Loksabha Election 2019 : बाेले शहीद के परिजन- बेटा खोया है अब देश नहीं खोएंगे
पुलवामा हमले में शहीद हुए रमेश यादव का गांव तोफापुर के कई युवा सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहते हैं। चुनावी माहौल का उस गांव मेंं कोई खास असर नहीं है।
वाराणसी [अंकुर त्रिपाठी]। पुलवामा हमले में शहीद हुए रमेश यादव का गांव तोफापुर के कई युवा सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहते हैं। चुनावी माहौल का उस गांव मेंं कोई खास असर नहीं है। उन्हें मतलब है महज देश सेवा से। बावजूद इसके गांव में जाने पर चुनाव की छेडऩे पर लोग सामने आए। अपने जज्बात को बगैर छिपाए बोले कि यहां जाति-धर्म से कोई लेना देना नहीं है। हम ऐसे जनप्रतिनिधि का चुनाव करेंगे जो मजबूत सरकार बनाने में सहायक हो। साथ ही विकास संग स्थायी सेना और सामरिक नीति को भी मजबूत करे। हमें ऐसी सरकार चाहिए जो आम जनता और देश से जुड़ाव रखे। वैसे गांव में विकास पूरी तरह से नहीं पहुंचा है। शहर के नजदीक होने की वजह से ग्र्राम सभा के बाहर से पक्की सड़क तो गुजरी है पर अंदर के हालात ऐसे समझ सकते हैं कि शहादत के बाद आनन-फानन में रमेश के घर तक खंभे लगाकर बिजली लाने के साथ ही सड़क भी बनाई गई थी।
अनजान सा गांव तोफापुर 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ की बस पर हुए आतंकी हमले में जवान रमेश यादव की शहादत के बाद सुर्खियों में आ गया। कई केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कुछ समय पहले बनारस के चुनावी दौरे पर आई प्रियंका वाड्रा भी गांव में पहुंच चुकी हैं। बावजूद इसके जवान के घर में बिजली तब पहुंची जब वह शहीद हो गया। घर तक की कच्ची गली को भी उसी समय पक्का किया गया।
शहीद रमेश के घर पहुंचने पर पता चला कि उनकी पत्नी रेनू यादव कलेक्ट्रेट में ड्यूटी पर गई हैं। शासन ने कनिष्ठ लिपिक पद पर उनकी नियुक्ति की है। घर पर रमेश के पिता श्याम नारायण यादव, मां, बड़े पिता जी, चचेरे भाई-बहन मिले। कुछ पड़ोसियों से भी बातचीत करने का मौका मिला। चुनावी चर्चा छिड़ी तो बात विकास से होते हुए देश की सुरक्षा और सैनिकों की शहादत तक जा पहुंची।
पिता श्याम नारायण ने कैसी सरकार चाहिए के सवाल पर कहा कि हम गांव के किसान हैं। हम चाहेंगे कि सरकार ऐसी हो जो गरीबों और किसानों का दुख समझे। उनके हित की योजनाएं लाएं, खेती करना आसान हो, उपज की सही कीमत मिल जाए। सरकार की कई योजना है लेकिन उसका लाभ नहीं मिल पाता है। नेता, अफसर, बिचौलिए मालामाल होते जा रहे हैं और किसान गरीबी से ही जूझता रहता है। इसके अलावा शहीद का पिता हूं तो चाहता हूं कि ऐसी मजबूत सरकार बने जो दुश्मनों का खात्मा कर सके। ताकि हमारे वीर बेटे इस तरह से हमेशा के लिए हमसे दूर नहीं जाएं। बहुत कष्ट होता है शहीद के परिवारों को।
शहीद रमेश के बड़े पिता शिïवधन यादव कहते हैं कि 70 साल की उम्र हो गई है हमारी, लगभग इतने ही साल आजादी को हो गए मगर बिजली अब घर पहुंची है वो भी बेटा खोने के बाद। बस इतना समझ लीजिए कि सरकारों ने कितना काम किया गांव और किसान के लिए। मोदी सरकार ने तो कुछ काम किया भी। किसान दिन भर खेत में मेहनत करते हैं तब भी खाने भर को ही बचा पाते हैं। हमारे बेटे नौकरी के लिए भटकते हैं। रोजगार का अकाल है। इसलिए हम चाहते हैं कि नई सरकार अच्छी शिक्षा, रोजगार, शहर के साथ गांव के भी विकास पर ध्यान दें।
दूसरे बड़े पिता रामा यादव कहते हैं कि विधायक, मंत्री और अधिकारी शहर में रहते हैं, उन्हें गांव के लोगों की मुसीबत पता नहीं होती। नेता तो पांच साल में चुनाव के वक्त ही वोट मांगने के लिए आते हैं। फिर वे नजर नहीं आते हैं। बेटा शहीद हुआ इसलिए मंत्री और अधिकारी आए वरना हम तो उनसे मिल भी नहीं पाते कभी। डीएम साहब से ही किसी काम के लिए मिलना हो तो चक्कर लगाना पड़ता है। उनके सामने समस्या बताने के जाने ही नहीं दिया जाता है। हम तो कहते हैं कि सरकारी ऐसी हो जिसके मंत्री जनता का दुख-दर्द समझें, वक्त निकालकर गांव जाकर जनता से मिलें, उनकी समस्या सुनें।
खेल सुविधाएं बढ़ाने पर दिया जाए ध्यान : रमेश की चचेरी बहन रेनू यादव प्रतिभावान एथलीट है। वह राष्ट्रीय स्तर पर लंबी दौड़ में मेडल जीत चुकी हैं। रेनू का कहना है कि सरकार चाहती हैं कि ओलंपिक जैसे बड़े टूर्नामेंट में देश को ज्यादा से ज्यादा मेडल मिले तो ग्र्रामीण इलाकों में खेल की सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। उनके इलाके में तमाम लड़के-लड़कियां खेलों में भाग लेने जाते हैं लेकिन तैयारी और अभ्यास की सुविधा नहीं होने से पिछड़े जाते है।
प्रियंका लौटकर भूल गई अपना वादा : शहीद के पिता श्याम नारायण ने बताया कि प्रियंका वाड्रा उनके घर आईं तो बोली कि उनके दूसरे बेटे राजेश की कर्नाटक में सरकारी नौकरी लगवा देंगी। राजेश कर्नाटक में काम करते हैं और वहां कांग्र्रेस सरकार है। प्रियंका के लौटने के बाद उनके किसी सहायक का फोन आया था। मगर अब उस नंबर पर फोन करते हैं तो रिसीव ही नहीं किया जाता। हम तो कहेंगे कि प्रियंका लौटकर अपना वादा भूल गईं।