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35 साल पहले 'यारों' ने महज़ 7 लाख में बना दी थी 'जाने भी दो यारों', पढ़ें दिलचस्प क़िस्से

जाने भी दो यारों की कहानी सिस्टम के ऐसे ही एक भ्रष्टाचार को व्यंगात्मक लहज़े में दिखाती है। फ़िल्म की कहानी के केंद्र में एक बीएमसी अफ़सर डिमैलो का मर्डर है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 12:26 PM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 06:16 PM (IST)
35 साल पहले 'यारों' ने महज़ 7 लाख में बना दी थी 'जाने भी दो यारों', पढ़ें दिलचस्प क़िस्से
35 साल पहले 'यारों' ने महज़ 7 लाख में बना दी थी 'जाने भी दो यारों', पढ़ें दिलचस्प क़िस्से

मुंबई। कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं, जिन पर चढ़ी वक़्त की धूल की मोटी परत भी उनके आकर्षण को कम नहीं कर पाती और वो हर दौर में प्रासंगिक रहती हैं। कुंदन शाह निर्देशित जाने भी दो यारों इसी श्रेणी की फ़िल्म है, जो आज भी तरोताज़ा और सामयिक लगती है। फ़िल्म की कहानी, किरदार, घटनाएं और इसका संदेश आज के दौर में भी उतनी ही अहमियत रखता है, जितना 35 साल पहले जब यह सिनेमाघरों में आयी थी।

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फ़िल्म 1983 में आज ही के दिन (12 अगस्त) को रिलीज़ हुई थी। फ़िल्म में वो सभी कलाकार मुख्य भूमिकाओं में शामिल थे, जिन्हें आज वेटरन एक्टर कहा जाता है। नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, पंकज कपूर, रवि वासवानी, सतीश शाह, सतीश कौशिक, विधु विनोद चोपड़ा, अनुपम खेर, नीना गुप्ता जैसे दिग्गज किसी ना किसी रूप में इससे जुड़े थे। विडम्बना देखिए आज क्लासिक फ़िल्मों की श्रेणी में आने वाली जाने भी दो यारों रिलीज़ के वक़्त फ़्लॉप रही थी। इस फ़िल्म को दर्शकों ने नकार दिया था। फ़िल्म को 2012 में कलर करेक्शन के बाद फिर रिलीज़ किया गया था।

बीएमसी भ्रष्टाचार पर व्यंग्य

भ्रष्टाचार एक ऐसी सामाजिक बुराई है, जिसका सामना आम आदमी को हर दौर में करना पड़ा है। सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन सिस्टम में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसके ख़त्म होने का इंतज़ार करते-करते आम आदमी इसका आदी हो जाता है। जाने भी दो यारों की कहानी सिस्टम के ऐसे ही एक भ्रष्टाचार को व्यंगात्मक लहज़े में दिखाती है। फ़िल्म की कहानी के केंद्र में एक बीएमसी अफ़सर डिमैलो का मर्डर है, जो संयोगवश फ़िल्म के नायक नसीरुद्दीन और रवि वासवानी के कैमरे में क़ैद हो जाता है और फिर पूरी फ़िल्म डिमैलो की लाश को ठिकाने लगाने की कवायद और इसके ज़रिए कई सामाजिक चेहरों के बेनक़ाब होने की कहानी है। डिमैलो के किरदार को सतीश शाह ने निभाया था। फ़िल्म के कई दृश्य ऐसे हैं, जो आपको गुदगुदाते हैं, मगर उनमें एक गंभीर संदेश छिपा है। मिसाल के तौर पर, वो दृश्य जब डिमैलो को श्रद्धांजलि दी जा रही होती है। इस दृश्य में डिमैलो के बारे में जो कहा जाता है, वो दरअसल कुंदन शाह का निजी अनुभव था।

इस बारे में निर्देशक कुंदन शाह ने एक इंटरव्यू ने बताया था कि वो जिस सोसायटी में रहते थे, उसमें सीवेज लाइन का गंदा पानी पीने के पानी की लाइन से मिल गया था। जब इस समस्या को लेकर वो बीएमसी अफ़सर के पास गये थे तो उसने कहा था कि इसमें क्या हो गया शाह साहब। आधा बॉम्बे गटर का पानी पीता है। सतीश शाह का किरदार उसी अफ़सर पर से प्रेरित था। इसीलिए उसके मरने पर ये लाइंस लिखी थीं- ''डिमैलो साहब गटर के लिए जिये थे, गटर के लिए मर गये। इसीलिए आज आप अपना-अपना पानी भरकर रखिए, क्योंकि उनके सम्मान में गटर कल बंद रखा जाएगी।''

