Move to Jagran APP

फ्रेंडशिप डे स्पेशल: 'शोले' से लेकर ‘छिछोरे’ तक बॉलीवुड ने दोस्ती के हर रंग को भरपूर जिया है

दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है लेकिन दोस्त फस्र्ट आ जाए तो ज्यादा दुख होता है...‘थ्री इडियट्स’ के इस डायलाग में खट्टी-मीठी दोस्ती का मस्तीभरा एहसास है। सच्चे दोस्त के बिना जिंदगी अधूरी है। दोस्ती को परिभाषित करने में हिंदी सिनेमा हमेशा आगे रहा है।

By Ruchi VajpayeeEdited By: Published: Fri, 30 Jul 2021 01:11 PM (IST)Updated: Sun, 01 Aug 2021 11:03 AM (IST)
फ्रेंडशिप डे स्पेशल: 'शोले' से लेकर ‘छिछोरे’ तक बॉलीवुड ने दोस्ती के हर रंग को भरपूर जिया है
Image Source: Bollywood Fan Page on Instagram

नई दिल्ली, जेएनएन। दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है, लेकिन दोस्त फस्र्ट आ जाए तो ज्यादा दुख होता है...‘थ्री इडियट्स’ के इस डायलाग में खट्टी-मीठी दोस्ती का मस्तीभरा एहसास है। सच्चे दोस्त के बिना जिंदगी अधूरी है। दोस्ती को परिभाषित करने में हिंदी सिनेमा हमेशा आगे रहा है। ‘शोले’ के जय-वीरू की दोस्ती मिसाल है, वहीं रैंचो-फरहान-राजू जैसे दोस्तों का जिक्र भी होता है।

loksabha election banner

वक्त के साथ पर्दे पर दिखाई जाने वाली दोस्ती में भी बदलाव आया है। अब दोस्ती में सिर्फ एक-दूसरे के लिए जान देना या त्याग नहीं, बल्कि मौज-मस्ती, प्रतिस्पर्धा, सख्त लहजे में सही राह दिखाने व समझाने की बातें भी बयां होती हैं। एक अगस्त को इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे है। बदलते वक्त के साथ दोस्ती, उसके मायने, उसे प्रस्तुत करने का अंदाज सिनेमा में कितना बदला है, इसकी पड़ताल कर रहे हैं प्रियंका सिंह व दीपेश पांडेय...

पिछली सदी के छठवें, सातवें और आठवें दशक में ‘दोस्ती’, ‘शोले’, ‘दोस्ताना’, ‘आनंद’, ‘याराना’ जैसी फिल्में त्याग और समर्पण पर बना करती थीं, उसके बाद ‘मैंने प्यार किया’ और ‘कुछ कुछ होता है’ जैसी फिल्मों में

प्यार से पहले दोस्ती की अहमियत समझाई गई, वहीं ‘दिल चाहता है’, ‘रंग दे बसंती’, ‘दोस्ताना’, ‘थ्री इडियट्स’, ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’, ‘काय पो छे’, ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘काकटेल’, ‘ये जवानी है दीवानी’, ‘फुकरे, ‘वीरे

दी वेडिंग’, ‘छिछोरे’ जैसी फिल्मों ने दोस्ती के नए पाठ पढ़ाए। हर रंग में दोस्ती खूबसूरत ही नजर आई।

दोस्ती पर कई फिल्में बन रही हैं, उनमें ‘फुकरे 3’, ‘दोस्ताना 2’ शामिल हैं। एसएस राजामौली के निर्देशन में बनी फिल्म 'आरआरआर’ में दोस्ती का एक गाना रखा गया है। आजादी से पहले की पृष्ठभूमि में बनी यह फिल्म प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों, कोमाराम भीम और अल्लूरी सीताराम राजू के जीवन पर काल्पनिक कहानी है। दोस्ती में होते हैं सारे इमोशंस: करण जौहर ने अपनी फिल्मों के जरिए समझाया कि प्यार दोस्ती है, वहीं सूरज बड़जात्या ने ‘मैंने प्यार किया’ में कहा कि दोस्ती का उसूल है... नो सारी, नो थैंक्यू, दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी ही।

