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मैं जजमेंटल नहीं हूं- एकता कपूर

निर्माता एकता कपूर के कॅरियर में विरोधाभास स्पष्ट तौर पर दिखता है। जहां एक तरफ वह टीवी की दुनिया में पारिवारिक शो के निर्माण के लिए जानी जाती हैं, वहीं फिल्म निर्माण में हॉरर और अंडरव‌र्ल्ड उनका प्रिय विषय है, लेकिन अब एकता ऐसे विषयों पर काम करते हुए बोर हो चुकी हैं। उनका

By Edited By: Published: Thu, 13 Mar 2014 01:08 PM (IST)Updated: Thu, 13 Mar 2014 01:22 PM (IST)
मैं जजमेंटल नहीं हूं- एकता कपूर

मुंबई। निर्माता एकता कपूर के कॅरियर में विरोधाभास स्पष्ट तौर पर दिखता है। जहां एक तरफ वह टीवी की दुनिया में पारिवारिक शो के निर्माण के लिए जानी जाती हैं, वहीं फिल्म निर्माण में हॉरर और अंडरव‌र्ल्ड उनका प्रिय विषय है, लेकिन अब एकता ऐसे विषयों पर काम करते हुए बोर हो चुकी हैं। उनका मानना है कि अलग-अलग विषयों पर काम करने से रचनाधर्मिता बने रहती है। इन दिनों प्रयोगों का दौर चल रहा है, ऐसे में कंटेंट का कंसीडर किया जाना लाजिमी है।

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पिछले साल रिलीज हुई अभिषेक कपूर की फिल्म 'काय पो छे' का रिफरेंस देते हुए एकता कहती हैं कि अभिषेक कपूर मेरे कजिन हैं, लेकिन सिर्फ इसी वजह से मैं उनकी तारीफ नहीं कर रही हूं। इस फिल्म में कई प्रयोग हिन्दी सिनेमा में पहली बार किए गए थे जिसमें से एक गुजरात का पोर्टेयल था। अब तक हमने जितना भी गुजरात फिल्मों में देखा है वो लाउड और कैरीकेचरिश था पर इस फिल्म का गुजरात वास्तविक गुजरात था जो पहली बार अभिषेक ने दिखाया है।

बकौल एकता, 'शादी के साइड इफेक्ट्स' बनाने के पीछे सिर्फ यही मंशा थी कि अब कुछ अलग करना है। एक जैसा काम करते हुए कोई भी बोर हो सकता है फिर चाहे वो नाइन टू फाइव की जॉब हो या फिर क्रिएटिव क्षेत्र का कोई काम हो। 'रागिनी एमएमस 2' करने के दौरान भी मुझे लगा था कि कहीं आगे चलकर मुझ पर ये टैग न लग जाए कि मैं एक जैसी फिल्मों के निर्माण में पारंगत हो गई हूं, क्योंकि सीरियल्स करने के दौरान भी मेरे ऊपर ऐसे आरोप लगातार लगते रहते हैं। मुझे पहले आश्चर्य होता था कि लोग ऐसा कैसे सोच सकते हैं। एक शो बनाने में अनेक लोगों की मेहनत होती है और उसी सीरियल पर उनके परिवारों की गुजर-बसर भी निर्भर करती है। जब मेरे धारावाहिकों ने सफलता के नए आयाम रचे तो मुझे समझ में आया कि अंतिम फैसला हमेशा से ही जनता करती है।

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ठीक ऐसा ही कुछ अनुभव 'शादी के साइड इफेक्ट्स' के निर्माण के दौरान भी हुआ। जब कई लोगों ने मुझसे कहा कि फिल्म की कोर क्रिएटिव टीम से जुड़े हुए सभी लोग कुंआरे हैं। हालांकि, लोगों का ये ऑब्जर्वेशन मुझे बहुत पसंद आया, लेकिन लोगों के कहने का तात्पर्य कुछ और था। मैंने और मेरी को-प्रोड्यूसर रंजीता नंदी दोनों ने शादी नहीं की है और न ही फिल्म के निर्देशक साकेत चौधरी भी शादीशुदा हैं, लेकिन इससे फिल्म को फायदा ही हुआ। शादी को लेकर एक दूसरा नजरिया सामने आया। जो उन लोगों का नजरिया है जिन्होंने शादी नहीं की है। इस नजरिए से फिल्म को एक नया रंग मिला है। मुझे किसी के कहने का फर्क नहीं पड़ता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं किसी की बातें सुनती नहीं। मैं उन लोगों में से हूं जो कहे गए के सीधे मायने ढूंढ़ते हैं, बिट्वीन द लाइन जैसा सिर्फ लिखे हुए या किताबों में होता है असल जिंदगी में नहीं।

मेरा मानना है कि ये जरूरी नहीं है कि निर्देशक महिला है तो महिला प्रधान फिल्म बना पाएगी या फिर अगर निर्देशक पुरुष है तो वो एक बेहतरीन हॉरर फिल्म बना पाएगा। जिस तरह शादी पूरी तरह से अंडरस्टैंडिंग पर निर्भर करती है, ठीक उसी तरह कोई फिल्म भी निर्देशक की समझ पर निर्भर करती है। भूषण पटेल का काम मैंने पहले भी देखा था तो जब मेरी कंपनी ने 'रागिनी एमएमएस 2' के निर्माण के बारे में सोचा तो हमें लगा कि उनसे बेहतर निर्देशक कोई नहीं हो सकता है। जिस तरह का रिस्पॉन्स प्रोमो और रशेज को देखकर मिला है, उससे फिल्म की सफलता को लेकर उम्मीदें बढ़ी हैं।'

(दुर्गेश सिंह)


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