लागे ना मोरा जिया..
पिछली बातचीत में हमने बात की थी गुरुदत्त की फिल्म 'भरोसा' और उनकी और उनकी पत्नी गीता दत्त की दुखद मौत के बारे में। अब आगे की बात.., तो इस कमाल के फिल्मकार और उससे भी कमाल के इंसान की फिल्म 'चौदहवीं का चांद' ने मेरी जिंदगी में रॉकेट का काम किया था। मैं अच
नई दिल्ली। पिछली बातचीत में हमने बात की थी गुरुदत्त की फिल्म 'भरोसा' और उनकी और उनकी पत्नी गीता दत्त की दुखद मौत के बारे में। अब आगे की बात.., तो इस कमाल के फिल्मकार और उससे भी कमाल के इंसान की फिल्म 'चौदहवीं का चांद' ने मेरी जिंदगी में रॉकेट का काम किया था। मैं अचानक एकदम से ऊंचाई पर आ गया। संगीत की दुनिया के ही नहीं, पूरी फिल्म इंडस्ट्री में मेरी इज्जत बढ़ गई।
यही वजह थी कि फिल्म 'चौदहवीं का चांद' की सफलता के बाद मेरे पास फिल्मों का ढेर लग गए। मेरी खुशकिस्मती यह थी कि मेरी हर साल सात-आठ फिल्में रिलीज होती थीं, जिनमें से पांच-छह सिल्वर जुबली मनाती थीं। सबसे बड़ी बात यह थी कि इन फिल्मों के सभी गाने हिट होते थे, लोग उन्हें खूब गाते और गुनगुनाते थे।
यही वह समय था यानी 1960 का, जब मेरी एक फिल्म 'घर की लाज' आई। इसके निर्देशक थे बी एम व्यास और इस फिल्म में काम करने वाले कलाकार थे सोहराब मोदी, निरुपा राय, कुमकुम और जॉनी वाकर। फिल्म के सभी गीत लिखे थे राजेंद्र कृष्ण ने। इस फिल्म में सात गीत थे। 'लाल बत्ती का निशां..' और 'तेरा लटका लगा है..' में आवाज थी रफी के साथ आशा भोसले की। 'लैला की उंगलियां बेचूं मजनूं की..', 'ले लो चूडि़यां..' और 'उजड़ गया अब पंछी तेरा बसेरा..' में आवाज थी रफी की और 'आता है तो आने दो..' और 'गम देने वाले देने को..' में आवाज थी आशा भोसले की। इन गीतों में से कुछ को लोगों ने पसंद किया, लेकिन यह फिल्म तब लोगों को खूब पसंद आई।
इसी दौरान मद्रास के निर्माताओं की भी बहुत-सी फिल्में मुझे मिलने लगीं। फिर तो आलम यह हो गया कि मेरा एक पैर मद्रास में रहता था और दूसरा बंबई में। मद्रास की ही एक बड़ी फिल्म निर्माता कंपनी थी जेमिनी। जेमिनी वालों ने मुझे पहली फिल्म दी थी 'घूंघट', जिसके निर्देशन थे रामानंद सागर। फिल्म के कलाकार थे बीना राय, आशा पारेख, प्रदीप कुमार, भारत भूषण, लीली चिटनीस, आगा, रहमान, मीनू मुमताज, कन्हैयालाल, राजेंद्रनाथ और हेलन। इस फिल्म ने अच्छी कामयाबी पाई और इसके सभी गीत भी सुपर हिट हुए। गीत लिखे थे शकील बदायूंनी ने। फिल्म के गीत 'मेरी पत राखो गिरधारी..', 'लागे ना मोरा जिया सजना नहीं आए..' और 'मोरी छम छम बाजे पायलिया..' को गाया था लता मंगेशकर ने। 'हाय रे इंसान की मजबूरियां..' में आवाज भी रफी की और रफी के साथ आशा की आवाज थी गीत 'ये जिंदगी का मौसम और ये समां सुहाना..' में। आशा की आवाज में दो सोलो गीत 'प्यारी सखी सजधज के अपने पी के द्वारे..' और 'गोरी घूंघट में मुखड़ा छुपाओ ना..' थे। आशा ने महेंद्र कपूर के साथ दो युगल गीत भी गाये जिनके बोल थे 'क्या क्या नजारे दिखाती हैं अंखियां..' और 'दो नैन मिले दो फूल खिले..'। फिल्म के कुछ गीत, खासकर 'मेरी पत राखो गिरधारी..', 'लागे ना मोरा जिया सजना नहीं आए..', 'मोरी छम छम बाजे पायलिया..', 'हाय रे इंसान की मजबूरियां..' और 'दो नैन मिले दो फूल खिले..' को लोगों ने तब भी खूब पसंद किया और ये आज भी सुने जाते हैं।
रतन
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