फिल्म ‘तेरी मेहरबानियां’ में हीरो और डाग के बीच की दोस्ती हो, ‘हाथी मेरे साथी’ फिल्म में हाथी और हीरो की दोस्ती हो या ‘शोले’ में घोड़ी धन्नो और बसंती की दोस्ती हो। इंसानों से लेकर जानवरों तक हर तरह की दोस्ती को सिनेमा में एक्सप्लोर किया गया है। दोस्तों पर बनी फिल्म ‘बदमाश कंपनी’ का निर्देशन और लेखन करने वाले परमीत सेठी कहते हैं कि दोस्ती में सारे इमोशंस होते हैं। ये इमोशन लेखक की कल्पनाओं और व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करते हैं। फिल्म ‘बदमाश कंपनी’ मैंने अपने दोस्तों से प्रेरित होकर बनाई थी। मैंने बचपन में दोस्तों के साथ काफी मस्ती और संघर्ष किया था। दोस्ती के कई पहलू होते हैं, दोस्तों से जुड़ी कई घटनाएं होती हैं, इसलिए यहविषय कभी पुराना नहीं होगा।

दोस्ती पर बनी फिल्म ‘शोले’ मेरी पसंदीदा फिल्म रही। जय-वीरू की जोड़ी दोस्ती के लिए एक मिसाल बन गई थी। पहले फिल्मों की दोस्ती बहुत सीधी सादी होती थी, लेकिन अब सिनेमा में उसका चित्रण जटिल होने लगा है, उनके रिश्तों में काफी उतार चढ़ाव होते हैं। पहले सिनेमा में जैसे एकदूसरे के लिए जान देने वाली दोस्ती होती थी, अब वैसी बातें नहीं होतीं, क्योंकि ये वास्तविकता से दूर की बात है। दोस्ती की कहानियां ढूंढ़ते हैं मेकर्स: ‘फुकरे’ फ्रेंचाइजी की तीसरी फिल्म ‘फुकरे 3’ की शूटिंग शुरू होने वाली है। चार दोस्तों पर आधारित इस फिल्म के निर्देशक और लेखक मृगदीप सिंह लांबा कहते हैं कि मेरी कोशिश यही होती है कि कहानी को जितना हो सके, आसपास जो चल रहा है, उसके करीब रखा जाए। मैं अपनी कहानियां लिखता हूं तो दर्शक के नजरिए से सोचता हूं। तभी दोस्ती पर नई कहानियां ला पाया।

‘फुकरे’ फिल्म दोस्ती वाली फिल्मों के लिए रेफरेंस बन गई। पहले लोग पूछते थे कि ‘थ्री इडियट्स’ जैसी कोई स्क्रिप्ट है क्या, अब ‘फुकरे’ के बाद लोग वैसी कहानियों की तलाश करने लगे हैं। स्लाइस आफ लाइफ वाली कहानी है। मैं खुद दिल्ली से हूं, ऐसे दोस्त मैंने अपने आसपास देखे हैं। उन्हीं अनुभवों को स्क्रीनप्ले के फार्मेट में डाल दिया था। जब ‘फुकरे’ बनाई थी तो एक रिस्क फैक्टर तो था ही, क्योंकि दोस्ती पर बहुत फिल्में बन चुकी हैं। मैं दोस्ती में कोई डार्कनेस नहीं दिखाना चाहता था। 'फुकरे’ को बनाते वक्त एक ऐसा वक्त भी आया था, जहां स्क्रीनप्ले गंभीर हो रहा था। मुझे लगा कि यह तो ‘रंग दे बसंती’ फिल्म जैसी बन जाएगी। हमने फिर से बदलाव किए, हल्की फुल्की चीजें फिल्म में शामिल कीं अच्छा दोस्त हूं, इसलिए वैसे रोल मिलते हैं:

‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’, ‘हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया’, ‘दिल बेचारा’, ‘शेरशाह’ जैसी कई फिल्मों में हीरो के दोस्त का किरदार निभा चुके साहिल वैद्य कहते हैं कि मेरे लिए दोस्ती के मायने हमेशा से बहुत गहरे रहे हैं। माता-पिता, रिश्तेदार ऊपर वाला तय करता है। दोस्त हम तय करते हैं। आपके मन में अगर अपने दोस्त की मदद करते वक्तसंकोच हो रहा है तो समझ लीजिए उस दोस्ती में कहीं न कहीं खोट है। लाकडाउन जैसे मुश्किल वक्त में दिमाग को सही रखने में दोस्ती ने बहुत मदद की है। मेरे कुछ दोस्त हैं, जिनसे कोई भी बात कर सकता हूं। मैं जब निराश होता हूं तो वे मुझे मेरी क्षमता याद दिलाते हैं। शायद यही वजह है कि मैं आफस्क्रीन और आनस्क्रीन अच्छा दोस्त हूं, इसलिए ऐसे किरदार भी आफर हो रहे हैं।

