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राजस्थान के आदिवासियों की कहानी, मेवाड़ में लिखेंगे नेताओं की तकदीर

राजस्थान विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। 7 दिसंबर को होने वाले मतदान को लेकर राजनीतिक दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 11:51 AM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 11:51 AM (IST)
राजस्थान के आदिवासियों की कहानी, मेवाड़ में लिखेंगे नेताओं की तकदीर
राजस्थान के आदिवासियों की कहानी, मेवाड़ में लिखेंगे नेताओं की तकदीर

नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। 7 दिसंबर को होने वाले मतदान को लेकर राजनीतिक दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है। एक तरफ जहां प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है, वहीं दूसरी ओर वोट बैंक को पक्का करने की रणनीति पर भी काम हो रहा है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों की नजर विशेषतौर पर आदिवासी वोट बैंक पर है।

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राजस्थान की राजनीति में यह माना जाता है कि प्रदेश में सत्ता का रास्ता आदिवासियों की तरफ से जाता है। इसी कारण आदिवासी क्षेत्रों में नेता पहुंचकर वोट मांग रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने आदिवासी बहुल जिलों में नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की फौज को भेजा है। ये सभी चुनाव सम्पन्न होने तक वहीं रहेंगे। भाजपा ने जहां आदिवासी कल्याण परिषद और आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं को तैनात किया है, वहीं कांग्रेस ने सेवादल एवं युवक कांग्रेस के पदाधिकारियों को आदिवासी क्षेत्रों में भेजा है।

16 सीटों पर भील मतदाता निर्णायक
आदिवासी बहुल उदयपुर संभाग (मेवाड़) की 28 में से 16 सीटों पर भील जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। किसी भी पार्टी अथवा प्रत्याशी की जीत-हार में भीलों का अहम योगदान रहता है। वैसे तो भील जाति की बहुलता दक्षिणी राजस्थान यानी डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में है, लेकिन ढूंढाड़ के कोटा क्षेत्र में भी भील समाज के लोग रहते है। एसटी वर्ग में आने वाली भील जाति का इतिहास भी काफी पुराना है। प्राचीन इतिहास के अनुसार भीलों ने ही मुगलों के खिलाफ लड़ाई में महाराणा प्रताप का साथ दिया था।

इतिहास के मुताबिक भील शब्द की उत्पत्ति 'बील' से हुई है, जिसका अर्थ है 'कमान'। भीलों को वनपुत्र भी माना जाता है। जिस प्रकार उत्तरी राजस्थान में राजपूतों के उदय से पहले मीणों के राज्य रहे, उसी प्रकार दक्षिणी राजस्थान और हाड़ौती प्रदेश में भीलों के अनेक छोटे-छोटे राज्य रहे है। भील शब्द, उस वर्ग विशेष के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जो धनुष-बाण से शिकार करके अपना पेट-पालन करते थे। भील प्रदेश में दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। पेड़ की पूजा करने वाले भील आम और पीपल को प्रमुख मानते है। भीलों के रीति-रिवाज भी काफी अलग होते है। इस समाज में विवाह की रस्म 9 दिन तक चलती है।

प्रदेश के डूंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर का कुछ क्षेत्र 'वागड़' कहलाता है। वागड़ एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है । भील अत्यंत परंपरावादी जाति है, जो अपने सामाजिक और आर्थिक स्तर को लेकर सजग रहती है । भील जाति के लोगों ने ही अंग्रेजों से लेकर अन्य शासकों का काफी विरोध किया है और इतिहास की कई लड़ाइयों में अहम भूमिका निभाई है। अब जबकि प्रदेश में एक बार फिर नई सरकार का चुनाव करने जा रहा है, ऐसे में वहां भील जनजाति का रोल भी निर्णायक साबित होगा।


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