Loksabha election 2019 : रोककर बोले- पहिले दा पेटरउल क खर्चा, फिर होत रही सब चर्चा
दोनों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी। दोनों ही भारत छोड़ो आंदोलन के सह जेल यात्री। एक ही बैरक के राजबंदी एक ही थाली में दाना-पानी।
वाराणसी [कुमार अजय]। दोनों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी। दोनों ही भारत छोड़ो आंदोलन के सह जेल यात्री। एक ही बैरक के राजबंदी, एक ही थाली में दाना-पानी। एक उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री तो दूजा नेता प्रतिपक्ष, अक्खड़पने की जीती जागती निशानी। अतीत के आईने में धुंधला सा अक्स वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव का, जब दलीय अनुशासन से बंधे गुरु (पं. कमलापति त्रिपाठी) व शिष्य (लोकबंधु राजनारायण) एक-दूसरे को पटखनी देने के इरादे से चुनाव मैदान में उतरे। जोर-आजमाइश में भी पेश की मिसाल पुरसेहती सियासी मुकाबले की और चुनावी दायरे की बंदिशों के कान कुतरे।
प्रचार अभियान अपने शबाब पर। जुलूसों व सभाओं का तांता चहुंओर। झंडे-झंडियों से पटे शहर में जिंदाबादी-मुर्दाबादी नारों का शोर। ऐसे ही एक इत्तेफाकी मौके पर दोनों दिग्गजों के काफिले चेतगंज की भीड़ भरी सड़क पर आमने-सामने हो जाते हैं। दोनों ही प्रत्याशी अपने वाहनों से नीचे उतर आते हैं। इस तवारीखी वाकये के गवाह रहे वरिष्ठ समाजवादी नेता विजय नारायण के अनुसार अपनी फक्कड़ मिजाजी के लिए चर्चित लोकबंधु राजनारायण ने दंड प्रणाम की रस्म निभाई और छूटते ही कसकर हांक लगाई। ' गुरु जी ! मोटर में तेल खतम हौ...पहिले दा पेटरउल क खर्चा, फिर होत रही सब चर्चा।' विजय भाई को नहीं भूलती पंडित जी की वह स्नेहिल मुस्कान और उनका वह रौबीला फरमान 'सुना हो फलाने... पहिले हमरे मुखालिफ क मुंह मीठा करवावा। जा के संगे पेट्रोल पंप पर फुल टंकी तेल भरावा।' कुशलक्षेम की एक और संक्षिप्त रस्म अदायगी के साथ दोनों जत्थे अपने ठिकानों की ओर रवाना। पीछे दो धुर विरोधी महारथियों की यह अनूठी पेंच-पकड़ देखकर अचंभित जुग-जमाना।
आज जब बेलगाम राजनीति मूल्यों- आदर्शों का साथ छोड़ रही हो। नफरत व जाती अदावत की बिनाह पर मर्यादाओं की हदें तोड़ रही हो। लगभग 40 साल पुराना यह वाकया एक नजीर की शक्ल में सामने आता है। नकारात्मक राजनीति के खलीफा राजनेताओं को असल सियासत का पाठ पढ़ाता है।