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West Bengal Assembly Election 2021: ममता के गढ़ में कमल खिलाने को तत्पर भाजपा, 109 सीटों पर टीएमसी को ऐसे देंगे मात

तीसरे चरण के साथ इस क्षेत्र के एक हिस्से में मतदान हो चुका है। ममता बनर्जी के लिए जहां इसे बचाए रखना बेहद जरूरी है वहीं बदलाव का दावा कर रही भाजपा ने इस जमीन में इतनी राजनीतिक खाद डाली है कि फसल उगना तो तय है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 06 Apr 2021 09:52 PM (IST)Updated: Tue, 06 Apr 2021 09:52 PM (IST)
West Bengal Assembly Election 2021: ममता के गढ़ में कमल खिलाने को तत्पर भाजपा, 109 सीटों पर टीएमसी को ऐसे देंगे मात
पश्चिम बंगाल की 109 सीटों की रखवाली भाजपा के 22 दिग्गजों पर (फाइल फोटो)

आशुतोष झा, कोलकाता। कोलकाता प्रेसीडेंसी एरिया या ग्रेटर कोलकाता यानी पश्चिम बंगाल का वह दक्षिणी क्षेत्र जो ममता बनर्जी का मजबूत गढ़ रहा है और माना जा रहा है कि सत्ता की कुंजी यहीं छिपी है। तीसरे चरण के साथ इस क्षेत्र के एक हिस्से में मतदान हो चुका है। ममता बनर्जी के लिए जहां इसे बचाए रखना बेहद जरूरी है वहीं बदलाव का दावा कर रही भाजपा ने इस जमीन में इतनी राजनीतिक खाद डाली है कि फसल उगना तो तय है, लहलहाने की भी उम्मीद की जा रही है। पिछले चार पांच महीनों से भाजपा के 22 वरिष्ठ नेता सिर्फ इस इलाके की 109 सीटों पर पसीना बहा रहे हैं। जमीनी संगठन दुरुस्त करने से लेकर भय का माहौल खत्म करने और उम्मीदवारों व वोटरों को सुरक्षा देने तक की जिम्मेदारी इन्होंने अपने कंधे पर उठा ली है।

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बंगाल में मैनेजमेंट सिर्फ संगठनात्मक ही नहीं, पर भरोसा करने पर ज्यादा टिका

पूरे देश में अब अकेले पश्चिम बंगाल ही ऐसा प्रदेश है, जहां चुनाव हिंसामुक्त नहीं हो पाया है, बल्कि भय हमेशा से चुनाव पर हावी रहा है। चुनाव आयोग और केंद्रीय बलों की लाख कोशिशों के बावजूद वोटर ही नहीं उम्मीदवारों को भी डराने-धमकाने का काम जारी है। ऐसे में खासकर इस क्षेत्र में भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट भी थोड़ा बदला हुआ है। यहां का मैनेजमेंट केवल संगठनात्मक नहीं, बल्कि भरोसा पैदा करने पर ज्यादा टिका है।

भाजपा के बड़े नेताओं को बनाया गया विधानसभा प्रभारी

केंद्रीय मंत्री रहे राधामोहन सिंह, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, केंद्रीय मंत्री आरके सिंह, महाराष्ट्र में मंत्री रहे विनोद तावड़े. वरिष्ठ नेता विनय सहस्त्रबुद्धे जैसे लोगों के जिम्मे औसतन पांच विधानसभा क्षेत्र सौंपा गया है तो इसी खातिर कि वह केंद्रित रहें, जबकि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय जैसे कुछ लोगों को 25-35 सीटों का प्रभारी बनाया गया था। बताया जाता है कि ज्यादा वरिष्ठ लोगों को कम सीटों पर इसलिए केंद्रित किया गया, ताकि हर सीट प्रभावी बन सके।

को-ऑर्डिनेशन के साथ सुरक्षा को लेकर भरोसा पैदा कर रहे केंद्रीय नेता

रही बात इनके कामकाज की तो हर स्तर पर को-ऑर्डिनेशन के साथ साथ इनकी पूरी कसरत यह है कि क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर भरोसा पैदा हो सके। लिहाजा भाजपा के बड़े नेताओं के जिम्मे यह भी है कि वह लगातार केंद्रीय चुनाव पर्यवेक्षक से बात करें। जमीन से लेकर केंद्र तक भाजपा के बड़े नेता यह सुनिश्चत कर रहे हैं कि मतदान सही तरीके से हो। इन नेताओं के पास जमीन से लगातार स्थानीय गुंडागर्दी की शिकायतों को पुलिंदा पहुंचता है और ये सुनिश्चत करते हैं कि उसका निवारण हो। क्षेत्र की अधिकतर सीटों पर चुनाव से पहले अर्धसैनिक सुरक्षाबलों का मार्च हो रहा है, ताकि वोटरों में सुरक्षा का भाव पैदा हो। रैलियों के साथ-साथ स्थानीय और केंद्रीय बड़े नेताओं के रोड शो पर ध्यान केंद्रित है। दरअसल माना जा रहा है कि रोड शो से न सिर्फ ज्यादा सीधा संपर्क स्थापित होता है, बल्कि सड़कों और मोहल्लों के बीच चल रहे काफिले के कारण भरोसा पैदा होता है।

पश्चिम बंगाल का माइक्रो मैनेजमेंट इन प्रदेशों में दोहराया जाएगा

बंगाल का मैनेजमेंट सफल रहा तो आने वाले समय में भाजपा के मिशन कोरोमंडल को आगे बढ़ाने में भी लगभग ऐसा ही प्रबंधन नजर आ सकता है। दरअसल सागर से जुड़े ओडिशा, तमिलनाडु, केरल जैसे प्रदेशों में पश्चिम बंगाल की तरह रक्तरंजित स्थिति तो नहीं है, लेकिन यहां का भी बड़ा हिस्सा भाजपा के लिए बंजर ही रहा है। ऐसे में पश्चिम बंगाल का माइक्रो मैनेजमेंट इन प्रदेशों में दोहराया जा सकता है।


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