Move to Jagran APP

फिल्मों से अमर होना चाहता हूं : हंसल मेहता

मुंबई में छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल का दूसरा दिन समर्थ फिल्मकारों, उम्दा कलाकारों व नामचीन कास्टिंग डायरेक्टर के नाम रहा। हंसल मेहता, नीरज घेवन, हैरी बावेजा, संजय पूरण सिंह चौहान ने अपने अनुभव को सिने प्रेमियों से बांटा। मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने चोटिल होने के बावजूद मास्टर क्लास

By Monika SharmaEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2015 08:13 AM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2015 10:13 AM (IST)
फिल्मों से अमर होना चाहता हूं : हंसल मेहता

मुंबई, अमित कर्ण। मुंबई में छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल का दूसरा दिन समर्थ फिल्मकारों, उम्दा कलाकारों व नामचीन कास्टिंग डायरेक्टर के नाम रहा। हंसल मेहता, नीरज घेवन, हैरी बावेजा, संजय पूरण सिंह चौहान ने अपने अनुभव को सिने प्रेमियों से बांटा। मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने चोटिल होने के बावजूद मास्टर क्लास का सेशन जॉइन किया। सभी ने समां बांध दिया। खासकर नीरज घेवन और हंसल मेहता ने।

loksabha election banner

कमल हासन की बेटी इसलिए नहीं कर पाईं 'हेरा-फेरी'

हंसल मेहता ने जागरण फिल्म फेस्टिवल की सराहना की। उन्होंने कहा, 'इन्हीं फिल्म फेस्टिवल का नतीजा था, जिसकी वजह से मैं फिल्मकार बना। 1994 में मुंबई में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव आयोजित हुआ था, जिसमें मैंने टैरेंटिनो की फिल्म 'पल्प फिक्शन' देखी। कई और फिल्मकारों की फिल्में देखी, एहसास हुआ कि फिल्मों से मेरी क्रिएटिविटी साकार हो सकती है। आज जब 'मसान', 'शाहिद' और अन्य वैसी फिल्मों को सराहना मिलती है तो इसमें फेस्टिवल की अहम भूमिका है। मेरी फिल्म 'शाहिद' टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में जाने से पहले तक महज 36 लाख में बन चुकी थी, पर उसका कंटेंट उम्दा था और विभिन्न फेस्टिवल सर्किट में सराही गई। अंतत: फिल्म क्लास से मास की बन गई। मेरी खुद की 'दिल पे मत ले यार', 'छल' व 'ये क्या हो रहा है' के समय वैसा माहौल नहीं था। अब लीक से हटकर बनी फिल्मों के लिए स्वर्णकाल है। ऐसा फेस्टिवल के चलते हो सका है। इतना ही नहीं इनसे निकले सिनेमा ने युवाओं की दिलचस्पी का दायरा बढ़ाया है। अब हर कोई सिर्फ शाहरुख, आमिर व सलमान खान नहीं बनना चाहता। वे राजकुमार राव, इरफान व नवाज भी बनना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी बात है।'

मेरा मानना है कि फिल्मकार बनने के पीछे एक खुदगर्जी भरा मकसद होना चाहिए। मैंने तय किया है कि फिल्मों के जरिए मुझे अमर होना है। एक स्मार्ट फिल्मकार बनने के लिए अहम है कि कम से कम बजट में फिल्म बनाकर दे दो। इससे फिल्म फ्लॉप होने के आसार कम हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर 'शाहिद' जैसे विषय का बजट जब एक इपी ने बनाया तो उसने कहा कि फिल्म साढ़े चार करोड़ में बनेगी। मैंने कहा कि मैं एक करोड़ से कम में बनाकर दे दूंगा। आखिर में वही हुआ।

कला बड़ा पाक माध्यम है। इसके जरिए सिर्फ मनी मेकिंग मशीन बनने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मुझे बड़ी कोफ्त होती है, जब इसका इस्तेमाल अपना एजेंडा पूरा करने के लिए हो। मिसाल के तौर पर आईसीएचआर और सीएसएफआई जैसी संस्थाओं में एजेंडा प्लांट कर दिया गया है। वह बहुत खतरनाक है, पर चिंता की कोई बात नहीं, राजनीतिक व सामाजिक क्राइसिस के माहौल में ही उम्दा आर्ट पनपता है। मिसाल के तौर पर ईरान का सिनेमा देख लीजिए।

सेक्सी बिपाशा इस शो के टीवी पर लेकर आ रही हैं भुतहा कहानियां


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.