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Assembly Election 2022: पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा

Assembly Election 2022 कोई भी चुनाव मुद्दों और उम्मीदवारों पर टिका होता है। ऐसे में यह आश्चर्य ही है कि सीमाई प्रांतों में हो रहे चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा पर अब तक कोई मुद्दा नहीं बन पाया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 31 Jan 2022 12:17 PM (IST)Updated: Mon, 31 Jan 2022 12:27 PM (IST)
जागरूक लोगों को प्रयास करना चाहिए कि पार्टियां अपने घोषणापत्र में इस पर अपना दृष्टिकोण सबके सामने रखें।

प्रो. एमएम सेमवाल। मुद्दे और राजनीति सिक्के के दो पहलू हैं। एक दूसरे के सम्पूरक हैं। मुद्दाविहीन राजनीति उस ढाक के फूल की तरह होती है जो देखने में तो बड़ा आकर्षक लगता है। उसकी चटख पंखुड़ियों को देखकर कोई भी अनायास आकर्षित हो जाए, लेकिन पास जाने पर सुगंध का अभाव उसे मायूस ही करता है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की गर्मजोशी चरम पर है। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल अपने स्टार प्रचारकों के अलावा जनता को लुभाने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं। बिजली, पानी, सड़क, गरीबी, भूख शाश्वत मसले हैं। इनसे किसी को इन्कार नहीं, लेकिन इन चुनावों में जो मसला सबसे अहम है वह है राष्ट्रीय सुरक्षा का। अगर देश की एकता, अखंडता को खतरा पहुंचता दिखता है तो किसी भी भारतवासी की भूख-प्यास गौण हो जाएगी। आखिर हमारे पूर्वजों ने हमें दिखाया है कि भले ही घास की रोटी खानी पड़ जाए लेकिन राष्ट्र की सुरक्षा के साथ कोई समझौता स्वीकार नहीं।

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आमतौर पर राष्ट्रीय मुद्दों को लोकसभा के चुनाव से जोड़कर देखने की परिपाटी रही है, लेकिन विधानसभा के इन चुनावों में भी ये सबसे बड़ा मुद्दा अगर बना है तो उसकी पर्याप्त वजह है। पंजाब की 553 किमी सीमा पाकिस्तान से जुड़ी है। दुश्मन देख राज्य को अस्थिर करने का कोई मौका नहीं चूकता। उत्तराखंड की 350 किमी सीमा चीन से तो 275 किमी सीमा नेपाल से जुड़ी है जिस पर आए दिन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विवाद उत्पन्न किए जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश की 579 किमी सीमा नेपाल से सटी है। मणिपुर की सीमाएं बांग्लादेश और म्यांमार को जोड़ती हैं। गोवा के भू राजनीतिक महत्व का अपना इतिहास है। ऐसे में इन चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। मतदाता जागरूक है। उसे उसी का चयन करना चाहिए जो देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रखने का भरोसा दिला पा रहा हो।

चुनाव अपने आप में अमूर्त है, उसे मूर्त एवं जीवंत मुद्दे व उम्मीदवार ही बनाते हैं। मतदाता इन दो आधार पर ही अपने मत का निर्धारण करते हैं। इन सबके बीच कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं, जो गंभीर होते हुए भी चुनावी बहस का हिस्सा नहीं बन पाते हैं। ऐसा ही एक मुद्दा है सुरक्षा का। हर नागरिक अपनी सरकारों से एक गरिमापूर्ण एवं सुरक्षित जीवन चाहता है। सरकारों की भी जिम्मेदारी है कि नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लें। इसमें आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ बाह्य देशों से सुरक्षा भी शामिल है।

उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में मानव तस्करी के मामलों में शीर्ष पर है, लेकिन यह चुनाव में दूर-दूर तक बहस का बिंदु ही नहीं है। उत्तराखंड में ही पर्यावरण और आपदाओं से रोज लोगों को दो-चार होना पड़ता है। फिर भी यह बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया है। पंजाब में ड्रग्स तस्करी मुद्दा नहीं बन पा रहा, जबकि पंजाब का हर परिवार इससे त्रस्त है। पाकिस्तान समर्थित आतंक भी इस राज्य की एक गंभीर समस्या है। पिछली सदी के नौवें दश में उपजे आतंकवाद से उबरने में पंजाब को बहुत लंबा समय लगा, लेकिन विधानसभा चुनाव में यह कभी प्रमुख मुद्दे के रूप में नहीं उभरा।

जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से चार अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हैं। इन सीमावर्ती क्षेत्रों के लोग पड़ोसी देशों से बनते-बिगड़ते रिश्तों से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की 350 किमी सीमा चीन और 275 किमी सीमा नेपाल से लगी है। उत्तर प्रदेश की 579 किमी सीमा नेपाल से सटी है। मणिपुर की सीमाएं बांग्लादेश और म्यांमार से लगती हैं। ऐसे में चुनावों में इन क्षेत्रों की सुरक्षा का मुद्दा न बनना एक बड़ी जनसंख्या को चुनावी बहस से अलग-थलग करने जैसा है।

चीन पिछले कुछ वषों से अपनी सीमाओं पर सशस्त्र गतिविधियों को बढ़ा रहा है, जिससे लगातार घुसपैठ बढ़ी है। इन घटनाओं ने हमारी सीमाओं को अधिक संवेदनशील बना दिया है और सीमावर्ती क्षेत्रों से लोग सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर रहे हैं। इसका असर हमारी सीमा सुरक्षा पर पड़ना स्वाभाविक है। भारत में सीमा सुरक्षा के लिए हर देश की सीमा पर अलग-अलग एजेंसियां जैसे नेपाल व भूटान सीमा पर एसएसबी, पाकिस्तान व बांग्लादेश सीमा पर बीएसएफ, चीन सीमा पर आइटीबीपी, म्यांमार सीमा पर असम राइफल्स तैनात हैं। इनके अलावा तीनों सेनाएं देश की सुरक्षा के लिए हर समय सीमा पर तैनात रहती हैं। वहीं, दुनिया के कई देशों में सुरक्षा के लिए एक केंद्रीकृत एजेंसी है। भारत को भी सीमा पर सुरक्षा के लिए केंद्रीकृत एजेंसी की तरफ बढ़ने की जरूरत है। ये चुनाव बेशक विधानसभा के हैं, लेकिन जिस तरह से इनके नागरिक सुरक्षा संबंधी परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, उसे देखते हुए इन चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठना चाहिए।

[विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा, गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय]


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