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टॉप पर रही यह अभिनेत्री ताउम्र रही अकेली, बहुत बदल गया है लुक, देखें तस्वीरें

साथ ही सेंसर बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव इन्हीं को है। वर्ष1992 में कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

By Hirendra JEdited By: Published: Mon, 01 Oct 2018 10:54 AM (IST)Updated: Wed, 03 Oct 2018 08:39 AM (IST)
टॉप पर रही यह अभिनेत्री ताउम्र रही अकेली, बहुत बदल गया है लुक, देखें तस्वीरें
टॉप पर रही यह अभिनेत्री ताउम्र रही अकेली, बहुत बदल गया है लुक, देखें तस्वीरें

मुंबई। 2 अक्टूबर को आशा पारेख का बर्थडे था। इस साल आशा पारेख 76 साल की हो गयीं। हिन्दी सिनेमा की नायिकाओं में आशा पारेख की इमेज टॉम-बॉय की रही है। चुलबुली, शरारती और नटखट अंदाज़। यही वज़ह रही कि आशा के समकालीन एक्टर्स उनसे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझी।

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लेकिन, यह भी काबिलेतारीफ है कि आशा के बारे में मीडिया में कभी अभद्र गॉसिप या स्केण्डल नहीं छपे। अलबत्ता आशा का साथ पाकर उनके नायकों की फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर तथा गोल्डन जुबिली मनाती रहीं। 1959 से 1973 के बीच वो हिंदी फ़िल्मों की टॉप अभिनेत्रियों में शुमार रही हैं। रिटायरमेंट के बाद वो अपनी डांस एकेडमी चलाती रही हैं। एक गुजराती परिवार में पन्नालाल और सुधा पारेख की बेटी के रूप में 2 अक्टूबर, 1942 को जन्मीं अभिनेत्री आशा पारेख को डांस के शौक ने इस मुकाम तक पहुंचाया। बाल कलाकार के रूप में उनकी पहली फ़िल्म आई 1952 में दलसुख पंचोली की 'आसमान'। हीरोइन के रूप में उनकी पहली फ़िल्म थी 'दिल देके देखो', जो सफल हुई थी। लगभग अस्सी फ़िल्मों में बतौर अभिनेत्री काम कर चुकीं आशा पारेख की तमाम फ़िल्में बेहद पसंद की गई, जिनमें 'जब प्यार किसी से होता है', 'घराना', 'फिर वही दिल लाया हूं', 'मेरी सूरत तेरी आंखें', 'भरोसा', 'मेरे सनम', 'तीसरी मंजिल', 'लव इन टोक्यो', 'दो बदन', 'आये दिन बहार के', 'उपकार', 'शिकार', 'साजन', 'आया सावन झूम के', 'पगला कहीं का', 'कटी पतंग', 'आन मिलो सजना', 'मेरा गांव मेरा देश', 'कारवां', 'समाधि', 'जख्मी', 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' उल्लेखनीय हैं। आगे बढ़ने से देखें उनकी लेटेस्ट तस्वीर!

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‘कटी पतंग' के लिए आशा पारेख को बेस्ट एक्ट्रेस का फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला 1972 में और फ़िल्मों में योगदान के लिए फ़िल्मफेयर का ही लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड 2002 में मिला। इनके योगदान के लिए आइफा ने भी 2006 में स्पेशल अवार्ड से सम्मानित किया। उन्होंने अपने समय के सभी प्रसिद्ध तथा सफल नायकों के साथ काम किया। आशा पारेख ने हिन्दी के अलावा गुजराती, पंजाबी और कन्नड़ फ़िल्मों में भी काम किया। गुजराती फ़िल्म 'अखंड सौभाग्यवती' को अपार सफलता मिली।

सन 1990 में गुजराती टीवी सीरियल 'ज्योति' का निर्देशन कर उन्होंने छोटे पर्दे की दुनिया में कदम रखा। उसके बाद अपनी प्रोडक्शन कंपनी आकृति खोलकर 'पलाश के फूल', 'बाजे पायल', 'कोरा कागज', 'दाल में काला' सीरियल बनाए। निदा फाज़ली साहब का एक शेर है कि 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं ज़मी तो कहीं आसमां नहीं मिलता!' क्या आप जानते हैं आशा बॉलीवुड की उन अभिनेत्रियों में से एक हैं जिन्होंने शादी नहीं की। उनके बारे में कहा जाता है कि कभी वो डायरेक्टर नासिर हुसैन के बेहद करीब थीं।

आशा पारेख ने एक पत्रिका को दिये इंटरव्यू में अपने जीवन से जुड़े कई राज खोले थे। उन्होंने कहा कि "मैं शादी नहीं करके बहुत खुश हूं। मेरी मां ने मेरे लिए लड़के की तलाश की। लेकिन, कोई योग्य लड़का मिल नहीं पाया। मैं अपने इस फैसले को लेकर बहुत खुश हूं। मेरे किस्मत में शादी नहीं थी - सो नहीं हुई। आज के दौर में जब पति-पत्नी व बच्चे के तनाव को देखती हूं, तो दुख होता है।"

बता दें कि फ़िल्मों के अलावा आशा पारेख फ़िल्मों से जुड़े कई महत्वपूर्ण पदों पर भी रहीं। 1994 से 2000 तक सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्ष रहीं। साथ ही सेंसर बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव इन्हीं को है। वर्ष1992 में कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


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