संगीत सरहदों को कहां मानता है - राहत फतेह अली खान
राहत फतेह अली खान ने फिल्म ‘पाप’ के गाने ‘जिया धड़क-धड़क जाए...’ से सबकी धड़कनों पर राज करने का जो सफर शुरू किया था, वह अब तक जारी है। वे तकरीबन साढ़े चार साल बाद अपने मुल्क पाकिस्तान से भारत लौटे हैं। सीमा झा से उनकी बातचीत के खास अंश
राहत फतेह अली खान ने फिल्म ‘पाप’ के गाने ‘जिया धड़क-धड़क जाए...’ से सबकी धड़कनों पर राज करने का जो सफर शुरू किया था, वह अब तक जारी है। वे तकरीबन साढ़े चार साल बाद अपने मुल्क पाकिस्तान से भारत लौटे हैं। सीमा झा से उनकी बातचीत के खास अंश...
'तलवार' का ट्रेलर लॉन्च, अब पर्दे पर खुलेगा आरुषि हत्याकांड का केस
भारत वापस आकर कैसा लग रहा है?
बिल्कुल उसी तरह, जैसे कोई अपने घर लौट आए। भारत में मुझे इतना प्यार और सम्मान मिला है कि कभी लगा ही नहीं कि मैं इसे छोड़ सकता हूं। यह मेरे लिए दूसरा घर है।
आप ऐसे समय आए हैं, जब भारत-पाक के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं...
बहुत दुख होता है, जब ऐसे हालात बनते हैं। हालांकि दोनो मुल्कों के नागरिकों को दिलों में जहर पैदा करने वाले हालात पसंद नहीं आते। मैं तो यही मानता हूं कि चाहे जिस भी देश का इंसान हो यदि वह दोषी है, तो उसे सजा जरूर होनी चाहिए। फिर चाहे वह भारत का हो या पाकिस्तान का, कोई फर्क नहीं पड़ता। संगीत सरहदों को कहां मानता है! संगीत तो दिलों की दूरियों को कम करता है।
सूफी संगीत का असर है या मरहूम नुसरत साहब की शार्गिदी का...आपकी आवाज रूह में उतरती है?
दोनों का। मैं जिस खानदान से आता हूं, वह पारंपरिक रूप से कव्वाली संस्कृति से जुड़ा है। घर में हर वक्त यही माहौल रहता है। नुसरत साहब ने मुझे गोद लिया तो मैंने अपनी समृद्घ संस्कृति को करीब से समझा। उनके साथ बैठकर, उनको गाते देखकर बड़ा होना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी नेमत है। आवाज में उन्हें उतार तो नहीं सकता, पर कोशिश जरूर करता हूं और यह कोशिश बस मेहनत व रियाज से ही आती है। शब्दों को रूह में उतारने तक यह सिलसिला चलता रहता है। जब यह थमता है तो अच्छा संगीत निकलता है और लोग भी पसंद करते हैं।
नुसरत साहब का सिखाने का कौन सा अंदाज आपको सबसे अधिक पसंद आता था?
वही जो एक अच्छे गुरु का होता है। वे मुश्किलों को आसान कर देते थे। कठिन लगने वाले सुर-ताल, राग को ज्यादा आसान शब्दों में बताते थे। इसलिए हमें सीखने में आसानी होती थी। वे खुद भी बहुत अच्छे इंसान थे। एक अच्छा इंसान ही अच्छे सुरों की परख रखता है, उसे सारी दुनिया तक पहुंचा सकता है।
आपने बहुत छोटी उम्र में गाना शुरू कर दिया था, कैसा था वो दौर?
1980 का वह दौर था। चित्रा का म्यूजिक था। पाकिस्तान में भी एक से बढ़कर एक गायक थे। शानदार दौर था। नुसरत साहब छाए हुए थे। इसी दौर में सात साल की उम्र में मेरी पहली स्टेज परफॉर्मेंस हुई। उस दौरान नुसरत साहब मेरे साथ स्टेज पर मौजूद थे। उनसे सीखना शुरू ही किया था। दो साल और मेहनत के बाद मैंने अपने दादा की डेथ एनिवर्सिरी पर परफॉर्म किया जो कि एक बड़ा कॉन्सर्ट था। हजारों की भीड़ के बीच मुझे गाते देखकर नुसरत साहब बहुत खुश थे और हैरान भी। दरअसल, हजारों की भीड़ में संगीत के साधक भी मौजूद थे। उनके बीच आत्मविश्वास से गाते देखकर हर किसी को मुझ पर फख्र हो रहा था। सच कहूं तो वहीं से मेरा आत्मविश्वास बढ़ता चला गया। मैं पहले से कहीं ज्यादा संगीत सेवा में जुट गया। नई-नई चीजों को सीखने की ललक बढ़ती गई और मेरी मेहनत भी।
क्या सूफी संगीत के साथ बॉलीवुड न्याय कर रहा है?
