इन्हें मिला अधूरा प्यार, तन्हा जिंदगी और बेवक्त मौत
जिंदगी के सफर में शोहरत तो मिली पर साथ ही अधूरा प्यार, तन्हा जिंदगी और बेवक्त मौत भी मिली। गुरुदत्त बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक निर्देशक और एक अभिनेता दोनों ही रूपों में गुरुदत्त को सफलता प्राप्त हुई पर अपनी निजी जिंदगी में उन्हें तन्हाई के अलावा और कुछ भी नहीं मिला। उनकी निजी जिंदगी में प्यार की कमी थी या कहें कि प्यार तो था प
जिंदगी के सफर में शोहरत तो मिली पर साथ ही अधूरा प्यार, तन्हा जिंदगी और बेवक्त मौत भी मिली। गुरुदत्त बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक निर्देशक और एक अभिनेता दोनों ही रूपों में गुरुदत्त को सफलता प्राप्त हुई पर अपनी निजी जिंदगी में उन्हें तन्हाई के अलावा और कुछ भी नहीं मिला। उनकी निजी जिंदगी में प्यार की कमी थी या कहें कि प्यार तो था पर उनकी एक गलती के कारण सब कुछ बदल गया।
हिंदी सिनेमा में स्वर्ण युग के शिल्पकार थे गुरुदत्त
दो नावों पर एक साथ सवार होने के कारण गुरुदत्त ने अपना जीवन दुखमयी बना लिया। गुरुदत्त की जिंदगी का लव ट्राएंगल आज भी उनके चाहने वालों के लिए किसी रहस्य की तरह है। गुरुदत्त को पहली ही नजर में गीता दत्त से मोहब्बत हो गई। दोनों के बीच नजदीकियां इस कदर हो चुकी थीं कि वो एक-दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने शादी करने का फैसला लिया।
गीता और गुरुदत्त फिल्म 'बाजी' की शूटिंग के समय एक-दूसरे के करीब आए थे और साल 1953 में दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद गुरुदत्त की फिल्में हिट होने लगी जबकि गीता का कॅरियर ढलान पर आ गया।
गुरुदत्त का नाम धीरे-धीरे हिन्दी सिनेमा की दुनिया में सितारों की तरह चमक रहा था इसी बीच उनकी जिंदगी में वहीदा आईं। वहीदा को सितारा बनाने की जिम्मेदारी गुरुदत्त ने ले ली लेकिन वहीदा को सितारा बनाते-बनाते वो कब खुद गुरु के दिल का सितारा बन गईं ये शायद दोनों को ही पता नहीं चला।
वहीदा और गुरुदत्त ने एक-दूसरे को अपना दिल तो दे दिया पर दुनिया के सामने अपने प्यार का इजहार करने से डरते रहे। सुर्खियों में दोनों के रिश्ते को लेकर खबरें चलती रहती थीं इसी बीच गीता दत्त, गुरुदत्त से खफा हो गईं। इस बीच गुरुदत्त गीता और वहीदा में से किसी एक को चुनना नहीं चाहते थे। उन्होंने दो नावों में एक साथ सवार होने की कोशिश की।
जिस रात के काले अंधेरों के आगोश में गुरुदत्त मौत की नींद सो गए थे उस रात उन्होंने जमकर शराब पी थी, इतनी उन्होंने पहले कभी नहीं पी थी। गीता के साथ उनकी नोकझोंक हो गई थी। गीता ने उनकी बिटिया को उनके साथ कुछ वक्त बिताने के लिए भेजने से इंकार कर दिया था। गुरुदत्त अपनी पत्नी को बार-बार फोन कर रहे थे कि वह उन्हें अपनी बेटी से मिलने दें लेकिन गीता फोन नहीं उठा रही थीं। हर फोन के साथ गुरुदत्त का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। अंत में उन्होंने यह संकेत देते हुए कहा, 'बच्ची को भेज दो या फिर तुम मेरा मरा मुंह देखो'। इसके बाद उन्होंने करीब एक बजे खाना खाया और ऐसे सोए कि दुबारा नहीं उठे। 10 अक्टूबर साल 1964 को गुरुदत्त ने अपने कमरे में ही आत्महत्या की थी।
यह आत्महत्या की उनकी तीसरी कोशिश थी। वहीदा रहमान गुरुदत्त की जिंदगी में होते हुए भी ना के बराबर थीं और उनकी पत्नी गीता के विश्वास को वो कभी वापस नहीं पा सकते थे इसलिए उन्होंने मौत को ही गले लगाना बेहतर समझा। आज गुरुदत्त को दुनिया से अलविदा कहे 49 वर्ष हो गए हैं पर अब भी उनके जैसा बहुमुखी सितारा हिन्दी सिनेमा को नहीं मिला।
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