‘शेरशाह’ फिल्म में भी हीरो का दोस्त बना हूं, लेकिन किरदार अलग है, क्योंकि कारगिल युद्ध में क्या हुआ वह दुनिया जानती है, लेकिन उससे पहलेकैप्टन विक्रम बत्रा की जिंदगी में क्या हुआ, वह फिल्म का दिलचस्प पहलू है।

उसमें मेरी भूमिका अहम है। दोस्तों की यादें ताजा कराती हैं फिल्में: फिल्म ‘छिछोरे’ में दोस्तों के ग्रुप में शामिल तुषार पांडे कहते हैं कि दोस्ती एक आधारभूत इमोशनल रिश्ता है जो हर इंसान की जिंदगी में होता है। हम उनके साथ वक्त बिताते हैं। हमारे व्यक्तित्व पर उनका गहरा असर होता है। फिल्म निर्माण में भी इन्हीं भावनाओं

का प्रभाव पड़ता है। अगर मैं फिल्म ‘छिछोरे’ में अपने किरदार सुंदर श्रीवास्तव की बात करूं तो वह अपनी मम्मी  का प्यारा बेटा है, जो थोड़ा डरकर रहता है।

इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे दोस्तों के संपर्क में आने से उसके व्यक्तित्व में बदलाव आता है। सुंदर की तरह मैं भी पढ़ने का बहुत शौकीन हूं, बाकी मेरा व्यक्तित्व उससे अलग है। मेरे भी स्कूल के दिनों में ऐसे कई दोस्त थे, जिनकी याद मुझे सुंदर का किरदार सुनने के बाद आई। मैंने उन्हीं के बारे में सोचकर इस किरदार को निभाया। यह एक सदाबहार विषय है जो कभी पुराना नहीं होगा।

इंटरनेट के दौर में बदलती दोस्ती

पिकल एंटरटेनमेंट डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के प्रमुख समीर दीक्षित दर्शकों की पसंद को लेकर कहते हैं कि दोस्ती जीवंत विषय है। ‘दिल चाहता है’ दोस्ती पर बनी बेहतरीन फिल्म है। उसके सीक्वल के निर्माण की भी चर्चा है। अब न्यूक्लियर फैमिली का जमाना है। लोग रिश्तेदारों से ज्यादा दोस्तों पर निर्भर करते हैं। दोस्त आपस में हर तरह की बातें करते हैं। आज की पीढ़ी इंटरनेट मीडिया की वजह से वर्चुअल दोस्त बहुत बना रही है। युवाओं की बदलती जिंदगी की वजह से दोस्ती पर बनने वाली कहानियों में भी बदलाव हुआ है। पहले दोस्ती में जो गर्माहट थी, जान देने की बातें होती थीं, वह एहसास गायब है, लेकिन आज की पीढ़ी उससे रिलेट भी नहीं कर पाएगी। फिल्म से कमर्शियल पहलू जुड़ा होता है, ऐसे में दर्शकों की पसंद का खयाल तो रखना होगा। अब भी दोस्ती पर अच्छी फिल्मों की गुंजाइश है। रोमांस के बाद दोस्ती के विषय में बहुत पोटेंशियल है। लेखक सिर्फ दोस्ती पर फोकस करके नहीं लिख रहे हैं, लेकिन लगभग हर फिल्म में हीरो का दोस्त जरूर होता है। दक्षिण भारतीय फिल्मों में तो हीरो का एक कामेडियन दोस्त जरूर होता है। हालांकि वह दोस्ती का सही प्रोजेक्शन नहीं है। दोस्त आपका संबल होते हैं। जीवन में आगे बढ़ना व खुश रहना सिखाते हैं।

दोस्ती का बढ़ता दायरा

पिकल एंटरटेनमेंट डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के प्रमुख समीर दीक्षित कहते हैं कि सिनेमा अब लड़कियों की दोस्ती पर भी कहानियां लिखने से नहीं झिझक रहा। हिंदी में ‘वीरे दी वेडिंग’ फिल्म बनी है। डिजिटल प्लेटफार्म भी दोस्ती को खुलकर एक्सप्लोर कर रहा है। ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज!’ का तीसरा सीजन आने वाला है। ‘हास्टेल डेज’ का दूसरा सीजन आ गया है। दोस्त खुलकर बात करते हैं। डिजिटल प्लेटफार्म पर दोस्ती को सच्चाई से दिखाने की आजादी है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.