Happy Birthday Shashi Kapoor: कोलकाता का वह कमरा नंबर 17 और शशि कपूर की सोंदेश सी स्माइल
Happy Birthday Shashi Kapoor रवींद्र ने यह भी बताया कि हम लोग उनकी फिल्मों के बारे मे. उनके बचपन के बारे में खूब बातें करते थे. शशि कपूर को कोलकाता से इसलिए भी लगाव था कि उनका जन्म भी कोलकाता में ही हुआ था.
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई. शशि कपूर अब इस दुनिया में नहीं हैं. शशि कपूर का कोलकाता से एक खास कनेक्शन था, जिसके बारे में शायद ही अधिक बातें कभी सामने आयी हैं. जी हां, कोलकाता के होटल फेरीलॉन का कमरा नंबर 17 हमेशा शशि कपूर के लिए खास रहेगा. इसकी वजह यह है कि शशि कपूर जब भी कोलकाता जाते. वह इसी होटल के कमरे नंबर 17 में ही रुकते.
उनकी जिंदगी में इस रूम की खासियत क्यों थी, क्या थी. इसके बारे में खुद होटल के मैनेजर रवींद्रनाथ पाल ने बताया कि शशि कपूर जब पहली बार कोलकाता आये थे तो अपनी पत्नी के साथ हनीमून के लिए वह इसी होटल में आये थे और यही रुके थे. यही वजह थी कि उनकी जिंदगी में हमेशा के लिए यह कमरा खास हो गया था. मजेदार बात यह थी कि जब भी वह आते थे, पहले से हमें फोन कर दिया करते थे और मैं उसी रूम की बुकिंग ले लेता था उनके लिए. रवींद्रनाथ बताते हैं कि वह कोलकाता घूमने के शौकीन थे. वह हमेशा कोलकाता के लोगों की खूब तारीफ करते थे. कहते थे कि उन्हें यहां की भाषा बहुत पसंद है. सोंदेश (संदेश) मिठाई मंगा कर तो वह खूब खाते थे. हमारे पास उनकी बहुत सारी तस्वीरें हैं. हालांकि रवींद्रनाथ बताते हैं कि खाने पीने से अधिक उन्हें नाटक, साहित्य और घूमने फिरने में रुचि थी. वह कई बार कहते थे कि लोगों से मिल कर उन्हें अच्छा लगता है. रवींद्र ने बताया कि उनके फैन्स गेट के सामने आते थे होटल के तो वह लोगों से मिलते थे और ऑटोग्राफ़ देने से भी नहीं हिचकते थे. उस दौर में उस कमरे का नामकरण भी हमने रूम नंबर की जगह शशि कपूर कर लिया था.
रवींद्र ने यह भी बताया कि हम लोग उनकी फिल्मों के बारे मे. उनके बचपन के बारे में खूब बातें करते थे. शशि कपूर को कोलकाता से इसलिए भी लगाव था, कि उनका जन्म भी कोलकाता में ही हुआ था. इसलिए वह हमेशा अपनी बचपन की बातें और कोलकाता में उन जगहों पर जरूर जाते थे, जहां उनका जन्म हुआ था उसे बार-बार देखने जाते थे. रवींद्र ने उनकी सारी फिल्में देखी हैं. लेकिन सबसे पसुंदीदा फिल्मों में कन्यादान हैं. रवींद्र से कई बार शशि ने लिटरेचर, आर्ट, सिनेमा पर भी बातें की थीं.
रवींद्र बताते हैं कि वह कुछ नहीं तो कम से कम 100 से अधिक बार शशि से मिल चुके होंगे. वह रवींद्र को उनके नाम से नहीं बल्कि माइ फ्रेंड कह कर ही बात करते थे. सबसे खास बात जो रवींद्र को आकर्षित करती थी कि वह गाड़ी रोकने के बाद खड़े होकर गेटकीपर से भी बात करते थे और हाउस कीपिंग के लोगों से भी. चाय के बारे में वह कभी नहीं कहते थे कि चाय पीनी है. बांग्ला में कहते थे कि आमी चा खाबो. रवींद्र उन दिनों को याद करके कहते हैं कि उन्हें लगता था कि कपूर आये हैं तो उन्हें शानदार चाय पिलायी जाये लेकिन वह कहते थे कि उन्हें रोडसाइड टाइप चाय चाहिए. यही नहीं रवींद्र की पत्नी को उन्होंने गणेश की एक मूर्ति भी तोहफे के रूप में दी थी. रवींद्र कहते हैं कि आज भी कई लोग उस कमरे में ठहरते हैं तो खुश होते हैं कि यह शशि कपूर का कमरा था.
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