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5 साल में बनकर तैयार हुई थी अक्षय कुमार की 'एयरलिफ्ट', जानें कैसे इक्ट्ठी की थी निर्देशक ने कहानी

राजा कृष्ण मेनन द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ साल 1990 में इराक-कुवैत युद्ध में फंसे एक लाख 70 हजार भारतीयों को सुरक्षित निकालने की सच्ची कहानी है। कुवैत में बसे कुछ भारतीयों की मदद और भारत सरकार की पहल पर ...

By Nazneen AhmedEdited By: Published: Fri, 17 Dec 2021 02:36 PM (IST)Updated: Fri, 17 Dec 2021 02:36 PM (IST)
5 साल में बनकर तैयार हुई थी अक्षय कुमार की 'एयरलिफ्ट', जानें कैसे इक्ट्ठी की थी निर्देशक ने कहानी
Photo credit - Airlift Movie Poster Photo

स्मिता श्रीवास्तव, जेएनएन। राजा कृष्ण मेनन द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ साल 1990 में इराक-कुवैत युद्ध में फंसे एक लाख 70 हजार भारतीयों को सुरक्षित निकालने की सच्ची कहानी है। कुवैत में बसे कुछ भारतीयों की मदद और भारत सरकार की पहल पर एयर इंडिया के विमान 59 दिनों में 488 उड़ानों के जरिए सभी भारतीयों को सुरक्षित स्वदेश लेकर लौटे थे। राजा कृष्ण मेनन बता रहे हैं फिल्म के निर्माण की प्रक्रिया...

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‘मैं केरल से ताल्लुक रखता हूं। कुवैत से सुरक्षित निकालकर लाए गए लोगों में काफी लोग केरल से थे। विदेश में रह रहे भारतीयों को इस प्रकार सुरक्षित स्वदेश लाना, यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। मुझे लगा था कि इस बारे में लोगों को बताना चाहिए। मैंने इसकी बेसिक कहानी लिख ली थी। साल 2013 में मैंने जब यह कहानी निर्माताओं को सुनाई तो उन्होंने कहा कि चलो बनाते हैं। मैंने फिर से स्टोरी पर काम करना चालू किया’।

‘युद्ध से इतर यह मानवीय संवेदनाओं की कहानी थी। सरकार ने एक लाख 70 हजार लोगों को वहां से निकाला था। उसका कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं है। जितने लोग वहां पर थे, उनके अपने अनुभव थे। यह फिल्म कुवैत में रह रहे भारतीय व्यवसायी मैथुनी मैथ्यूज से प्रेरित थी जो टोयोटा सनी के तौर पर विख्यात रहे हैं। अब उनका निधन हो चुका है। मैंने उनके साथ काफी समय बिताया था। मैंने उनसे पूछा था कि आप पहले निकल सकते थे, लेकिन आपने वैसा नहीं किया तो उन्होंने कहा कि मेरे लोग फंसे थे तो मैं कैसे वापस जा सकता था। इस घटनाक्रम से जुड़ा बीबीसी का छोटा सा फुटेज देखा। छोटी-छोटी चीजों को आधार बनाते हुए हमने कहानी को गढ़ा। इसकी रिसर्च में पांच साल का समय लगा’।

‘शरुआत से ही हमें ‘एयरलिफ्ट’ टाइटल अच्छा लगा था। हमने अलग-अलग लोगों से फोटो, वीडियो लिए। उन्हें देखकर हमने उस दौर को रचा, पर युद्ध का माहौल हमने उस घटना के संदर्भ में लोगों के अनुभव जानकर ज्यादातर कल्पनाओं से गढ़ा था। प्रोडक्शन डिजायनर मुस्तफा स्टेशनवाला का एक भाई कुवैत में था। उनसे हमें काफी जानकारी मिली’।

