जैकी श्रॉफ और पंकज त्रिपाठी जानें क्यों कह रहे हैं, 'जल संकट से बचाव में सभी का योगदान जरुरी'
जैकी ने आगे कहा सेट पर भी मैं दो बोतल पानी सत्तू डालकर ले जाता हूं उसकी वजह से ज्यादा पानी पीने की जरुरत नहीं पड़ती है। लोग पौधों में काफी पानी डाल देते हैं यह सोचकर कि वह जल्दी बढ़ जाएंगे। जबकि इसकी जरूरत नहीं होतीl
नई दिल्ली, जेएनएनl पानी की बर्बादी जल संरक्षण की दिशा में तमाम स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। फिल्मी सितारे भी इस मुहिम का अहम हिस्सा है। अपने-अपने स्तर पर वे एक तरफ जल संरक्षण के लिए जागरुकता अभियानों से जुड़े हैं। वहीं निजी स्तर पर भी इसके लिए प्रयासरत हैं। अपने प्रयासों को लेकर उन्होंने साझा की बातें :
बर्तन और कपड़ों का इस्तेमाल कम करें : जैकी श्रॉफ
पानी बचाने की शुरुआत घर से होती है। मैं डिस्पोजेबल प्लेट में खाना खाता हूं, ताकि बर्तन को धोने में पानी बर्बाद न हो। बर्तन, कपड़े साबुनों या डिटर्जेंट से धोया जाता है, वह गंदा पानी बहकर जमीन के भीतर चला जाता है। उससे ग्राउंड वाटर खराब हो सकता है। अगर एक करोड़ लोग दिन में तीन बार बर्तन धोते हैं, तो सोचिए जमीन का पानी कितना गंदा होगा। हम अपने फार्म पर जो बर्तन धोते हैं, वह राख और मिट्टी से धोते हैं। शहरों में राख लोग कहां से लाएंगे, इसलिए कम बर्तन और कपड़ों का इस्तेमाल करें। मैं खाना सीमित खाता हूं, उससे बर्तन कम निकलते हैं। दाल-चावल अगर बनाना है, तो उसे मटके में बना लेते है। कुएं का पानी मिल जाए, तो उसे उबालकर मिट्टी के मटके या सुराही में डालकर पीते हैं। मेरे घर के बाथरूम में जो फ्लश टैंक लगा है, वह तीन लीटर की बजाय एक लीटर वाला टैंक है। मैं नहीं चाहता हूं कि हमारी अगली पीढ़ी के बच्चे पानी के लिए किसी युद्ध का सामना करें।'
जैकी ने आगे कहा, 'सेट पर भी मैं दो बोतल पानी सत्तू डालकर ले जाता हूं, उसकी वजह से ज्यादा पानी पीने की जरुरत नहीं पड़ती है। लोग पौधों में काफी पानी डाल देते हैं, यह सोचकर कि वह जल्दी बढ़ जाएंगे। लेकिन फलों वाले पेड़ में तीन दिन में पानी डाला जा सकता है, क्योंकि उसकी जड़ें मिट्टी पकड़ चुकी होती है। हमने अपने फार्म पर कुआं बनाया है, जो काफी गहरा है, उसमें बारिश का पानी तीन-चार महीने तक रह जाता है। पेड़ों के लिए उसी पानी का इस्तेमाल करते हैं। कुआं बनाने की वजह से ग्राउंड वाटर का लेवल बढ़ गया है। पेड़ों को जब वह पानी देते हैं, तो वह दोबारा जमीन में चला जाता है। सात-आठ साल की उम्र में मैं एक गांव में रहता था, मेरी आजी (दादी) मुझे खेतों में लेकर जाती थी। उन्हें देखकर काफी कुछ सीखा है।
कुएं में पानी को जमा करने की योजना है : पंकज त्रिपाठी
जब बिहार में अपने गांव में थे, तो पानी की कीमत बिल्कुल पता नहीं थी। गांव के पीछे नदी बहती थी। हिमालय के तराई में होने की वजह से वहां बीस फिट पर ही पानी मिल जाता है। पानी की किल्लत नहीं थी। जब पटना और मुंबई आए तो पता चला की पानी सुबह-शाम आधे घंटे के लिए ही आता है। महानगरों में आने पर पता चला कि पानी की कीमत क्या है। हम अक्सर अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं। लेकिन हमें उतनी ही चिंता उनके पानी और ऑक्सीजन के लिए होनी चाहिए। पानी की आवश्यकता हमारे बाद आने वाली पीढ़ी को भी पड़ेगी। हमें उनके लिए ऐसी व्यवस्था बनाकर रखनी होगीl