Loksabha Election 2019 : बोले खलील अब तो चुनाव से गायब हो गया अदब-लिहाज
मधुबन क्षेत्र के जवाहिरपुर गांव निवासी वयोवृद्ध खेलाड़ी उर्फ खलील के मन में आज भी मतदान को लेकर जज्बा बरकरार है। यह अलग बात है कि अब के चुनावी माहौल से मन दुखी हो गया है।
मऊ, जेएनएन। मधुबन क्षेत्र के जवाहिरपुर गांव निवासी वयोवृद्ध खेलाड़ी उर्फ खलील के मन में आज भी मतदान को लेकर जज्बा बरकरार है। यह अलग बात है कि अब के चुनावी माहौल से मन दुखी हो गया है।परिजनों के मुताबिक वे जीवन के लगभग 120 वसंत पार कर चुके हैं। हालांकि आधार कार्ड में उनकी उम्र लगभग 102 वर्ष है। उनके पुत्र रिटायर्ड कैप्टन सूबेदार वली मोहम्मद का कहना है कि उनके पिता का जन्म वर्ष 1898 में हुआ था।
इसके बाद भी चार किलोमीटर तक पैदल चल कर मर्यादपुर बाजार करने जाते हैं। जिंदगी में उन्हें कभी कोई रोग ही नहीं हुआ और न ही कभी उन्हें किसी दवा के सेवन की आवश्यकता पड़ी। आज के दांव-पेच व स्वार्थ से भरे लोगों से काफी व्यथित हैं। लोकतंत्र के महापर्व में मतदान को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका कहना है कि मतदान निश्चित रूप से करना चाहिए। वर्तमान समय को देखते हुए उनका कहना है कि आदमी का चरित्र इतना दोहरा हो गया है कि आजकल यह पता लग पाना मुश्किल है कि वह किस विचारधारा अथवा किस पार्टी से ताल्लुक रखता है। अपने बीते हुए जमाने को याद करते हुए उनका कहना है कि पहले किस मुद्दे पर उन्हें वोट देना है, यह पता चल जाता था। लोग भोंपू लगाकर जगह-जगह नुक्कड़ सभा करते थे। जो जिस पार्टी से ताल्लुक रखता था, उसके घर पर उस पार्टी का झंडा लगा होता था। झंडा देखकर भी विरोधी कभी उसके प्रति बैर अथवा भेदभाव नहीं रखते थे। वहीं आजकल अपनी अपनी पार्टियों को लेकर द्वेष व बैर भाव काफी बढ़ गया है। उनका कहना है कि पहले कांग्रेस का दबदबा था। जनसंघ की अलग पहचान हुआ करती थी। आजकल की तरह रुपये-पैसे की इतनी महत्ता नहीं थी। नेताओं में आपसी वैमनस्य नहीं था। सब एक-दूसरे से मिलते जुलते थे और उनमें बदले की भावना बिल्कुल नहीं थी। व्यक्तिगत आक्षेप नहीं लगाया जाता था।
आज तो पैसे का बोलबाला है। पहले सिद्धांत की बात होती थी लेकिन आज कल कोई सिद्धांत ही नहीं रह गया है। नेताओं की कथनी और करनी में भारी फर्क आ गया है। नेता दलबदलू होते जा रहे हैं। पहले इतनी जागरूकता नहीं थी। एक व्यक्ति ही पूरे गांव को मोटीवेट करके किसी को वोट दिला देता था। लोग गांव के मुखिया अथवा मानिंद लोगों के कहने पर वोट दे देते थे। किसी में पार्टी को लेकर बदले की भावना बिल्कुल ही नहीं थी, सभी लोग वोट के बाद भी आपस में काफी मिल जुलकर रहते थे लेकिन आज कल प्रत्येक व्यक्ति वोट का महत्व समझने लगा है। वह अपनी इच्छा अनुसार वोट दे रहा है एवं विपक्षी आपस में एक- दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं। आज तो सदन में भी जूते-चप्पल व असंसदीय भाषा का प्रयोग हो रहा है जबकि पहले अदब लिहाज व तरबियत लोगों में कूट-कूट कर भरी होती थी।