सतीश कौशिक ऐसे बने सह-लेखक

जाने भी दो यारों की कामयाबी में इसके स्क्रीन प्ले और संवादों की भूमिका बेहद अहम थी। फ़िल्म को रंजीत कपूर ने लिखा था, जो वेटरन एक्टर अन्नू कपूर के बड़े भाई थे और उनका साथ दिया था सतीश कौशिक ने। सतीश का इस फ़िल्म के लेखन से जुड़ने का क़िस्सा भी बड़ा मज़ेदार है। सतीश उन दिनों संघर्ष के दौर से गुज़र रहे थे। फ़िल्म लेखकों और निर्देशकों से मिलते रहते थे। रंजीत कपूर ने सतीश को इस फ़िल्म में अपने साथ जोड़ने की ख़्वाहिश तब कुंदन शाह के समक्ष ज़ाहिर की तो कुंदन थोड़ा असहज हो गये। एक तो फ़िल्म का बजट इतना नहीं था कि किसी और व्यक्ति को इससे जोड़ा जाए दूसरा सतीश उस वक़्त एक्टिंग में क़िस्मत आज़मा रहे थे। पर रंजीत ने कुंदन के असमंजस को कम कर दिया। उन्होंने कहा कि सतीश को पैसे देने की ज़िम्मेदारी कुंदन की नहीं है। वो अपने मेहनताने में से उनकी फीस दे देंगे। सतीश की कॉमिक टाइमिंग ज़बर्दस्त है, लिहाज़ा लेखन में वो काफ़ी मदद कर सकते हैं। आख़िरकार सतीश कौशिक का नाम फ़िल्म के सह लेखक के तौर पर जुड़ गया।

अनुपम खेर का रोल कटा

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि जाने भी दो यारों में उस वक़्त के बेहतरीन कलाकारों ने काम किया था। अनुपम खेर भी इसमें शामिल थे। फ़िल्म में उन्होंने एक पागल डॉन का किरदार निभाया था, जो नाचते-नाचते लोगों की हत्या करता है। मगर, एडिट के दौरान अनुपम के हिस्से को पूरी तरह निकाल दिया गया था।

सात घंटे की फ़िल्म थी जाने भी दो यारों

जाने भी दो यारों आरम्भ में सात घंटे की फ़िल्म थी। जब कुंदन इस फ़िल्म को एडिट के लिए रेणु सलूजा के पास पहुंचे तो वो भी बौखला गयी थीं। रेणु उस वक़्त की मानी हुई फ़िल्म एडिटर थीं। जाने भी दो यारों की लम्बाई देखकर उन्होंने कुंदन को भगा दिया था और कहा था कि जब तक वो ना बुलाएं, आना मत। रेणु ने सात घंटे को फ़िल्म को पहले 4 घंटे का किया, फिर 132 मिनट यानि 2 घंटा 12 मिनट का।

10 दिन में लिखा महाभारत वाला दृश्य

 

जाने भी दो यारों का एक कल्ट सीन है, जिसमें सभी कलाकार हालात के चलते महाभारत के एक दृश्य में शामिल हो जाते हैं। इस दृश्य को महाभारत के साथ जिस तरह से पिरोया गया था वो एक ज़बर्दस्त स्क्रीन प्ले की बानगी है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस सीन को लिखने में 10 दिन का वक़्त लगा था। इस सीन में नसीरुद्दीन, सतीश शाह, ओम पुरी, सतीश कौशिक और वेटरन फ़िल्ममेकर विधु विनोद चोपड़ा भी दिखायी दिये थे।

यारों की फ़िल्म जाने भी दो यारों

जाने भी यारों अपने शीर्षक के अनुसार यारों की ही फ़िल्म है, जिसे इंडस्ट्री के यारों ने परवान चढ़ाया। फ़िल्म के निर्माण के लिए नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने 7 लाख का बजट आवंटित किया था। सीमित बजट के चलते इस फ़िल्म में कलाकारों ने अभिनय करने के साथ आर्थिक और श्रम योगदान भी दिया था। फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह और रवि वासवानी के किरदार में थे। शूटिंग के लिये कैमरे की ज़रूरत थी। नसीर अपना कैमरा शूटिंग के लिए लाये। एक दिन आउटडोर शूट में वो कैमरा कहीं छूट गया और फिर कभी नहीं मिला। फ़िल्म का प्रीमियर भी इसके कलाकारों ने आपस में सहयोग करके किया क्योंकि बजट इसकी अनुमति नहीं देता था, मगर इंडस्ट्री को अपना काम दिखाने के लिए प्रीमियर ज़रूरी थी।


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