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गोपाल दास नीरज के साथ एक युग का अंत, आम जन से लेकर पीएम और प्रेसिडेंट तक ने जताया शोक

मुन्नवर राणा- ‘वो जा रहा है घर से जनाज़ा बुज़ुर्ग का, आंगन में एक दरख़्त पुराना नहीं रहा।’

By Hirendra JEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 10:01 AM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 11:03 AM (IST)
गोपाल दास नीरज के साथ एक युग का अंत, आम जन से लेकर पीएम और प्रेसिडेंट तक ने जताया शोक
गोपाल दास नीरज के साथ एक युग का अंत, आम जन से लेकर पीएम और प्रेसिडेंट तक ने जताया शोक

मुंबई। गुरुवार शाम जब कवि और गीतकार गोपाल दास ‘नीरज’ के निधन की ख़बर आई तो सबके होंठों पर बस एक ही गीत तैर रहा था- ‘कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे’। सोशल मीडिया पर भी हर आमो-ख़ास ने नीरज को अलविदा कहा और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थनाएं कीं।

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नेता, अभिनेता, शायर, गीतकार से लेकर एक आम फैन तक.. नीरज सबके थे! नीरज सबके हैं! और इसलिए भी उन्हें सबने याद भी किया। भारत के राष्ट्रपति ने ट्वीट कर कहा कि- ‘जाने-माने कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज के निधन के बारे में जानकर दुख हुआ। "प्रेम पुजारी" से लेकर "च च च" तक उनकी धुनों और गीतों को आज भी याद किया और सुना जाता है। उनके गीत अब भी दिल को झंकृत कर जाते हैं। उनके परिवार-जनों और प्रशंसकों के प्रति मेरी शोक-संवेदनाएं’। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी नीरज के निधन पर शोक जताया। 

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शायर मुन्नवर राणा ने लिखा कि- ‘वो जा रहा है घर से जनाज़ा बुज़ुर्ग का, आंगन में एक दरख़्त पुराना नहीं रहा।अलविदा नीरज साहब!’  क्या आप जानते हैं नीरज को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये 70 के दशक में लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है। जिन गीतों पर उन्हें यह पुरस्कार मिला वो हैं- ‘काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली-1970), ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं’ (फ़िल्म: पहचान-1971) और ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’ (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर-1972)।

नीरज ने एक बातचीत में बताया था कि जब राज कपूर उनसे ‘मेरा नाम जोकर’ के लिए एक ऐसा गीत चाहते थे जिससे फ़िल्म की कहानी आगे बढ़े तो उन्होंने ‘ए भाई ज़रा देख के चलो’ लिखा। लेकिन, नीरज के मुताबिक संगीतकार को इसके बोल पर धुन बनाने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी तब राज कपूर ने उनसे पूछा कि कैसे गाया जाए इस गीत को! तो नीरज ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में यह गीत गा कर सुना दिया। बाद में उनके ही धुन पर इस गाने को संगीतबद्ध किया गया जिसे मन्ना डे ने उतनी ही खूबसूरती से गाया है। आप यह गीत यहां सुन सकते हैं!  

नीरज को याद करते हुए उपन्यासकार दयानंद पाण्डेय फेसबुक पर लिखते हैं- ‘जैसे एक युग बीत गया है, गीतों का। स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से गीत की ही तरह नीरज अब स्मृति-शेष हो गए हैं। नीरज और उन के गीतों का कारवां गुज़र गया है। गीतों को जो लय, मिठास, मादकता और बहार नीरज ने दी है, वह अनूठी है। खुल्लमखुल्ला जो रंगीन जीवन उन्हों ने जिया, वह क्या कोई जिएगा! रजनीश जैसे लोगों ने नीरज के तमाम गीतों पर प्रवचन दिए हैं। हिंदी फिल्मों में जो गीत उन्होंने लिखे, जो मादकता और जो तबीयत उन्होंने परोसी है, वह अविरल है, अनूठी है। वह बताते थे कि एक बार राजकपूर ने एक गीत में कुछ बदलने पर हस्तक्षेप किया तो उन्होंने राज कपूर को डांटते हुए कहा कि देखो, तुम अपनी फील्ड के हीरो हो, मैं अपनी फील्ड का हीरो हूं। तुम अपना काम करो, मुझे अपना काम करने दो। और राज कपूर चुप हो कर उन की बात मान गए थे। एक समय एस डी वर्मन जैसे संगीतकारों से भी नीरज टकरा गए थे। देवानंद दो ही गीतकारों पर मोहित थे। एक साहिर लुधियानवी, दूसरे नीरज। ओमपुरी पहली बार जब लखनऊ में नीरज से मिले तो पूरी श्रद्धा से उन के पांव पकड़ कर लेट गए थे। यह उन के गीतों का जादू था। ओमपुरी उन के गीतों की मादकता पर ही मर मिटे थे। हम भी उन के गीतों पर न्यौछावर हैं। जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए जैसे आशावादी गीत रचने वाले नीरज आत्मा का गीत लिखते थे। नीरज ने आध्यात्मिक गीत भी खूब लिखे हैं। रजनीश के अलावा बुद्ध से वह बहुत गहरे प्रभावित थे। बीमारी की जकड़न और 93 साल की उम्र में भी उन का जाना शूल सा चुभ रहा है। उन का एक सदाबहार गीत आज उन्हीं पर चस्पा हो गया है। और हम लुटे-लुटे उसे याद करने के लिए विवश हो गए हैं क्यों कि नीरज का कारवां तो आज सचमुच गुज़र गया है, बस उन की यादों का गुबार रह गया है।’

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