...जब नेहरू से परास्त हुए लोहिया, लगाई जीत की हैट्रिक, 1984 के बाद गढ़ से बेदखल हुई कांग्रेस
आइए हम आपको बतातें है इस वीवीआइपी सीट के बारे में। आखिर समय के साथ यह सीट कैसे खास सीट से आम सीट हो गई। कैसे कांग्रेस अपने गढ़ से बेदखल हो गई।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। आजादी के बाद वर्ष 1951 में देश में पहला आम चुनाव होना था। सबकी नजर पंडित जवाहर लाल नेहरू पर टिकी थी। नेहरू किस संसदीय सीट से चुनाव लड़गे, यह लोगों के लिए कौतुहल का विषय था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी में सक्रिय भूमिका निभाने वाले नेहरू की छवि राष्ट्रव्यापी थी। देश-दुनिया में वह काफी लोकप्रिय थे। इसके चलते नेहरू जी देश में कहीं से भी चुनाव लड़ने और जितने की स्थिति में थे। लेकिन देश के पहले लोकसभा चुनाव में नेहरू ने फूलपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसके साथ ही फूलपुर को देश के प्रथम प्रधानमंत्री की संसदीय सीट बनने का गौरव हासिल हो गया। आइए, हम आपको बतातें है इस वीवीआइपी सीट के बारे में। आखिर समय के साथ यह सीट कैसे खास सीट से आम सीट हो गई। कैसे कांग्रेस अपने गढ़ से बेदखल हो गई। जी हां, आजादी के बाद से ही फूलपुर संसदीय सीट न सिर्फ प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू का संसदीय क्षेत्र रहा, बल्कि यहां से तमाम दिग्गजों ने चुनाव लड़ा है। इसमें कई दिग्गज चुनाव जीते तो कुछ की जमानत जब्त हो गई।
देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू की संसदीय सीट थी फूलपुर
रातोंरात उत्तर प्रदेश की फूलपुर संसदीय सीट वीवीआइपी सीट बन गई। नेहरू जी लगातार तीन बार यहां से सांसद चुने गए। पहली बार 1951 में उन्होंने इस सीट पर विजय हासिल की और देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने। वर्ष 1957 में दूसरी लोकसभा चुनाव में नेहरू जी इस सीट से चुनाव लड़े और एक बार फिर उन्होंने जीत दर्ज की। दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। गौरतलब है कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र से दो सदस्य निर्वाचित होते थे। पं. जवाहरलाल नेहरु के साथ मसुरियादीन भी यहां से सांसद चुने गए थे।
वर्ष 1962 में तीसरे लोकसभा चुनाव में एक बार फिर नेहरूजी कांग्रेस के उम्मीदवार बने। वह तीसरी बार चुनाव जीते और तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। नेहरू ने प्रख्यात समाजवादी नेता डॉक्टर राममनोहर लोहिया को भारी मतों से पराजित किया।
कांग्रेस की गढ़ थी फूलपुर संसदीय सीट
नेहरू के निधन के बाद फूलपुर संसदीय सीट की जिम्मेदारी उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने संभाली। वर्ष 1964 में यहां हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने विजय लक्ष्मी पंडित को मैदान में उतरा। वह चुनाव जीतने में सफल रहीं। वर्ष 1967 में देश में आम चुनाव हो रहे थे। कांग्रेस ने एक बार फिर फूलपुर संसदीय सीट से विजय लक्ष्मी को मैदान में उतारा। इस चुनाव में उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र को परास्त कर कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाया। विजया लक्ष्मी देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की बहन और इंदिरा गांधी की बुआ थीं। इस तरह से यह सीट कांग्रेस के साथ नेहरू परिवार का गढ़ थी। विजय लक्ष्मी लगातार दो बार इस क्षेत्र से सांसद रहीं।
कांग्रेस के गढ़ में लगी विपक्ष की सेंध
वर्ष 1969 में विजय लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद इस्तीफा दे दिया। यहां हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने नेहरू के सहयोगी केशवदेव मालवीय को उतारा, लेकिन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र ने उन्हें परास्त किया। इस चुनाव में कांग्रेस का यह किला ढह गया। इस संसदीय सीट पर विपक्ष का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। हालांकि, पांचवीं लोकसभा चुनाव में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस की झोली में गई। 1971 में देश में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को उम्मीदार बनाया और वह विजयी हुए। 1971 के बाद एक बार फिर यह सीट कांग्रेस के हाथों से चली गई। लेकिन 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार राम पूजन पटेल निर्वाचित हुए।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में आम चुनाव हो रहे थे, पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी। ऐसे में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस की झोली में गई। इसके बाद से यहां हुए नौ चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। इस संसदीय सीट पर दो बार जनता दल के उम्मीदवार राम पूजन पटेल ने जीत दर्ज की। पांच बार समाजवादी पार्टी और एक बार बसपा का कब्जा रहा। वर्ष 2014 में प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में भाजपा उम्मीदवार केशव प्रसाद मौर्य विजयी हुए। लेकिन 2018 में इस सीट पर हुए उप चुनाव में सपा ने यह सीट भाजपा से छीन लिया। सपा उम्मीदवार नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल विजयी हुए।