Loksabha Election 2019 : गंगा के अलावा तो पूर्वांचल में और भी हैं 'समस्याग्रस्त' नदियां
आदिकाल से प्रकृति कवियों व साहित्यकारों और कलाकारों का प्रिया विषय वस्तु रहा है। कई कविता व कहानियां रची गईं। पहाड़ झरने नदियां आम जनजीवन से जुड़ी हुर्ईं हैं।
वाराणसी [जागरण टीम]। आदिकाल से प्रकृति कवियों व साहित्यकारों और कलाकारों का प्रिया विषय वस्तु रहा है। कई कविता व कहानियां रची गईं। पहाड़, झरने, नदियां आम जनजीवन से जुड़ी हुर्ईं हैं। एक प्रमुख कारण यह भी है कि मानव जीवन इसी पंचतत्व के सहारे चल भी रहा है। इन्हीं पंचतत्व में अति महत्वपूर्ण तत्व है जल। जल संरक्षण के लिए पूरा विश्व चिंतित है। जल बचाने के लिए लिए पर्यावरणविद् अपील कर रहे हैं। इस दिशा में व्यक्तिगत व संस्थागत प्रयास भी किए जा रहे हैं। लेकिन, सरकारी प्रयास न के बराबर है। ऐसे में बाकी प्रयास भी ऊट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं। जरूरत है राजनीतिक दलों और उनके जनप्रतिनिधियों को जागरूक होने की। लेकिन, दुखद यह कि किसी भी राजनीतिक दल ने इसे अपने एजेंडे में नहीं रखा। हालात इस कदर बिगड़े हैं कि कोई जनप्रतिनिधि भी इसे आम सभा में मुद्दा नहीं बना रहा है। पूर्वांचल में छोटी-बड़ी कई दर्जन नदियां हैं। इनकी सिसकती धारा को देखकर ही सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन है।
वाराणसी जिले में प्रमुख नदियों में गंगा के अलावा गोमती, वरूणा, असि, नाद व बसुही हैं। जिले में गंगा की लंबाई लगभग 25 किमी है। वहीं गोमती की लंबाई 12 किमी है। इन्हीं दोनों नदियों में हर समय पानी रहता है। वहीं वरूणा की लंबाई करीब 30 किमी तो नाद की लंबाई करीब 25 किमी और बसुही 10 किमी है। वहीं असि नदी तो नाले में तब्दील हो चुकी है।
नमामि गंगे के तहत हो रहा काम : गंगा व गोमती नदी में नमामि गंगे के तहत निर्मलीकरण का काम किया जा रहा है। शहर के नालों को बंदकर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ा जा रहा है। शहर में रोजाना 360 एमएलडी मलजल उत्सर्जित होता है। इसके सापेक्ष 420 एमएलडी शोधन क्षमता प्राप्त कर ली गई है जबकि 50 एमएलडी का शोधन क्षमता का कार्य निर्माणाधीन है। ये योजनाएं पूर्ण हुई तो आगामी 30 साल तक गंगा में एक बूंद मलजल नहीं जाएगा। वहीं वरुणा किनारे कारिडोर निर्माण जारी है।
जौनपुर जिले की सीमा से छोटे बड़े कुल पांच प्रमुख नदियां बहती हैं। इनमें गोमती, सई, पीली, बसुई, वरूणा शामिल हैं। प्रमुख नदी गोमती है। जिले में इसकी कुल लंबाई करीब 120 किमी. है। इसमें जलस्तर तो काफी कम है लेकिन अन्य नदियों की अपेक्षा पानी ठीक है। काफी प्रदूषित है, इसका पानी लोग प्रयोग करने से बचते है। सई नदी की लंबाई करीब 70 किमी है। यह प्राय: सूखी रहती है। पीली नदी की कुल लंबाई करीब 30 किमी है। इसमें चेकडैम के जरिए पानी रूका हुआ है। बसुई नदी की जिले में कुल लंबाई करीब 87 किमी है। वरुणा नदी की कुल लंबाई 50 किमी है। यह पूरी तरह से सूखी है।
उबारने का प्रयास : पूर्व जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी के कार्यकाल में वर्ष 2016 में शहर के अंदर गोमती नदी के सिल्ट सफाई कर उसकी चौड़ाई व ऊंचाई बढ़ाई गई। वहीं जल प्रदूषण के कारण इसके पानी को कोई प्रयोग नहीं करता है।
क्या बोले जिम्मेदार : टीडी कालेज के भूगोल विभाग के अध्यक्ष राजीव प्रकाश सिंह ने बताया कि जिले की अधिकांश नदियां अंर्तवाही है। यह अंर्तभौमिक जल प्राप्त करती थी, गर्मी के दिनों में भी पानी रहता था। अब पानी का तल नदियों की तली से नीचे पहुंच गया है। इस वजह से गोमती को छोड़कर अन्य नदियां सूखी हुई दिखाई पड़ती है।
मऊ जिले की प्रमुख नदियां तमसा, सरयू, मंगई, भैंसही व छोटी सरयू हैं। इनमें तमसा प्रमुख हैं। जिले में कुल लंबाई लगभग 40 किमी है। हालात बदतर हैं। जागरण ने इसके उद्धार के लिए अभियान चलाया था। भैंसही नदी की लंबाई लगभग 25 किमी है। नदी सूखने की कगार पर है। मंगई नदी की लंबाई लगभग 15 किमी है। यह भी सूखने की कगार पर। छोटी सरयू नदी की लंबाई लगभग 40 किमी है। इसका अस्तित्व समाप्ति की ओर है।
