Move to Jagran APP

बन गया मुखड़ा..

हमने पिछली बार की बातचीत में यह बात कही थी कि फिल्म 'चौदहवीं का चांद' के गीत-संगीत कैसे बने थे। अभी बहुत सी कहानी है इस फिल्म से जुड़ी, तो अब आगे की बात..। हां, तो यह उसी समय की बात है। उस दिन जब हम घर से यानी सांताक्रुज से कांदिवली के लिए चले, तब रात्

By Edited By: Published: Wed, 03 Apr 2013 05:46 PM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2013 06:18 PM (IST)
बन गया मुखड़ा..

नई दिल्ली। हमने पिछली बार की बातचीत में यह बात कही थी कि फिल्म 'चौदहवीं का चांद' के गीत-संगीत कैसे बने थे। अभी बहुत सी कहानी है इस फिल्म से जुड़ी, तो अब आगे की बात..।

loksabha election banner

हां, तो यह उसी समय की बात है। उस दिन जब हम घर से यानी सांताक्रुज से कांदिवली के लिए चले, तब रात हो गई थी। इस दौरान यानी मुझे घर जाते हुए भी गुरुदत्त की फिल्म की कहानी और उस सिचुएशन का खयाल दिमाग से नहीं गया था। मैं उसी के बारे में सोच रहा था। सोचना भी वाजिब था क्योंकि गुरुदत्त के साथ यह मेरी पहली फिल्म थी और इसमें उन्हें निराशा हाथ लगती, तो सब किया-धरा बेकार हो जाता। आगे वे क्या सोचते यह तो बाद की बात थी, लेकिन काम अच्छा न हो, तो बदनामी होती, सो अलग..। इसलिए मेरा ध्यान एक दम टाइटिल सॉन्ग पर था और मेरे दिमाग में यह बात घुस गई थी। हालांकि यह मेरा काम नहीं था। यह काम तो गीतकार का था, लेकिन मैं भी गीत लिखता था और यही सोचता था कि अगर अच्छे बोल बन जाएं, तो इसमें बुरा क्या है। अपनी ओर से राय देंगे, अच्छा होगा, तो लोग स्वीकार करेंगे और नहीं होगा तो खारिज कर देंगे।

गुरुदत्त की फिल्मों के गीतों को जिन लोगों ने देखा होगा, वे इस बात को समझ सकते हैं। तो मैं घर को जा रहा था, तभी मुझे चांद सामने दिखाई दिया। मैं चांद को निहारते हुए आगे बढ़ रहा था और बोल के बारे में सोच भी रहा था। घर तक पहुंचते हुए मैंने एक लाइन बना ली और वह थी 'चौदहवीं का चांद हो..'। इसी लाइन को गुनगुनाते हुए मैं अपने घर में घुसा। मेरे हाथ में बस फोन का सेट था। मैंने घर में घुसने के बाद और कोई काम नहीं किया। सबसे पहले फोन सेट किया और कुर्सी पर बैठ कर फोन गुरुदत्त को मिलाया। उनसे 'चौदहवीं का चांद हो..' गीत की इसी लाइन के बारे में बात की। फोन पर इस गीत को लेकर मेरी उनसे बातचीत शुरू हुई। मैंने उनसे सीन के बारे में भी जिक्र किया और कहा कि आप यहीं आ जाइए। गुरुदत्त जब तक आते, तब तक मैं उसी धुन को घर में रखे हारमोनियम को बजाते हुए धुन में गा रहा था। कुछ ही समय बाद गुरुदत्त आ गए। जब वे आए, तो मैंने मुखड़े यानी 'चौदहवीं का चांद हो..' को सुनाया। उन्होंने मुझसे कहा कि सोचा तो बहुत अच्छा है। अब आगे के बोल कैसे बनते हैं, उस पर ही बात बढ़ेगी। मैंने भी हां में सिर हिलाया और कुछ देर सोचने के बाद कहा, चलिए हम चलते हैं शकील साहब के पास। वे तैयार हो गए।

हम दोनों कार में बैठे और गीत के बारे में सोचते बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे। कुछ देर बार मैंने इसे गुनगुनाया और आगे के तीन और शब्द जोड़ दिए, लेकिन वे शब्द स्पष्ट नहीं निकले थे। जैसे गुनगुनाया था, तभी गुरुदत्त ने कहा, 'क्या गाया आगे आपने?' मैंने कहा, 'यह सोचा भर है, जो सुनाता हूं।' फिर मैंने बोल 'चौदहवीं का चांद हो..' के साथ 'या आफताब हो..' जोड़ दिया। इस बोल को सुनकर गुरुदत्त बेहद खुश हो गए। बोले, 'अरे यह तो खूबसूरत मुखड़ा बन गया..।' उन्होंने बोला भी, 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो..'। हम दोनों खुश थे कि चलो एक लाइन बनी है और वह अच्छी बनी है। साथ ही हमने यह भी कहा, चलो अब देखते हैं कि शकील साहब इस बारे में क्या कहते हैं और इसमें आगे क्या जोड़ते हैं?'

कुछ समय बाद हम दोनों शकील साहब के घर के बाहर पहुंच गए। जब उन्हें सूचना मिली कि हम दोनों आए हैं, तो वे चौंक गए कि आखिर इस वक्त रात के तीन बजे ऐसी क्या बात हो गई? उन्होंने मिलते ही पूछा, 'अरे भई, ऐसी क्या बात हो गई? सब ठीक तो है? गुरुदत्त ने कहा, 'सब ठीक है, पहले चाय पिलाइए, फिर बात करते हैं।' चाय के लिए अंदर खबर चली गई और तीनों बातें करने लगे। बात जो होनी थी, शुरू हुई। फिर पूरी कहानी सुनाने के बाद गुरुदत्त ने उस लाइन को दोहराया। फिर उन्होंने कहा, इस लाइन को रवि जी तरन्नुम में अच्छा गुनगुनाते हैं। उन्होंने इसकी धुन भी बना ली है। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि सुनाइए रवि जी। मैंने भी वह लाइन गुनगुना दी.., 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो..'। बस अभी लाइन खत्म ही हुई थी कि शकील साहब ने तुरंत उसमें जोड़ दिया, 'जो भी हो तुम खुदा कि कसम लाजवाब हो..'। यह लाइन जैसे ही अपनी आवाज में शकील साहब ने कही, गुरुदत्त ने उन्हें उठ कर गले से लगा लिया और कहा, 'यह हुई ना बात..।' तीनों ने वहीं चाय पीते हुए आगे के लिए भी बातें कीं। फिर कब सुबह हो गई, पता नहीं चला। उसके बाद शकील साहब ने जो बोल लिखे, उसे आज तक दुनिया सुन रही है। यह गीत यादगार गीत साबित हुआ, आज भी लोग इसे सुनते नहीं थकते हैं। तो यह थी कहानी 'चौदहवीं का चांद हो..' गीत के बनने की।

क्रमश:

इस अंक के सहयोगी : मुंबई से अजय ब्रह्मात्मज, अमित कर्ण, दुर्गेश सिंह, दिल्ली से रतन, स्मिता, पंजाब से वंदना वालिया बाली, पटना से संजीव कुमार आलोक

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.