‘फिल्म की शूटिंग हमने दुबई के रसल खेमा में की थी। वहां पर पिछली सदी के नौवे दशक की बहुत सारी पुरानी कारें मिल गई थीं। हमने उनकी मरम्मत और रंग रोगन करके उन्हें तैयार किया। रसेल खेमा में एक रोड पर हमने वॉर की सिचुएशन बनायी थी। हम शूटिंग करने के लिए पहुंचे थे, पर देखा कि वहां पर लोगों में दहशत है। उन्हें लगा कि वास्तव में कुछ हुआ है। एक सीन में रंजीत कटियाल (अक्षय) और इब्राहिम (पूरब) इराक जाते हैं और भारतीय राजदूत से मुलाकात करते हैं। वहां से बाहर आकर चाय पीते हैं’।

‘बाहरी दीवार पर हमने इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन का पोस्टर लगाया था। उसे देखकर स्थानीय लोग परेशान हो गए थे। पुलिस आ गई थी। मुझे लगा कि शूटिंग बंद करनी पडे़गी, पर सबकुछ हैंडिल हो गया। जब ज्ञात हो कि अंत में क्या होने वाला है तो दर्शकों की जिज्ञासा बनाए रखना चुनौती होती है। हमारा फोकस इस पर था कि यह कैसे हुआ। एक सीन में रंजीत कटियाल अपने ड्राइवर की बीवी से जाकर मिलते हैं यह बताने के लिए कि इराकी सैनिकों ने उसे मार डाला। मैंने अक्षय से कहा कि आप आंखों से उसे बयां करो। उसे उन्होंने बहुत खूबसूरती से निभाया था। एक डेढ़ मिनट का शाट फिल्म में यूनीक है। उसे हमने एक टेक में शूट किया था। अक्षय कार में हैं, उसके जरिए हम देखते हैं कि कुवैत में क्या हो रहा है। ऐसे वार सीन फिल्माना आसान नहीं होता। इतने सारे लोग होते हैं। बंदूकें होती हैं। धुंआ होता है, पर यही फिल्ममेकिंग का मजा भी है’।

‘इनामुल हक का किरदार छोटा, लेकिन यादगार था। मुझे टिपिकल लंबा चौड़ा विलेन नहीं चाहिए था। ऐसा किरदार चाहिए था जिसके पास ज्यादा पावर न हो, लेकिन उसे वहां पर तैनात किया गया हो। वह थोड़ा करप्ट भी हो। इनामुल उसकी पूरी लाइफ हिस्ट्री लिखकर लाए थे कि यह बंदा ऐसा रहा होगा। उन्होंने उसके लिए अरेबिक सीखना शुरू किया। वह उस दौरान पूरी तरह कुवैती बन गए थे। कुवैत से भारत लाए गए कुछ लोगों को मैंने फिल्म देखने के लिए बुलाया था। वे उस घटना को याद नहीं करना चाहते थे, पर फिल्म देखने के बाद उन्होंने कहा कि आपने घटना के मूल भाव को स्पर्श किया तो मुझे बहुत खुशी हुई'।

'काल्पनिक किरदार में दिखाई कई लोगों की छवि कुवैत में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के इस कार्य में भारतीय व्यवसायी मैथुनी मैथ्यूज उर्फ सनी टोयोटा का करीब डेढ दर्जन लोगों ने सक्रिय सहयोग किया था। उन्होंने बाकायदा एक कमेटी बनाकर काम करते हुए इस अभियान को सफल बनाया था, पर इतने सारे लोगों के साथ कहानी कहना मुश्किल था। इस बारे में जब सनी से बात की तो उन्होंने कहा कि आप सिर्फ मेरा नाम लेंगे तो यह कहानी गलत होगी। अगर आप उन सभी डेढ़ दर्जन लोगों का नाम नहीं ले सकते हैं, जिन्होंने इस कठिन कार्य में योगदान दिया तो बेहतर है कि कोई काल्पनिक किरदार बनाएं जिसमें उन सभी की खूबियां आ जाएं। हमने वही कोशिश की। 


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