मुझे लगता है जैसी डिमांड है, उसके मुताबिक ही सूफी संगीत सप्लाई भी हो रहा है। यदि लोग सूफी को आसान रूप में पसंद कर रहे हैं तो उन्हें उसी रूप में पेश करना बुरा नहीं। बस अश्लीलता न आए, इसकी रूहानियत बनी रहे।
कव्वाली की परंपरा फिल्मों से गायब होती जा रही है?
नहीं। यह अलग बात है कि अब कव्वाली उस रूप में नजर नहीं आती, जैसा हम देखते-सुनते आ रहे थे। पर कव्वाली का ही दूसरा रूप अरेबिक संगीत है, जिसे खूब दिखाया जा रहा है। यह भी ईरान से ही आया था। अमीर खुसरो साहब ही लेकर आए थे।
आपने हॉलीवुड में भी काम किया है। कितना अलग है बॉलीवुड और हॉलीवुड के काम करने का तरीका। खास तौर पर गाना बनाते समय किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
हॉलीवुड फिल्में ज्यादातर इश्यू बेस्ड होती हैं, इसलिए शब्दों का जोर नहीं, बस राग और सरगम पर संगीत बुना जाता है। बॉलीवुड में सिचुएशनल गाने अधिक बनते हैं। लव सॉन्ग, सैड सॉन्ग आदि। ये एक मुख्य अंतर ही दोनो जगह के संगीत को एक-दूसरे से अलग करता है।
आज यादगार गाने नहीं बनते। आते हैं और चले जाते हैं। ऐसा क्यों?
समय बदलने के बाद तौर-तरीके भी बदल जाते हैं। अब गाने बनाने या संगीत देने में ज्यादा समय नहीं देते। एक सेट पैटर्न में बनता है, एक तय समय में ही पूरी प्रक्रिया पूरी होती है। जाहिर है ऐसे गाने कुछ समय के लिए असर छोड़ते हैं। इसके विपरीत एक दौर था जब एक-एक गाने पर बहुत मेहनत की जाती थी। वह मेहनत सुनने वाले को गाना सुनकर महसूस भी होती थी।
आपके अपने गानों में से कौन सा सबसे अधिक गुनगुनाते हैं आप?
अपने सारे गीत पसंद हैं मुझे। पर ‘धागे तोड़ लाऊं चांदनी से नूर के, घूंघट ही बना लूं रोशनी से नूर के...’ गुलजार साहब की लिखी हुई इस कंपोजिशन को मैं गुनगुनाता रहता हूं। ये पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।
शोहरत के एक नए मुकाम पर हैं आप। परिवार के लिए कितना वक्त निकलता है?
परिवार तो आदी हो गया है मेरी व्यस्तता को लेकर। परिवार के सपोर्ट के बिना तो यह सब आसान नहीं होता। घर में संगीत का माहौल है तो सब जानते हैं कि संगीत से प्यार क्या होता है। मेरा पांच साल का बेटा भी हारमोनियम बजाता है। मैं हैरान हो जाता हूं कभी-कभी, क्योंकि उसने यह खुद से सीखा है। वह जस्टिन बीबर को भी सुनता है, पर अभी से नुसरत साहब का दीवाना है। वीडियो डाउनलोड करता रहता है।
संगीत के अलावा किस चीज से प्यार है?
क्रिकेट खेलता-देखता हूं। किताबों से भी प्यार है।
किस सिंगर को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं?
सोनू निगम जी बहुत अच्छे लगते हैं। एक दौर रहा है उनका। आवाज में कशिश है। युवा गायकों में अरिजीत सिंह को भी सुनना अच्छा लगता है।
राहत फतेह अली खान असल में कैसे हैं?
स्प्रिचुअल हूं मैं। संगीत की वजह से ही नहीं, व्यक्तिगत रूप से भी। जहां भी रहता हूं ऊपरवाले से कनेक्ट रहता हूं और सुकून मिलता है। आश्वस्त रहता हूं।