RD Burman Birthday Special : पंचम दा, पानी पर लिखा खामोश सा अफसाना
RD Burman Birthday Special पंचम दा का नाम सुनते ही जेहन में उभरता है ऐसा सर्जक जो शक्ल-सूरत से बेहद सहज साधारण प्रतीत होता है पर जिसका राजघराने से ताल्लुक है।
नई दिल्ली, जेएनएनl RD Burman Birthday Special: पारंपरिक फिल्म संगीत के संसार में विचलन का काम किया पंचम दा के सुरों ने। तीन दशक से भी लंबे समय तक राहुल देव बर्मन ने हिंदुस्तानी और पाश्चात्य वाद्यों की ध्वनियों से सबका मन मोहा। उनके जन्मदिन (27 जून) पर उनसे जुड़े तमाम अफसाने सुनील मिश्र की कलम से...
पंचम दा का नाम सुनते ही जेहन में उभरता है ऐसा सर्जक जो शक्ल-सूरत से बेहद सहज साधारण प्रतीत होता है, पर जिसका राजघराने से ताल्लुक है। ऐसा पुत्र जो बचपन से ही सुपुत्र है और अपने गुणी पिता के हर इशारे पर संगत देने को तत्पर। राहुल देव बर्मन उर्फ पंचम दा के पिता सचिन देव बर्मन भारतीय सिनेमा की धड़कन थे। वे जितने अच्छे संगीत संयोजक थे उतने ही गुणी गायक भी। राहुल पिता के सहयोगी के रूप में ही शुरुआत करते हैं और धीरे-धीरे अपना वह स्थान बनाते हैं जो उनके समकालीनों की बनिस्बत उनको कई मायनों में अलग से रेखांकित करता है।
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और बन जाते थे नगमे
पंचम दा का गीतकार गुलशन बावरा से बहुत आत्मीय रिश्ता रहा। गुलशन अपनी और पंचम की दोस्ती के बारे में प्राय: बात करते थे। दोनों का घर इस तरह से था कि दूरी होते हुए भी इशारों में बात हो जाती थी। जरूरत पड़ने पर राहुल गुलशन को घर बुला लेते। फिर बावरा की कलम और विचार होते और पंचम हारमोनियम लेकर बैठ जाते। इस तरह इस जोड़ी र्ने हिंदी सिनेमा को अनेक यादगार गीत दिए। ‘अगर तुम न होते’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘सनम तेरी कसम’, ‘ये वादा रहा’, ‘खेल खेल में’ आदि फिल्मों को इसी संदर्भ में याद किया जा सकता है।
जब महमूद बने भागीरथ
संगीत की दुनिया में राहुल देव बर्मन अपनी सीढ़ी खुद चढ़े। हास्य अभिनेता महमूद की भूमिका यहां ऐसे पारखी के रूप में उल्लेखनीय है जो अपनी अभिनय की काबिलियत साबित करने के अलावा अमिताभ बच्चन से लेकर राहुल देव बर्मन और राजेश रोशन जैसे कलाकारों के लिए भी भागीरथ बने। जिस समय महमूद ‘छोटे नवाब’ बनाने जा रहे थे तब वे चाहते थे कि इसका संगीत सचिन देव बर्मन दें। सचिन देव बर्मन ने अधिक व्यस्तता के चलते यह फिल्म नहीं ली। तब महमूद ने कुछ समय से बर्मन दा के सान्निध्य में रहते हुए पंचम की प्रतिभा को परखकर जोखिम उठाने का फैसला किया। इस तरह राहुल देव बर्मन ‘छोटे नवाब’ के माध्यम से पहली बार स्वतंत्र संगीत निर्देशक बने। महमूद ने ही राहुल देव बर्मन के भीतर से दिलचस्प कलाकार भी खोज निकाला था।
सुरों के सच्चे साधक
राहुल देव बर्मन कल्पनाशील और गुणी निर्देशकों की पसंद वाले संगीतकार थे। उन्होंने भारतीय साजों के साथ पश्चिमी वाद्यों की मेलोडी का ऐसा मेल कराया कि श्रोता उनकी रचनाओं से सिनेमा संगीत में एक अलग आधुनिकता का परिवेश और महक पाकर नए आस्वाद से परिचित हुए। वॉयलिन, गिटार, पियानो, बैग पायपर और भी न जाने कितने वाद्य पंचम की परिकल्पना का मधुर हिस्सा होते। वे बाकायदा सितार और तबला सीख चुके थे, विशेष यह कि माउथ ऑर्गन बजाने में, उससे तरह-तरह की धुन निकालने में उनका जवाब नहीं था। पिता की फिल्म में उनको ये अवसर बहुत मिले। ‘शोले’ में धर्मेंद्र का माउथ ऑर्गन, ‘कस्में वादे’ में रणधीर कपूर, ‘सनम तेरी कसम’ में कमल हासन का माउथ ऑर्गन पंचम का ही कला कौशल था। देव आनंद, नासिर हुसैन, विजय आनंद, रमेश सिप्पी, गुलजार आदि निर्देशकों के साथ काम करते हुए उनका काफी समय गुजरा। विजय आनंद निर्देशित ‘तीसरी मंजिल’ नासिर हुसैन के बैनर की फिल्म थी जिसमें पहली बार पंचम ने सफलता का स्वाद चखा। स्वतंत्र रूप से पहचान बना चुके पंचम पिता के लिए भी लंबे समय तक काम करते रहे। वे गुलजार के भी पसंदीदा संगीतकार थे। उनकी कविता सी रचनाओं को पंचम ने ‘आंधी’, ‘किनारा’, ‘परिचय’, ‘इजाजत’, ‘लिबास’ जैसी फिल्मों में खूबसूरती से पिरोया।
गागर में सागर
पंचम दा की बात हो और उनके गाये गानों की बात न हो तो यह अधूरापन लगेगा। वे ‘शोले’ के गाने, ‘महबूबा ओ महबूबा’ से पहली बार श्रोताओं को चकित करते नजर आए। इससे पहले भी वे ‘पिया तू अब तो आजा’ में ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’ की आवाज दे चुके थे। ‘ओ तुम क्या जानो मोहब्बत क्या है’, ‘दिल लेना खेल है दिलदार का’ गाते हुए उनकी आवाज में बेहद बिंदासपन, तमाम वर्जनाओं का अतिरेक, किसी को अप्रिय लगे तो लगे वाली लाउडनेस को भी दर्शकों ने सुना और पसंद किया। उनके बारे में कहा जाता रहा कि वे गागर में बैठा हुआ सागर रहे। राहुल देव बर्मन जैसे सागर पर पोखर भर शब्दों से लिखा जाना बहुत कठिन है।
(लेखक सिनेमा में सर्वोत्तम लेखन के लिए नेशनल अवॉर्ड से पुरस्कृत हैं)
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