आजमगढ़ जिले में कुल 12 नदियां हैं। घाघरा और तमसा जिले की दो बड़ी नदियां हैं। 10 छोटी नदियों में छोटी सरयू, गांगी, बेसो, उदंती, मझुई (मंजूषा), कुंवर, सिलनी, भैंसही, मंगई, लोनी शामिल हैं। तमसा नदी की लंबाई 89 किमी है। घाघरा नदी जिले में लगभग 41 किमी में बहती है। कुंवर नदी निजामाबाद, छोटी सरयू महराजगंज नगर पंचायत से होकर गुजरी हैं जबकि शेष नदियां ग्रामीण क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं। गांगी नदी की लंबाई 40 किमी है। बेसो नदी की लंबाई 60 किमी है। उदंती नदी की लंबाई 30 किमी है।
विधायक ने किया प्रयास : वर्ष 2009-10 में पूर्व विधायक भोला पासवान ने जनसहयोग से मंगई नदी की तीन किमी सफाई कराई लेकिन उनकी यह योजना मूर्तरूप नहीं ले सकी।
तमसा के पुनरुद्धार को प्रयास : जिलाधिकारी शिवाकांत द्विवेदी की पहल पर तमसा नदी का सफाई अभियान पांच जून 2018 से शुरू हुआ, जो लगातार 320 दिन तक जारी रहा। सफाई के साथ नदी किनारे हजारों की संख्या में पौधरोपण हुए। सिल्ट सफाई के बाद नालों के पानी को फिल्टर कर नदी में छोडऩे के छोटे प्लांट लगाए गए।
बलिया में प्रमुख नदियों में गंगा, घाघरा व टोंस नदी हैं। जिले में गंगा की लंबाई लगभग 104 किमी है। वहीं घाघरा लगभग 120 किमी लंबी है। टोंस नदी की लंबाई 50 किमी है।
सरकारी प्रयास : नमामि गंगे योजना के तहत गंगा में गिरने वाला कटहल नाला में दवा का छिड़काव, पॉलीथिन व कचड़ा रोकने को एक स्थान पर मशीन लगाई गई है।
सोनभद्र जिले में चार ऐसी प्रमुख नदियां हैं जो जिलेवासियों के लिए लाइफ-लाइन का काम करती हैं। इसमें सोन नदी प्रमुख है। जिले में इसकी लंबाई लगभग 75 किमी है। कनहर नदी की लंबाई कुल 50 किमी और रेणुका नदी की लंबाई 70 किमी है। बिजुल नदी लंबाई लगभग 50 किमी है। रेणुका नदी पर कई डैम बने हैं। जहां से पानी लेकर बिजली परियोजनाओं का संचालन होता है। इसमें पानी पर्याप्त रहता है लेकिन अन्य नदियों की स्थिति ठीक नहीं है। इसके साथ ही बारिश के समय ऊफान पर रहने वाली बेलन, बकहर, मलिया, लौवा नदियां हैं। इन सब नदियों में जिनमें अब पूरी तरह से धूल उड़ रही है। इन नदियों उबारने को लेकर कोई प्रयास अब तक नहीं किया जा सका है।
भदोही जिले के मध्य से गुजरी मोरवा नदी की दशा पूरी तरह बदहाल है। जिले में इसकी लंबाई कुल 46 किमी है। वर्तमान में यह नदी एक-एक बूंद पानी को तरस रही है। सत्तर के दशक के बाद से ही इस नदी के वजूद पर धीरे-धीरे संकट गहराता गया। कुछ कथित किसानों ने नदी को जोतकर अपने खेत में मिला लिया तो जगह-जगह इसे रोक दिया गया।
सरकारी प्रयास : कुछ वर्ष पहले वरुणा नदी के पास से नौ किमी तक सिंचाई विभाग की ओर से खोदाई का काम कराया गया है। जबकि वर्ष 2017 में दैनिक जागरण ने जब इसके जीर्णोद्धार को अपना अभियान बनाया था। नदी की सफाई और गहरीकरण के लिए एक साथ पच्चीस हजार मजदूरों को उतारकर जिला प्रशासन ने एक मिसाल पेश की थी।
गाजीपुर में गंगा के अलावा गोमती, बेसो, मगई, उदंती, नोन, गांगी, भैंसही, टौंस व कर्मनाशा प्रमुख है। जिले में गंगा का प्रवाह लगभग 60 किमी है। गंगा व कर्मनाशा को छोड़कर अन्य सभी छोटी नदियां गर्मी में सूख गई हैं। गंगा में गिरने वाले सीवर को अभी बंद नहीं किया गया है।
नदियों को उबारने का प्रयास : नदियों को उबारने के लिए अभी तक कोई विशेष प्रयास नहीं हुआ है। हां, इतना जरुर है कि गंगा में गिर रहे सीवर के पानी को थोड़ा साफ करने के लिए एंजाइम केमिकल का उपयोग किया जा रहा है। नमामि गंगे योजना पर यहां अब तक कोई काम नहीं हुआ है। वहीं बेसो नदी को बचाने के लिए कुछ समाजसेवी संगठन जरुर प्रयास कर रहे हैं।
चंदौली जिले में कर्मनाशा, चंद्रप्रभा व गढ़ई प्रमुख नदियां हैं। कर्मनाशा की लंबाई करीब 100 किलोमीटर तक है। संरक्षण के अभाव में कर्मनाशा की धार धीमी पडऩे लगी है। चंद्रप्रभा नदी लंबाई करीब 60 किमी है। संरक्षण के अभाव में नदी का प्रवाह शून्य हो चुकी है। गड़ई नदी की लंबाई करीब 40 किमी है।