कभी फ़ौज की परीक्षा छोड़ कर भागे थे गुरमीत, पिक्चर के लिए वो सब कुछ दोबारा
गुरमीत ने एक बात स्पष्ट कही है कि खबरें आ रही हैं कि फिल्म 1962 के युद्ध पर कहानी है लेकिन सच यह है कि यह फिल्म 1967 के वार को लेकर है।
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। गुरमीत चौधरी इन दिनों बेहद खुश हैं। ख़ुशी की वजह यह है कि उन्हें जे पी दत्ता की फिल्म पलटन में अहम् किरदार निभाने का मौका मिला है।
गुरमीत ने जागरण डॉट कॉम से बातचीत के दौरान कहा कि वह जे पी दत्ता को डायरेक्टर नहीं मानते हैं, बल्कि फिल्मकार मानते हैं, जो फ़ौज को दिखाते हैं। वह ऑथेंटिक दिखाते हैं जो इमोशन आर्मी में होता है, उसे हूबहू दिखाते हैं। गुरमीत कहते हैं कि मैं आर्मी परिवार से हूं। आर्मी हॉस्पिटल में जन्म लिया है। तो मैं उस इमोशन को जानता हूं और उस आधार पर कह सकता हूं कि जे पी सर जैसा कोई नहीं बना सकता हिंदुस्तान में ऐसी फिल्म। उन्होंने बॉर्डर, एलओसी जैसी फिल्म बनायीं। कभी ये नहीं सोचा था कि फिल्म में फौजी का किरदार निभाऊंगा। हमेशा लगा था कि खुद रियल लाइफ में फ़ौज में जाऊंगा। पापा को भी लगता था कि एक्टर बने या न बने फौजी जरूर बना देंगे मुझे। मुझे याद है कि फौजी में भर्ती करने के लिए रनिंग करनी पड़ती है और वह रनिंग मैंने की और मैं पास हुआ और उसके दो तीन दिन के बाद मेडिकल होने वाला था और मैं वहां से भाग कर मुंबई आ गया था। तो फौजी बना नहीं तो पापा को गुस्सा था इस बार का कि लोग रनिंग में पास नहीं होते तुम पास हो गए थे फिर भी नहीं आये। तो जब यह फिल्म मिली तो मैंने डैड को फोन किया कि जे पी दत्ता की फिल्म का हिस्सा बना हूं। वह खुश हुए क्योंकि वह जे पी सर के फैन हैं।
गुरमीत ने एक बात स्पष्ट कही है कि खबरें आ रही हैं कि फिल्म 1962 के युद्ध पर कहानी है लेकिन सच यह है कि यह फिल्म 1967 के वार को लेकर है। गुरमीत ने यह भी बताया है कि फिल्म में सारे को-स्टार्स को फिल्म की शूटिंग के दौरान जे पी दत्ता ने एक पलटन की तरह ही ट्रीट किया है। वह सबको एक साथ खाना खाने को बोलते थे। एक तरह का खाना सब मिल कर खाते थे और एक ही बस होती थी, जिसमें हम होटल से सेट पर आते थे। जे पी सर ने यह किया ताकि सबमें आपस में अच्छी दोस्ती हो जाये और इसलिए हमारी सारे को-स्टार्स से काफी अच्छी दोस्ती हो भी गयी।
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