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राजस्‍थान चुनाव: भारत बंद की पीड़ा बन सकती है बड़ा मुद्दा

Rajasthan elections: तो यह वसुंधरा सरकार के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 04:13 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 04:13 PM (IST)
राजस्‍थान चुनाव: भारत बंद की पीड़ा बन सकती है बड़ा मुद्दा
राजस्‍थान चुनाव: भारत बंद की पीड़ा बन सकती है बड़ा मुद्दा

करौली, आशीष भटनागर। बाणासुर की नगरी बयाना से सटा विधानसभा क्षेत्र हिंडौन। 15वें विधानसभा चुनाव की पटकथा लिखने जा रहे इस क्षेत्र ने हमेशा नए चेहरे को ही तरजीह दी है। चुनावी इतिहास साक्षी है, सीट सामान्य रही हो या आरक्षित, कोई भी व्यक्ति लगातार क्षेत्र का दूसरी बार प्रतिनिधित्व नहीं कर सका। इस बार एक वर्ग में एससी-एसटी एक्ट को लेकर अंदरखाने आक्रोश है तो दूसरी ओर भारत बंद के दौरान हुई अराजकता का बदला लेने की कसक भी।

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लिहाजा, नाराजगी भी उसी से है, जिसका साथ भी निभाना है। इस नब्ज को ही भांप भाजपा ने जिले की एक मात्र विधायक का टिकट काट नए चेहरे पर दांव खेला है।

हिंडौन विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। कांग्रेस ने पुराने चेहरे भरोसी लाल जाटव को मैदान में उतारा है। वर्ष 2013 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे भरोसी लाल तो मैदान में हैं लेकिन जिले की एकमात्र सीट जीतकर भाजपा की झोली में डालने वाली राजकुमारी जाटव का टिकट कट गया है। उनके स्थान पर भाजपा ने मंजू खैरवाल को प्रत्याशी बनाया है। पुडुचेरी के पूर्व मुख्य सचिव चरण सिंह खैरवाल की बेटी मंजू लोसपा और राजपा से पहले भी नाकाम प्रदर्शन कर चुकी हैं।

कांग्रेस के परंपरागत वोटों के साथ करीब 70 हजार जाटव मतदाता कांग्रेस प्रत्याशी की ताकत हैं। ऐसे में आंशिक उपस्थिति वाली गिहार बिरादरी का प्रतिनिधित्व करने वाली मंजू खैरवाल को भाजपा द्वारा प्रत्याशी बनाया जाना आम आदमी को चौंका रहा है। लेकिन, क्षेत्र के मिजाज की परख रखने वाले राजनीतिक जानकार इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक मानते हैं।

उनके मुताबिक सुरक्षित सीट पर अन्य जातियों का गैरजाटव के प्रति रुझान भाजपा के लिए मुफीद है, इसके अलावा किसी भी चेहरे को रिपीट न करने का इतिहास भाजपाइयों के लिए खुशफहमी पैदा करने वाला है। अप्रत्याशित बदलाव से पार्टी में बगावत के स्वर भी बुलंद हो रहे हैं। किंतु एक वर्ग को प्रत्याशी बदलने के हाईकमान के निर्णय में कोई खोट नजर नहीं आता।

क्षेत्र का व्यापारी वर्ग एससी-एसटी एक्ट को लेकर मोदी सरकार के रुख से नाखुश है। लेकिन, उसे उन लोगों को भी सबक सिखाना है, जिन्होंने दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान क्षेत्र की शांति में पलीता लगाया था। मारपीट, आगजनी की थी। छात्राओं के कॉलेज में घुसकर उनके साथ अभद्रता का मंजर अभी लोगों की आंखों में तारी है।इस सबके बाद नौबत कफ्र्यू तक आई थी। अराजकता का वह नंगा नाच चुनाव में कांग्रेस के लिए सिरदर्द पैदा कर सकता है।

मुख्य बाजार से चंद कदम की दूरी पर स्थित रोडवेज बस स्टैंड पर टोंक के लिए बस ले जाने को तैयार खड़े परिचालक नाम बताने से परहेज करते हैं पर वसुंधरा सरकार के कामकाज से बेहद खफा हैं। न बोनस, न सातवां वेतन आयोग तो हमाए लए का करौ जा सरकार ने, हड़ताल करी तो 22 दिन की तनखा काट लई, अब कौ देगो जाए वोट। इन मुद्दों पर सारे सरकारी कर्मचारियों के नाराज होने का उनका दावा यदि हकीकत है तो यह वसुंधरा सरकार के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।  


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