Interview: 'लक्ष्मी में मेरे काम का श्रेय अक्षय कुमार को जाता है', अपने करियर के सबसे चर्चित किरदार पर बोले शरद केल्कर
शरद मज़ाक में कहते हैं कि यह स्टार गोल्ड की सूर्यवंशम बन सकती है। इस फ़िल्म में अपने किरदार करियर और साल 2021 में आने वाली फ़िल्मों पर शरद ने जागरण डॉट कॉम के साथ विस्तार से बातचीत की। पेश हैं उस बातचीत के मुख्य अंश।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। अक्षय कुमार की फ़िल्म लक्ष्मी में किन्नर का किरदार निभाने के लिए अभिनेता शरद केल्कर को ख़ूब सराहा गया था। शरद इन दिनों फ़िल्मों और वेब सीरीज़ में समान रूप से सक्रिय हैं और बेहतरीन काम कर रहे हैं। 2020 में डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ होने के बाद लक्ष्मी अब 21 मार्च को स्टार गोल्ड पर प्रसारित की जाएगी, जिसको लेकर शरद काफ़ी उत्साहित हैं। शरद मज़ाक में कहते हैं कि यह स्टार गोल्ड की सूर्यवंशम बन सकती है। इस फ़िल्म में अपने किरदार, करियर और साल 2021 में आने वाली फ़िल्मों पर शरद ने जागरण डॉट कॉम के साथ विस्तार से बातचीत की। पेश हैं उस बातचीत के मुख्य अंश।
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तो लक्ष्मी ख़ूब सफल रही। अब छोटे पर्दे से क्या उम्मीदें हैं?
छोटे पर्दे की रेंज बहुत बड़ी है। उम्मीद है कि टेलीविज़न पर भी सबसे अधिक देखी जाने वाली फ़िल्म बनेगी। बार-बार आएगी टीवी पर। (हंसते हुए) मुझे तो अगली सूर्यवंशम लग रही है। मैं स्टोर गोल्ड पर साल भर छाया रहूंगा। तान्हा जी हो, चाहे इरादा हो, चाहे हीरो हो, चाहे लक्ष्मी हो।
लक्ष्मी में आपके किरदार को ख़ूब सराहा गया। यह किरदार आपको कैसे मिला?
कलाकार मेहनत करता है और उसे प्रशंसा मिलती है तो ख़ुशी होती है। यह एक अलग किरदार था, जो फ़िल्मों में शायद बहुत कम लोगों ने किया है। इसका क्रेडिट मैं अक्षय सर (अक्षय कुमार) को दूंगा। हमने हाउसफुल में साथ काम किया था। उन्हें मेरा काम पसंद आया और उन्होंने ही मेरा नाम रिकमेंड किया था। उन्होंने ख़ास तौर पर लेखक और निर्देशक को बोला कि शरद को ट्राई करो, बहुत अच्छा करेगा। उन्होंने जो पहले पहले शूट किया था, उससे इंस्पिरेशन मिली और मैंने एडिट पर देखा था तो क्रेडिट उन्हें अधिक जाता है।
लक्ष्मी के किरदार के लिए आपका रेफरेंस प्वाइंट क्या था और इसकी तैयारियों के लिए क्या वर्कशॉप भी कीं?
वर्कशॉप तो नहीं कीं, लेकिन मैंने कुछ लोगों से बातें ज़रूर की थीं। हम समाज में बचपन से किन्नरों को देखते आ रहे हैं। हमें उनके बारे में ख़ास तरह की फीडिंग दी जाती है। बच्चों को डराया जाता है। शूटिंग के दौरान मैं जितने लोगों से मिला तो उनके व्यक्तित्व के बारे में काफी कुछ पता चलता है। हम कहते हैं कि वो बहुत लाउड होते हैं। साधारण भाषा में कहें तो वो तमाशा करते हैं, लेकिन क्यों करते हैं? यह कोई समझना नहीं चाहता। हमने उन्हें अपनी सोसाइटी से बाहर रखा हुआ है। हमने उन्हें बिल्कुल अहमियत नहीं दी। कोई भी इंसान हो, अगर उसे अहमियत नहीं दी जाएगी, तो वो अपनी उपस्थिति का एहसास करवाने के लिए चिल्लाएगा। वैसे ही उनका अपना तरीक़ा है, समाज को दिखाने का कि भाई हम भी हैं। हमें सोसाइटी या इंसानों से बाहर मत कीजिए। कहीं ना कहीं उन्होंने ख़ुद को पेश करने का अपना तरीक़ा बनाया है। उसके लिए पूरी तरह से हम ही लोग ज़िम्मेदार हैं। सच कहूं तो उनके अंदर एक पुरुष और नारी, दोनों के गुण होते हैं। हमसे ज़्यादा विकसित हैं और समझदार हैं। यह सब जानने का मुझे मौक़ा मिला। उसी को लेकर मैंने एक प्रयत्न किया।
ऐसे किरदार को निभाने के लिए अतिरिक्त सावधानी की ज़रूरत होती है। भटकने का कोई डर था?
