डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं अभय देओल, ऐसे निकले बाहर
अभय देओल जल्द फिल्म नानू की जानू में नजर आएंगे। यह एक हॉरर कॉमेडी है। इस फिल्म में पत्रलेखा की भी अहम भूमिका है।
रूपेशकुमार गुप्ता मुंबई। फिल्म अभिनेता अभय देओल ने कहा कि वह भी एक समय डिप्रेशन से ग्रसित थे और उन्होंने उससे निकलने के लिए कई तरह के उपाय किये।
अपनी आने वाली फिल्म नानू की जानू की रिलीज़ के पहले मीडिया से बातचीत में अभय ने कहा “जब मैं भीख मांगते बच्चे और अपंगों को देखता हूं तो समझ में बात आती है कि मेरी स्थिति उनसे कहीं बेहतर है। अभय देओल ने कहा कि जीवन में डिप्रेशन कई मौकों पर आता है। हम सभी मनुष्य है जिसमें सफलता और असफलता आती जाती रहती है। जब हम असफल होते हैं तो डिप्रेशन हमें घेर लेता है। उस समय मैं खुद को समझाने का प्रयत्न करता हूं की मेरी स्थिति अन्य लोगों से कैसे बेहतर है। इसके अलावा मैंने जीवन में कई चीजों पर अपनी मनमानी भी की। जोकि मेरे लिए बड़ी बात है। रोड पर जब बच्चों को भीख मांगते देखता हूं या उनको असहाय देखता हूं तो समझ में बात आती है कि मेरी स्थिति उन से कहीं बेहतर है। अभय देओल जल्द फिल्म नानू की जानू में नजर आएंगे। यह एक हॉरर कॉमेडी है। इस फिल्म में पत्रलेखा की भी अहम भूमिका है। फिल्म का निर्देशन फराज़ हैदर ने किया है आयर फिल्म 20 अप्रैल को रिलीज होगी।
अभय ने कहा कि वह समाज के लोगों से कहना चाहते है कि कितना भी फेयरनेस क्रीम लगा लें। भले ही कितने भी गोरे क्यों न हो जाए लेकिन विदेशों में रहने वाले गोरों के लिए आप दोयम दर्जे के ही रहेंगे। अभय देओल ने कहा कि वंशवाद सभी जगह है। अगर आप मानते है कि यह विदेशों में नहीं है तो आप गलत सोच रहे है। इसके पीछे का कारण बताते हुए अभय देओल ने कहा कि जब आप हॉलीवुड में फ़िल्में करना चाहेंगे तो वहां अलग तरह का वंशवाद होता है। वहां भेद गोरे और काले का हो जाता है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि क्रीम लगाने से भारतीय लोग भले ही गोरे हो जाए लेकिन विदेश में रहने वालों के लिए वह काले ही रहेंगे।
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