Move to Jagran APP

राजस्थान में सत्ता के दो केंद्र, सचिन पायलट बन रहे सत्ता का दूसरा केंद्र

मंत्रिमंडल में सीएम अशोक गहलोत को तीन ऐसे नेताओं को कैबिनेट मंत्री बनाना पड़ा,जिन्हे बिल्कुल पसंद नहीं करते।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 25 Dec 2018 03:10 PM (IST)Updated: Tue, 25 Dec 2018 03:10 PM (IST)
राजस्थान में सत्ता के दो केंद्र, सचिन पायलट बन रहे सत्ता का दूसरा केंद्र
राजस्थान में सत्ता के दो केंद्र, सचिन पायलट बन रहे सत्ता का दूसरा केंद्र

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री चयन के बाद मंत्रीमंडल गठन के दो संदेश साफ है। पहला यह कि अब राज्य से जुड़े सभी राजनीतिक फैसले कांग्रेस आलाकमान करेगा। दूसरा यह कि मुख्यमंत्री पहले की तरह राज्य की सर्वोच्च सत्ता नहीं होगी, यहां उप मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता का दूसरा केंद्र बना दिया गया है। इसकी झलक सोमवार को हुए मंत्रिमंडल गठन में साफ देखने को मिली।

loksabha election banner

मंत्रिमंडल में सीएम अशोक गहलोत को तीन ऐसे नेताओं को कैबिनेट मंत्री बनाना पड़ा, जिन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते। इनमें से दो को तो उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में मंत्रीपद से बर्खास्त कर दिया था। लेकिन अब उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के दबाव के चलते इन्हे फिर से मंत्रिमंडल में स्थान मिला है। राज्य के इतिहास में भी यह पहली बार हुआ कि मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर सीएम और राज्यपाल के अतिरिक्त उप मुख्यमंत्री की भी कुर्सी लगाई गई। पायलट से पहले चार उप मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनमें से किसी की भी कुर्सी मंच पर नहीं लगी।

राजनीतिक नियुक्तियों से लेकर प्रशासनिक फेरबदल में दिखेगी दो शक्ति केंद्रों की झलक

विधानसभा चुनाव मे अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही सीएम की कुर्सी की होड़ में खड़े थे। लम्बी खींचतान के बाद दोनों में से किसी एक को चुनने के लिए पर्ची के जरिए वोटिंग भी करवाई गई। पार्टी के शक्ति ऐप से कार्यकर्ताओं की भी राय ली गई।

गहलोत को मुख्यमंत्री और पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता संतुलन और दो शक्ति केंद्र का फार्मूला निकाला गया, तब ये माना जा रहा था कि उप मुख्यमंत्री का पद केवल प्रतीकात्मक होगा। सत्ता की असली कमान गहलोत के हाथ में ही होगी। लेकिन मंत्रीमंडल गठन में सत्ता का दूसरा केंद्र साफ दिखाई दिया। अब तक आलाकमान सीधे फैसले केवल सीएम के चयन में ही लेता रहा, मंत्रिमंडल का गठन सीएम का विशेषाधिकार मानते हुए छोड़ दिया जाता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।

गहलोत और पायलट की खींचतान के चलते खुद राहुल गांधी ने मंत्रिमंडल पर मुहर लगाई। फैसला हुआ कि दोनों खेमे के बराबर के मंत्री बनाए गए। ऐसा पहली बार हुआ कि मंत्रियों के बीच विभागों के बंटवारे का मामला भी आलाकमान तक पहुंचा। आलाकमान ने यह भी तय किया कि राजनीतिक नियुक्तियों से लेकर प्रशासनिक फेरबदल तक सभी बड़े फैसलों में पायलट की राय को प्राथमिकता दी जाएगी। सरकार के बड़े फैसले पायलट की सलाह से ही होंगे।

जाहिर है सरकार चलाने में गहलोत को इस बार पहले की तरह फ्री हैंड नहीं है। पायलट का दखल रहेगा,फिर किसी मसले पर विवाद बढ़ने पर पंच राहुल गांधी ही होंगे। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.