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इमोशन सार्वभौमिक होता है: नीरज घेवन

कान्स फिल्म फेस्टिवल में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद मसान की ऐतिहासिक स्क्रीनिंग छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल में बुधवार को हुई। उस अवसर पर फिल्म की स्टार कास्ट भी मौजूद रही। उन्होंने इसे प्राउड स्क्रीनिंग करार दिया। फिल्म का निर्देशन नीरज घेवन ने किया है। मसान उनके करियर की पहली

By Monika SharmaEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2015 08:33 AM (IST)Updated: Thu, 02 Jul 2015 08:50 AM (IST)
इमोशन सार्वभौमिक होता है: नीरज घेवन

अमित कर्ण, नई दिल्ली। कान्स फिल्म फेस्टिवल में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद मसान की ऐतिहासिक स्क्रीनिंग छठे जागरण फिल्म फेस्टिवल में बुधवार को हुई। उस अवसर पर फिल्म की स्टार कास्ट भी मौजूद रही। उन्होंने इसे प्राउड स्क्रीनिंग करार दिया। फिल्म का निर्देशन नीरज घेवन ने किया है। मसान उनके करियर की पहली फिल्म है। इससे पहले वे अनुराग कश्यप को 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में असिस्ट कर चुके हैं। उनके बैनर फैंटम के संग भी उनका गहरा नाता है।

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कान्स में फिल्म की दमदार परफॉर्मेंस से खुश व गर्व से भरे नीरज बताते हैं, 'मसान को मिली सफलता की खुशी इसलिए और खास बन चुकी है, क्योंकि उसने भारत का मान बढ़ाया है। वहां वह फिल्म क्रिटिक और ज्यूरी को तो पसंद आई ही, वहां के सुधि दर्शकों ने हमें स्टैंडिंग ओवेशन दी। 'मसान' के चलते हमें कान्स फिल्म फेस्टिसल में 26 साल बाद जीत मिली है। वह हम सब के लिए अनमोल पल रहा। एक विदेशी दर्शक तो हमें पकड़कर अति भावुक हो गए। वे रो पड़े। उन्होंने कहा कि फिल्म ने उनके अंतस को छू लिया। वह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है कि एक ऐसा शख्स, जिसका इस देश से कोई वास्ता नहीं है, उसे 'मसान' ने झकझोर दिया। इसका सीधा सा मतलब है कि भाषा, पहनावा, जीवनशैली व अन्य भले विविध हो, लेकिन इमोशन हर इलाके का एक सा ही है। आप की फिल्म अगर उस तार को झंकृत कर दे तो भाषा फिल्म की समझ के आड़े नहीं आती।'

'जो लोग कान्स फिल्म फेस्टिवल जैसे समारोहों को ध्यान में रख फिल्म बनाते हैं, वे बड़े कांशस हो जाते हैं। एब्सॉल्यूट रियल जोन में चले जाते हैं। इतनी रियलिटी डाली जाती है कि इमोशन कहीं दबकर रह जाता है। यूरोपियन सिनेमा की बात करूं तो वहां की फिल्में इतनी रियल रहती हैं कि इमोशन की जगह वहां रहती ही नहीं। वे अपनी खुशी व गम शब्दों में बयां नहीं करते। वह वहां के लिए सही है। मेरा मानना है कि अगर इंडिया से कोई फिल्म जाए तो उसमें इमोशन का भी पुट हो। मसान के तीनों प्रमुख किरदार शालू, दीपक, देबी सब काफी रियल हैं। सभी कलाकार भी अपने किरदारों में इतना डूब गए कि उनके इमोशन को लेकर मुझे उनसे ही मदद लेनी पड़ी। इस तरह 'मसान' अपने इमोशन के मामले में बाकी दुनिया से आई फिल्मों से अलग रही।'

'हमने फिल्म में बनारस को उसके मूल स्वरूप में दिखाया है। अब तक हमारी फिल्मों में यह होता रहा है कि छोटे शहरों को लेकर तंज या सहानुभूति भरा दृष्टिकोण दिखता रहा है। हम वह नहीं करना चाहते थे। फिल्म की कहानी शहर के नजरिए से दिखाई है। लिहाजा हमने स्टार को अप्रोच नहीं किया, क्योंकि उनके पास डेट का इश्यू था। साथ ही उन्हें ठेठ बनारस का दिखने के लिए वक्त देना पड़ता। ऋचा चड्ढा और श्वेता त्रिपाठी तो शुरुआत से मेरे जहन में थी, दीपक के किरदार के लिए मैं राजकुमार राव या फिर मनोज बाजपेयी चाहता था, लेकिन डेट की समस्याओं के चलते वे आए नहीं। विक्की कौशल और मैं 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' प्रोजेक्ट पर साथ काम कर चुके थे। उसका काम मुझे मालूम था। मैंने फिर भी उसका ऑडिशन लिया। मुझे खुशी है कि उसने दीपक को बहुत बढिया तरीके से आत्मसात किया है।'

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