'फिल्मों में अपने देश की संस्कृति को सही तरीके से दिखाने मेरी जिम्मेदारी है' : गुलशन ग्रोवर
स्टारडम का हाल कुछ ऐसा है कि पिछले दिनों मैं सूर्यवंशी फिल्म को सिनेमाहाल में देखने चला गया था वहां इतनी भीड़ इकठ्ठी हो गई थी की सिक्योरिटी ने कार में बिठाकर बिना फिल्म दिखाए मुझे घर भेज दिया। यह स्टारडम मैंने पहले नहीं देखा।
मुंबई ब्यूरो। पिछले कुछ समय में हिंदी सिनेमा में बैडमैन के नाम से प्रख्यात अभिनेता गुलशन ग्रोवर के कई प्रोजेक्ट एक के बाद सामने आए। पहले वह रोहित शेट्टी निर्देशित फिल्म सूर्यवंशी, फिर अमोल पराशर अभिनीत फिल्म कैश और अब हाल ही में वेब सीरीज योर ऑनर 2 से उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी कदम रख दिया है। आगामी दिनों में वह इंडियन 2 और नो मीन्स नो फिल्म में नजर आएंगे। इन प्रोजेक्ट में निगेटिव किरदारों के साथ कुछ में पॉजिटिव किरदार भी निभा रहे हैं।
अब बहुत सारा काम कर रहे हैं। इस वक्त जो स्टारडम मिल रही है, वह पहले के मुकाबले कितनी अलग है?
इस दौर में जहां अपनी जगह बनाना लोगों के लिए मुश्किल है, वहां मुझे अलग तरह के दिलचस्प किरदार मिल रहे हैं। स्टारडम का हाल कुछ ऐसा है कि पिछले दिनों मैं सूर्यवंशी फिल्म को सिनेमाहाल में देखने चला गया था, वहां इतनी भीड़ इकठ्ठी हो गई थी की सिक्योरिटी ने कार में बिठाकर बिना फिल्म दिखाए मुझे घर भेज दिया। यह स्टारडम मैंने पहले नहीं देखा।
सूर्यवंशी के बाद कैश और योर ऑनर 2 में भी अपने चिर परिचित खलनायक के अंदाज में दिखे...
मैं बैडमैन के नाम से जाना जाता हूं। यह मेरा ब्रांड है। मैं तो खुश होता हूं, जब खलनायक वाले रोल मिलते हैं। मैं तो परफॉर्मर ही बनना चाहता था। बचपन में टीचर भी यही सिखाते थे कि काम ही पूजा है। मैं अपना मनचाहा काम कर रहा हूं।
अक्षय कुमार जैसे अनुभवी कलाकारों के अलावा आप नवोदित कलाकारों के साथ भी काम कर रहे हैं। अलग-अलग पीढ़ियों में एक्टिंग को लेकर अप्रोच में क्या अंतर देखते हैं?
0.सूर्यवंशी में अक्षय कुमार, कट्रीना कैफ और अजय देवगन के साथ काम करने का एक अलग अनुभव रहा, क्योंकि यह सब तो यार दोस्त हैं। हमारा एक कंफर्ट लेवल है। पहले सभी के साथ काम किया है। सभी के साथ एक तालमेल है। वहीं नए कलाकारों के साथ काम करते हुए आपको अपनी तरफ से पूरा तैयार रहना पड़ता है। नए कलाकार की क्या एनर्जी है, उसकी क्या क्षमता है, इन चीजों के बारे में हमें कुछ नहीं पता होता है। नए कलाकारों की अदायगी और किरदारों को लेकर सोच बहुत अलग होती है। हमारी पीढ़ी के कलाकारों ने सेट पर सीखा है, लेकिन यह पीढ़ी तैयार होती है कि फैशन क्या चल रहा है, ट्रेंड में क्या है और किस तरह की कहानियों की मांग है।
क्या अलग-अलग पीढ़ी के कलाकारों के साथ काम करते हुए आपको भी अपने अभिनय शैली में बदलाव करना पड़ता है?
शत प्रतिशत बदलाव करना पड़ता हैं। हर फिल्म का अपना मिजाज होता है। जिस तरह के डायलाग्स मैंने सूर्यवंशी में बोले हैं, उस तरह के डायलाग मैंने कैश और योर ऑनर 2 में नहीं बोले हैं। इनमें से कुछ कहानियां रियलिस्टिक हैं और सामने वाला एक्टर रियलिस्टिक तरीके से एक्टिंग कर रहा है। ऐसे में अगर मैं डायलाग में बात करूं तो अजीब ही लगेगा। वही तो चैलेंज होता है और उसी में मजा है। युवाओं से काफी कुछ सीखने को मिलता है।
लगातार निगेटिव किरदारों के बीच कुछ पॉजिटिव किरदार वाले प्रोजेक्ट्स भी कर रहे हैं?
मेरी एक इंडो पोलिश फिल्म नो मीन्स नो आ रही है। इसमें मेरा किरदार इतना पॉजिटिव और इमोशनल है कि अगर यह फिल्म देखते हुए कोई इंसान मेरे साथ तीन-चार बार रो नहीं देता है, तो वह पत्थर दिल ही है। यह मेरा विश्वास है। मुझे पॉजिटिव रोल भी मिले हैं। मैंने कई बड़ी अभिनेत्रियों के पति का रोल किया है, जो निगेटिव नहीं था। खलनायकों को हीरोइन के पति का रोल जल्दी नहीं मिलता है।
दो अलग संस्कृतियां जब एक फिल्म के लिए साथ आती हैं, तो बतौर भारतीय एक्टर आपको किन चीजों का ध्यान रखना पड़ता है?
हमें अपनी परफॉर्मेंस को बैलेंस करना पड़ता है, क्योंकि हिंदी फिल्मों में हम थोड़ी सी लाउड एक्टिंग करते हैं। विदेशी फिल्मों में अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड्स के मुताबिक चलना पड़ता है। मैं जिस देश और संस्कृति को प्रस्तुत कर रहा हूं, उसे सही तरीके से दिखाना मेरी जिम्मेदारी है। मेरे बर्ताव में संस्कृति की झलक दिखनी चाहिए। अगर कहीं मैं जूते पहनकर नहीं खड़ा हो रहा हूं, तो वह अपनी संस्कृति के लिए इज्जत है। इसमें निर्देशक को भी कोई दिक्कत नहीं होती है।
क्या कभी आर्थिक जरूरतों का असर काम से संबंधित निर्णयों पर भी रहा?
जीवन में अपने पसंद के काम और पैसों दोनों का संतुलन होना बहुत जरूरी है। शुरू-शुरू में तो कलाकार के पास विकल्प ही नहीं होते हैं, आपको जो काम मिलता है, वह करना पड़ता है, नहीं तो आपको प्रोजेक्ट से निकाल दिया जाता है। फिर बीच में वह स्थिति आती है, जब आपका नाम तो होता है, लेकिन आपको किसी खास हीरो, फिल्मकारों या बैनर के साथ फिल्में चाहिए होती हैं। तब भी जो मिलेगा वो स्वीकार कर लेते हैं। फिर वह स्थिति आती है कि आप वही काम करते हैं जो आपको पसंद हो और पैसे भी अपने मन से लेते हैं। यह संतुलन बहुत वर्षों की मेहनत के बाद आता है। अगर कोई यह कहे कि मैं सिर्फ कला के लिए काम करता हूं, तो वह झूठ बोल रहा है।