीत उनके पास आ गए, तो उन्होंने उसे रिलीज भी कर दिया। गाना 'चौदवीं का चांद हो..' खूब बजा और लोगों ने उसे बेहद पसंद किया। रफी साहब भी शो वगैरह में उसी अंदाज यानी शराबियों वाले उसी अंदाज में उस गीत को गाते थे। जब फिल्म को रिलीज करने का वक्त आया, तो गुरुदत्त ने मुझसे कहा कि आप तो गाने को दोबारा रिकार्ड करने वाले थे? मैंने कहा, 'हां..'। फिर रफी साहब को बुलवाया गया। वे आ भी गए, लेकिन तभी गुरुदत्त ने हंसकर मुझसे कहा, 'एक बात कहूं रवि जी, अगर गाना रिकार्ड करना चाहते हैं, तो कर लीजिए, मुझे कोई ऐतराज नहीं है, पर सच बताइएगा कि क्या वह गाना इससे ज्यादा हिट हो पाएगा और अब कोई इसे उस तरह से गाएगा, जैसा आप करना चाहते हैं? लोग इस गीत को गा और सुन रहे हैं।'

उनकी बात को महसूस करके मैंने कहा, 'यह तो वैसे ही सुपर-डुपर हिट गाना हो गया है। इससे ज्यादा हिट और क्या होगा?' फिर गुरुदत्त ने अपना फैसला सुनाया, 'जब इससे हिट नहीं होगा, तो अब इसे वैसे ही जाने दीजिए?'

तो कभी-कभी ऐसा हो जाता है, जो हमने कभी नहीं सोचा होता है। मैं आखिर तक इस गाने को फिर से रिकॉर्ड करने की बात सोचता रहा और जनता को मो. रफी का शराबियों वाला वही अंदाज पसंद आ गया। लोगों को उनकी वही अदा भा गई थी और यह गाना कितना हिट हुआ, किसी को बताने की जरूरत नहीं है। यह गीत आज भी सुना जाता है और सदाबहार गीतों में दर्ज है।

क्रमश:

इस अंक के सहयोगी : मुंबई से अजय ब्रह्मात्मज, अमित कर्ण, दिल्ली से रतन, इला श्रीवास्तव, यशा माथुर, स्मिता, पटना से संजीव कुमार आलोक

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