डर तो नहीं था। मैंने एक पैटर्न पहले ही सोचकर रखा था। इतने लोगों से मिल चुका था। हमारे जो डायरेक्टर (राघव लॉरेंस) हैं, उन्होंने साउथ की फ़िल्म में ख़ुद यह रोल किया था। बहुत बड़ा गाइडेंस था मेरे लिए। किरदार की सीमाएं पहले से डिज़ाइन की हुई थीं। उसको एक दायरे में करने का पहले ही सोच लिया था। उससे बाहर नहीं जाना है।
आपने दक्षिण भारतीय सिनेमा से भी जुड़े हैं। क्या आपको लगता है कि हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के मुक़ाबले दक्षिण भारतीय इंडस्ट्री अधिक प्रयोगधर्मी है?
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, दक्षिण भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री अधिक प्रयोग करती है। हालांकि, वो बदलाव अब यहां भी आ रहा है। जैसे हमारे यहां हॉरर फ़िल्में बनती नहीं थीं। बनती थीं, तो सी-ग्रेड वाली बनती थीं। राज एंड डीके ने स्त्री बनायी तो वो भी एक प्रयोगधर्मी फ़िल्म थी। गो गोवा गोन थी। लोगों ने वो फ़िल्में पसंद कीं तो अब देखिए रूही आयी है। भेड़िया आ रही है। हॉरर-कॉमेडी एक नया जॉनर बन गया है। साउथ में कांचना इसी जॉनर की है। 8-9 साल पहले बनायी थी। हॉरर फ़िल्मों का एक ट्रेंड आया था और अब बॉलीवुड में हो रहा है। वो एक्सपेरिमेंट करते हैं। हम भी कर रहे हैं और करना चाहिए।
साल 2021 के लिए क्या तैयारियां हैं। कौन-कौन से प्रोजेक्ट्स कर रहे हैं?
लोगों को इस बार भी झटका दूंगा। अलग-अलग किस्म के किरदार हैं। 4 प्रोजेक्ट्स हैं, जो पूरे हो चुके हैं। द फैमिली मैन 2 वेब सीरीज़ है, जो टल गयी थी, मई में आएगी। भुज- द प्राइड ऑफ़ इंडिया है, जो अगस्त में आनी चाहिए। रिलाइंस एंटरटेनमेंट के साथ एक फ़िल्म पूरी की है, जो सितम्बर तक आ सकती है। एक मराठी फ़िल्म शूट कर रहा हूं, जो इस साल के अंत तक आएगी। एक तमिल साइंस फिक्शन फ़िल्म आयलान है, जिसमें रकुल प्रीत भी हैं। सभी में अलग-अलग किरदार हैं। एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। लोग मुझसे अलग-अलग किरदारों की उम्मीद करते हैं तो वो कोशिश इस साल भी जारी है।
आपने फ़िल्म, टीवी और वेब प्लेटफॉर्म्स के लिए काफ़ी काम किया है। इन तीनों प्लेटफॉर्म्स के लिए काम करने में क्या फर्क है?
मुझे एक्टिंग करना सबसे अच्छा लगता है। प्लेटफॉर्म से फर्क नहीं पड़ता। लोगों को समझ में आना चाहिए कि टेक्नीकल बदलाव को छोड़कर सब एक जैसा ही है। किसी भी प्लेटफॉर्म पर रिलेक्सेशन नहीं है। सबको जल्दी काम चाहिए होता है। सबको पैसे बचाने हैं। मार्केट टाइट है। कम समय में अधिक प्रोडक्टिविटी का टाइम है। टेलीविज़न करने से जल्दी काम करना आ जाता है। मैं डायरेक्टर का एक्टर हूं। वो जो चाहते हैं, मैं वो करता हूं। वो जो नैरेशन देते हैं, उसे ध्यान से सुनता हूं। उस दिशा में ही इम्प्रोवाइज़ेशन भी करूंगा। उसी दिशा में अभिनय भी करूंगा। उनके विपरीत कुछ नहीं करता हूं। नहीं तो बहुत टाइम वेस्ट होता है। शायद इसीलिए लोग मेरे साथ काम करना पसंद करते हैं।
ओटीटी कंटेंट के बढ़ते चलन के बीच छोटे पर्दे की प्रासंगिकता को लेकर क्या सोचते हैं?
हमारी देश की आबादी देखिए। 130 करोड़ लोग हैं। मुझे लगता है कि 20 फीसदी लोगों के पास अभी स्मार्ट फोन होंगे। लगभग 10 फीसदी लोगों के पास ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की एक्सेस होगी। बाक़ी 70 फीसदी लोगों के पास आज भी टेलीविज़न है। बहुत बड़ी ऑडिएंस है। वो कहीं जाने वाली नहीं। जो शोज़ टीवी पर आते हैं, उनकी रेटिंग कितनी हाई जाती है। लोग बड़े-बड़े शोज़ बना रहे हैं। इतना बड़ा बिजऩेस है, कोई जाने भी नहीं देगा। एडवरटाइंज़िंग के लिए कॉमन आदमी तक पहुंचने के लिए उससे अच्छा मीडियम टीवी है।