Move to Jagran APP

राजस्थान में सिर्फ दो बार बनी 50 फीसद से ज्यादा वोट वाली सरकार

वोट स्विंग एक ऐसा फैक्टर है जिसने न जाने कितनों का खेल बनाया और बिगाड़ा है। सबसे बड़ा उदाहरण है साल 2008 का विधानसभा चुनाव।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 01:25 PM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 01:25 PM (IST)
राजस्थान में सिर्फ दो बार बनी 50 फीसद से ज्यादा वोट वाली सरकार
राजस्थान में सिर्फ दो बार बनी 50 फीसद से ज्यादा वोट वाली सरकार

जयपुर, जागरण संवाददाता। चुनावी माहौल में चलने वाली लहर ही तय करती है कि सत्ता का रुख किस तरफ होगा। यही कारण है कि हार या जीत के लिए प्रत्याशियों और पार्टियों के पक्ष में बहने वाली लहर भी एक चुनावी फैक्टर होता है।

loksabha election banner

राजस्थान में भी ये फैक्टर देखने को मिलता है,लेकिन यहां का चुनावी गणित कुछ ऐसा है कि सवा फीसद से पांच फीसदी वोट स्विंग होने पर ही सरकार बदल जाती है। पिछले 14 विधानसभा चुनावों में सिर्फ दो बार ही पार्टियां राज्य की 50 फीसदी से अधिक जनता का दिल जीतने में कामयाब हो पाए है।

कई बार वोट स्विंग ने बदला चुनावी माहौल
वोट स्विंग एक ऐसा फैक्टर है, जिसने न जाने कितनों का खेल बनाया और बिगाड़ा है। सबसे बड़ा उदाहरण है साल 2008 का विधानसभा चुनाव। कांग्रेस के दिग्गज नेता सी.पी जोशी मात्र एक वोट से हार गए थे, जिसके चलते उनकी सीएम की दावेदारी चली गई थी। साल 1993 और 2008 के चुनाव,दो ऐसे उदाहरण है जिनमें मात्र कुछ फीसदी वोटों ने पूरे चुनाव की हवा ही बदल दी।

1993 के चुनाव में बीजेपी का वोट कांग्रेस से महज 0.33 प्रतिशत अधिक था, लेकिन सीटों का अंतर 19 तक पहुंच गया था, जिसके चलते कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा। कुछ ऐसा ही साल 2008 के चुनाव में भी हुआ। जब कांग्रेस के खाते में सिर्फ 1.26 फीसदी वोट की बढ़ोतरी हुई और कांग्रेस ने 56 से सीधे 96 सीटों पर छलांग लगाई। वहीं बीजेपी की झोली से 4.93 वोट झिटक गए और वो 120 से 78 सीटों पर सिमट गई।

आपातकाल और राम मंदिर भी बने वोट स्विंग का कारण

साल 1977 के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट स्विंग हुआ। कांग्रेस को आपातकाल का खामियाजा भुगतना पड़ा और 19.64 वोट खिसक गए, तब कांग्रेस को 41 सीटें मिली थी। इसके उलट जनता पार्टी की लहर थी, जिसने 152 सीटों के साथ बंपर जीत दर्ज की थी।

वोट स्विंग का ऐसा करारा झटका कांग्रेस को 1990 के चुनाव में भी झेलना पड़ा,जब देश में राम मंदिर का मुद्दा पूरे चरम पर था इस चुनाव में कांग्रेस का वोट करीब 12.93 फीसदी कम हुआ और उसे 50 सीटें ही मिली। बीजेपी और जनता दल ने मिल कर यह चुनाव लड़ा था। बीजेपी को 25.25 फीसदी वोटों के साथ 85 और जनता दल को 21.58 फीसदी वोटों के साथ 55 सीटें मिली थी ।

एक फैक्टर ये भी है कि 14 चुनाव में मात्र दो बार ही 50 फीसदी से ज्यादा वोट वाली सरकार बनी है। साल 1972 और 1977 के चुनाव पार्टियों को 50 फीसदी से अधिक जनता का साथ मिला था। साल 1972 में कांग्रेस ने 51.13 फीसदी मतों के साथ 145 सीटों पर कब्जा किया था। वहीं साल 1977 के चुनाव में 50.39 फीसदी वोट के साथ 152 सीटों पर जनता पार्टी ने जीत दर्ज की।

क्या इस बार टूटेगी यह परंपरा?

राज्य में महज चंद वोटों का स्विंग किसी भी पार्टी को सत्ता से बेदखल कर अन्य पार्टी को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा देता है। ऐसे में फिर चर्चा होने लगी है कि क्या इस बार भी हल्का सा वोट स्विंग सत्ता परिवर्तन करा पाता है या यह परम्परा इन चुनावों में टूटती है, यह देखना दिलचस्प रहेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.