Happy Birthday Sharmila Tagore: धर्मेंद्र की क्लासिक फ़िल्मों का हसीन इत्तेफ़ाक़ हैं शर्मिला टैगोर, जानिए कैसे
Happy Birthday Sharmila Tagore धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर ने पहली बार 1966 की फ़िल्म अनुपमा में साथ किया। इस ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म में शर्मिला ने एक ऐसी बेटी का रोल निभाया।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय सिनेमा के वेटरन कलाकार धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर 8 दिसम्बर को अपना जन्मदिन मनाते हैं। धर्मेंद्र ने 84 साल का पड़ाव छू लिया है तो शर्मिला 75वें पड़ाव पर पहुंच गयी हैं। 75वें जन्मदिन को ख़ास बनाने के लिए शर्मिला परिवार समेत पटौदी पैलेस गयी हैं।धर्मेंद्र और शर्मिला की जन्म तिथि का यह संयोग इनके करियर में भी झलकता है।
इससे बड़ा इत्तेफ़ाक़ क्या होगा कि 8 दिसम्बर को जन्मे दोनों कलाकारों ने साथ में 8 ही फ़िल्में की हैं, जिनमें से ज़्यादातर हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्में मानी जाती हैं। धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर ने पहली बार 1966 की फ़िल्म अनुपमा में साथ किया। इस ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म में शर्मिला ने एक ऐसी बेटी का रोल निभाया, जो पिता के प्यार से महरूम है, जबकि हिंदी सिनेमा के मैचोमैन धर्मेंद्र एक संकोची युवा लेखक और शिक्षक के किरदार में थे। ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित यह फ़िल्म इन दोनों ही कलाकारों के करियर की बेहतरीन फ़िल्मों में शामिल है।
1966 में ही आयी 'देवर' में भी धर्मेंद्र और शर्मिला ने साथ काम किया। देवर बंगाली उपन्यासकार तारा शंकर बंधोपाध्याय के नॉवल 'ना' पर आधारित फ़िल्म थी। इसी नॉवल पर 1962 में एक तमिल फ़िल्म भी बन चुकी थी, जिसे मोहन सहगल ने हिंदी में डायरेक्ट किया था। इस सोशल ड्रामा में धर्मेंद्र और शर्मिला की अदाकारी ने कहानी को एक अलग ही रंग दिया।
धर्मेंद्र और शर्मिला की सबसे यादगार फ़िल्म 1969 में आई 'सत्यकाम' है, जिसमें शर्मिला धर्मेंद्र की पत्नी के रोल में थीं। धर्मेंद्र को सामान्य तौर पर ही-मैन के रूप में देखा जाता है, जो अपनी बाजुओं के दम से बड़े-बड़े कारनामे कर गुज़रता है, मगर 'सत्यकाम' जैसी फ़िल्मों में धर्मेंद्र की इमोशनल साइड देखने को मिलती है। ऋषिकेश मुखर्जी डायरेक्टिड फ़िल्म में धर्मेंद्र ने ईमानदार और हमेशा सच बोलने वाले इंसान सत्यप्रिय का किरदार निभाया था। संजीव कुमार इस फ़िल्म में धर्मेंद्र के दोस्त के रोल में थे।
इन क्रिटिकली एक्लेम्ड फ़िल्मों के अलावा धर्मेंद्र और शर्मिला की जोड़ी ने मसाला फ़िल्मों में भी काम किया, जो उस दौर की लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। मसलन, रोमांटिक ड्रामा 'मेरे हमदम मेरे दोस्त' (1968) और जासूसी फ़िल्म 'यक़ीन' (1969) पूरी तरह मसाला फ़िल्में थीं। क्रिटिक्स ने इन फ़िल्मों को भले ही सपोर्ट ना किया हो, मगर दर्शकों ने ख़ूब प्यार दिया। ऋषिकेश मुखर्जी की 'चुपके-चुपके' (1975) में धर्मेंद्र और शर्मिला की एक अलग ही साइड देखने को मिली। संजीदा और विशुद्ध मसाला अदाकारी के बाद इस फ़िल्म में धर्मेंद्र और शर्मिला ने कॉमेडी का रंग दिखाया।
1975 में ही धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर की 'एक महल हो सपनों का' ना तो क्रिटिकली और ना ही कमर्शियली कामयाब रही। इस लव ट्रायंगल में लीना चंद्रावरकर भी मुख्य स्टार कास्ट का हिस्सा थीं। धर्मेंद्र और शर्मिला आख़िरी बार 1984 में आई 'सनी' में साथ नज़र आए। इस फ़िल्म में धर्मेंद्र के बेटे सनी देओल और अमृता सिंह लीड रोल्स में थे, जो बाद में शर्मिला टैगोर की बहू बनीं।