Punjab Assembly Elections 2022: राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा सभी दलों के एजेंडे पर सबसे ऊपर होना चाहिए
Punjab Assembly Elections 2022 दलों के पास राज्य की सुरक्षा के लिए स्पष्ट एजेंडा होना चाहिए। सत्ता में आने पर उसे उस एजेंडे पर काम करना चाहिए। पंजाब से जिस देश की सीमा लग रही है उससे बहुत सचेत रहने की आवश्यकता है।
चंडीगढ़, कैलाश नाथ। पंजाब का नाम आते ही लहलहाते खेत और खुशहाल चेहरे जेहन में उभरते हैं। इसी के साथ एक सच्चाई यह भी है कि पंजाब हमेशा से ही बेहद संवेदनशील राज्य रहा है। पंजाब ने बंटवारे को देखा है तो आतंकवाद के काले दिनों को झेला भी है। इस सबके बावजूद पंजाब की सामाजिक समरसता हमेशा ही बरकरार रही है। चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक पार्टियां चुनावी मैदान में जीत-हार का दावा करने में जुट गई है। हां, कुछ शोरगुल इस बार कम है। इस सबके बावजूद सुरक्षा को लेकर एक वर्ग चिंतित है। मैं विशेष रूप से पंजाब पुलिस की बात कर रहा हूं जिसे हरेक चुनाव में आशंकित और बेहद चौकन्ना रहना पड़ता है, क्योंकि पाकिस्तान की सीमा से लगता यह राज्य हमेशा ही संवेदनशील रहता है।
पंजाब की शांति और भाईचारे को खंडित करने के लिए हमेशा ही कई ताकतें साम-दाम-दंड और भेद से जुटी रहती हैं। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पकड़े जाते हथियार, ड्रग्स और गोलाबारूद इस बात का सूचक है। आजकल तो एक नई चुनौती सामने आ रही है - ड्रोन। सामान्य दिनों में यह समस्या बनी रहती है लेकिन चुनावी दिनों में यह चिंता बढ़ जाती है। इस बार के चुनाव कुछ अलग दिखाई दे रहे है। आमतौर पर तो दो या तीन राजनीतिक पार्टियां चुनाव मैदान में रहती थीं, लेकिन इस बार चार.. या कहूं तो पांच पार्टियां चुनाव मैदान हैं। सभी की अपनी विचारधारा है और सभी अपने-अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं या बढ़ाती हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा सभी दलों के एजेंडे पर सबसे ऊपर होना चाहिए।
राजनीतिक पार्टियां अपने प्रचार के लिए जुटती हैं तो कुछ ऐसे भी समूह होते है जो मौके का फायदा उठाने की जुगत में लगे रहते हैं। यह ऐसी ताकतें होती हैं जोकि अंदर भी है और बाहर भी। सीमावर्ती राज्य होने के कारण यह चिंताएं और बढ़ जाती है। चुनाव के दिनों में भले ही सुरक्षा की जिम्मेदारी अर्ध सैनिक बलों के साथ-साथ पुलिस की भी होती है लेकिन पंजाब पुलिस के लिए सुरक्षा चिंता का विषय हमेशा ही बनी रहती है। चुनाव के समय में यह मानसिक तनाव और बढ़ जाता है।
सुरक्षा निश्चित रूप से एक बड़ा मुद्दा है। आमतौर पर विधान सभा चुनावों में राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे पर यह नहीं रहता है। लेकिन पुलिस इससे कभी भी विमुख नहीं होती है। चुनाव आयोग भी समय-समय पर सुरक्षा को लेकर समीक्षा करता रहता है और पुलिस के सुरक्षा तंत्र आम दिनों के मुकाबले चुनाव के दिनों में ज्यादा ही सक्रिय हो जाते है क्योंकि राजनीतिक गतिविधियां भी ऐसे समय में बढ़ जाती है।
पंजाब में इसके मायने इसलिए भी बढ़ जाते है क्योंकि कई ताकतें हमेशा ही शांति और भाईचारे को तोड़ने के लिए नजर गड़ाए रखती हैं। दो साल पुरानी बात है जब रेफरेंडम 20-20 को लेकर खासी चर्चा थी। लोगों में तनाव भी था और सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय भी थी। 2020 नहीं बल्कि अब हम 2022 में आ गए है। इस सबके पीछे पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों की सक्रियता रही होगी। जो लोग पंजाब की शांति को खंडित करना चाहते थे उनकी मंशा पूरी नहीं हो पाई।
मैं यह मानता हूं कि राष्ट्रीय सुरक्षा की अहमियत को देखते हुए इसे इसी तरह ध्यान देने की जरूरत है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि हमारे राज्य की पुलिस इसे लेकर गंभीर रहती है। चुनाव तो हरेक तीन से लेकर पांच साल (विधानसभा या लोकसभा) में आ ही जाते है और पंजाब पुलिस को हर बार अग्नि परीक्षा को पार करना पड़ता है।
राजनीतिक पार्टियों को इस पर न सिर्फ चर्चा करनी चाहिए बल्कि गंभीरता से इस पर अपनी बात भी रखनी चाहिए। राजनीतिक दलों के पास राज्य की बाह्य व आंतरिक सुरक्षा के लिए स्पष्ट एजेंडा होना चाहिए। जब कोई भी पार्टी सत्ता में आती है तो उसे उस एजेंडे पर काम करना चाहिए। सरहदी राज्य होने की वजह से पंजाब के लिए यह बहुत आवश्यक है। पंजाब से जिस देश की सीमा लग रही है, उससे ही सचेत रहने की आवश्यकता नहीं है बल्कि यह भी चुनौती है कि अन्य देशों में बैठे कई तत्व हमारे राज्य की शांति व्यवस्था को भंग करने और यहां का माहौल बिगाड़ने के प्रयासों में सदैव लगे रहते हैं। किसी भी रूप में उनके प्रयासों को कामयाब नहीं होने देना होगा।
[एसएस विर्क, पूर्व डीजीपी, पंजाब]