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शाहरुख़ खान की फिल्म चक दे इंडिया से गोल्ड की तुलना पर दो टूक बोले अक्षय

अक्षय का कहना है कि हर किसी को अपनी लाइफ स्टाइल में एक गेम को शामिल करना ही चाहिए. एक स्पोर्ट्स खेलना ही चाहिए.

By Manoj KhadilkarEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 11:18 AM (IST)
शाहरुख़ खान की फिल्म चक दे इंडिया से गोल्ड की तुलना पर दो टूक बोले अक्षय
शाहरुख़ खान की फिल्म चक दे इंडिया से गोल्ड की तुलना पर दो टूक बोले अक्षय

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई. अक्षय कुमार इन दिनों अपनी फिल्म गोल्ड के प्रोमोशन में लगे हुए हैं. इस फिल्म की कहानी हॉकी पर आधारित है. फिल्म को लेकर अक्षय भी उत्साहित हैं, क्योंकि वह मानते हैं कि भारत में स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना ही चाहिए और खिलाड़ियों को भी मौके मिलने ही चाहिए.

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ऐसे में जब अक्षय कुमार से यह पूछा गया कि उनकी फिल्म गोल्ड की तुलना शाहरुख़ खान की फिल्म चक दे इंडिया से हो रही है. चूंकि चक दे इंडिया भी हॉकी पर ही आधारित थी तो ऐसे में उनका क्या कहना है तो अक्षय कुमार इस पर दो टूक कहते हैं कि यह बिल्कुल गलत है. शाहरुख़ खान की फिल्म से मेरी फिल्म की तुलना करना बिल्कुल गलत होगा. यह सही है कि दोनों की फिल्में हॉकी पर हैं लेकिन फिल्म की कहानी बिल्कुल अलग है और इनकी तुलना बिल्कुल नहीं की जानी चाहिए. वह कहते हैं कि गोल्ड एक हॉकी टीम के मैनेजर की कहानी है, जो कि भारत को उसका गोल्ड दिलाने में मदद करता है. वहीं चक दे इंडिया एक कोच की कहानी थी.

इसी बातचीत के दौरान जब अक्षय से पूछा गया कि क्या हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा मिलना चाहिए? इस पर अक्षय कहते हैं कि वह इस बारे में यही कहना चाहेंगे कि हर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना जरूरी है और हर खिलाड़ी को बढ़ावा देना जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि अभिभावक अपने बच्चों को कोई न कोई स्पोर्ट्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि बचपन से वह दिलचस्पी लेते रहे हैं और आगे चल कर वह इसे गंभीरता से लें. अक्षय का कहना है कि हर किसी को अपनी लाइफ स्टाइल में एक गेम को शामिल करना ही चाहिए. एक स्पोर्ट्स खेलना ही चाहिए.

अक्षय का कहना है कि गोल्ड की कहानी सच्ची कहानी है. साल 1948 में जब ओलंपिक हुआ था उस वक्त ये सारी कहानी अंदर ही अंदर रह गयी थी. चूंकि उस वक्त देश आजाद हुआ था तो काफी कुछ देश में हो रहा था. 1947 में आजादी मिली थी. इसका महत्व लोगों ने सुना था. मुझे भी इस बारे में नहीं पता था. कहानी 1936 से शुरू होती है, जब हम ब्रिटिश इंडिया के वक्त खेल रहे थे. जर्मनी के साथ फाइनल खेल रहे थे और हिटलर वह मैच देखने आये थे. तभी उन्होंने मैच देखा तो ब्रिटिश इंडिया जीत रहा था. वह दुखी हो गये थे और वहां से बाहर निकल गये थे. उन्होंने उस वक्त इंडिया के प्लेयर को कहा था, कि हमारी आर्मी को ज्वाइन कर लो.

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