क्या थीं मजबूरियां, जो रातभर पैदल चलकर सुबह घर पहुंचते थे राज कपूर!
पृथ्वीराज कपूर कार में बैठकर जहां कहीं भी जाते थे, रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों, मस्जिदों और गिरजाघरों के सामने अपना सिर झुकाते थे।
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। हिंदी सिनेमा के शो-मैन कहे जाने वाले राज कपूर का आज 92वां जन्म दिन है। राज कपूर ने हिंदी सिनेमा को कई सफल फिल्में दी हैं। राज कपूर के जन्म दिन पर जानिए उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातेंः
मशहूर फ़िल्म विश्लेषक जय प्रकाश चौकसे की किताब में राज कपूर की ज़िंदगी से जुड़े कई दिलचस्प पहलुओं का ज़िक्र किया गया है। राज कपूर अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से ता-उम्र प्रभावित रहे, लेकिन पृथ्वीराज से उनका कभी दोस्तों वाला रिश्ता नहीं रहा था। वो अपने पिता की बहुत आदर करते थे। राज कपूर कभी भी अपने पिता के सामने सिगरेट या शराब का सेवन नहीं करते थे। हर फ़िल्म की शुरुआत में वो पिता का आशीर्वाद ज़रूर लेते थे। पृथ्वी थिएटर में शो के बाद पृथ्वीराज के कमरे में दिग्गजों की महफ़िल लगती थी।
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राज कपूर एक कोने में बैठकर विद्वानों की बातें सुना करते थे। पृथ्वीराज की बौद्धिक सभाएं बहुत देर तक चलती थीं। बाद में सबके जाने के बाद राज कपूर साफ़-सफाई कराके आॅपेरा हाउस से मांटूगा की ओर जाते थे। उस दौर में मुंबई में रात को बस या ट्रेन नहीं मिलने पर राज कपूर पैदल ही घर की ओर निकल जाया करते थे और वह घर तड़के पहुंचते थे। वैसे राज कपूर का पैदल चलने का ये अंदाज़ उनकी कई फ़िल्मों में भी नज़र आ चुका है। आइकॉनिक सांग 'मेरा जूता है जापानी' में राज साहब पैदल चलते ही नज़र आए हैं।
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पृथ्वीराज कपूर कार में बैठकर जहां कहीं भी जाते थे, रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों, मस्जिदों और गिरजाघरों के सामने अपना सिर झुकाते थे। राज साहब की यही आदत सभी कपूरों को विरासत में मिली है। राजकपूर की कॉटेज में सभी धर्मों के ग्रंथ रखे होते थे और वो सबको आदर देते थे।